प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि मुंबई सिर्फ सपनों का शहर नहीं है, महाराष्ट्र में कई ऐसे शहर हैं, जो 21वीं सदी में देश के विकास केंद्र बनने जा रहे हैं। इसी सोच के साथ एक तरफ मुंबई के इंफ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाया जा रहा है तो वहीं दूसरे शहरों में भी आधुनिक सुविधाओं को बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विकास की यात्रा में पीछे रह गये आदिवासी जिलों में भी आज विकास की नई आकांक्षा जागी है।
प्रधानमंत्री आज मुंबई राजभवन में जल भूषण भवन और क्रांतिकारियों की गैलरी का उद्घाटन करने के बाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र का ये राजभवन बीते दशकों में अनेक लोकतांत्रिक घटनाओं का साक्षी रहा है। ये उन संकल्पों का गवाह रहा है जो संविधान और राष्ट्र के हित में यहां शपथ के रूप में लिए गए।
प्रधानमंत्री ने बिना किसी का नाम लिये देश की विरासत को लेकर पिछली सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि शायद दुनिया के लोग हमारा मजाक करें कि राजभवन 75 साल से यहां कार्यात्मक है लेकिन नीचे बंकर है वो सात दशक तक किसी को पता नहीं चला। उन्होंने कहा कि यह हमारी उदासीनता को दर्शात है। हमारी अपनी विरासत के लिए कितने उदासीन हैं। उन्होंने आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान देशवासियों से ऐसे स्थलों को खोजने का आह्वान करते हुए कहा कि खोज-खोज के हमारे इतिहास के पन्नों को समझना होगा। उन्होंने कहा कि जो बंकर किसी को पता तक नहीं था, जिसमें वह सामान रखा गया था जो भारत के क्रांतिकारियों की जान लेने के काम आने वाला था उसी बंकर में आज क्रांतिकारियों का नाम है। उन्होंने कहा कि देशवासियों में ऐसा जज्बा होना चाहिए तभी देशवासियों को प्रेरणा मिलती है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र ने तो अनेक क्षेत्रों में देश को प्रेरित किया है। अगर हम सामाजिक क्रांतियों की बात करें तो जगतगुरू श्री संत तुकाराम महाराज से लेकर बाबा साहेब आंबेडकर तक समाज सुधारकों की एक बहुत समृद्ध विरासत है। महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, समर्थ रामदास, संत चोखामेला, जैसे संतों ने देश को ऊर्जा दी है। अगर स्वराज्य की बात करें तो छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति सांभाजी महाराज का जीवन आज भी हर भारतीय में राष्ट्रभक्ति की भावना को और प्रबल कर देता है। उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर को याद करते हुए कहा कि उन्होंने हर यातना को आजादी की चेतना में बदला वह प्रेरणादायी है।
उन्होंने कहा कि जब हम भारत की आज़ादी की बात करते हैं, तो जाने-अनजाने उसे कुछ घटनाओं तक सीमित कर देते हैं। जबकि भारत की आजादी में अनगिनत लोगों का तप और उनकी तपस्या शामिल रही है। स्थानीय स्तर पर हुई अनेकों घटनाओं का सामूहिक प्रभाव राष्ट्रीय था। साधन अलग थे लेकिन संकल्प एक था। उन्होंने कहा कि सामाजिक, परिवारिक, वैचारिक भूमिकाएं चाहे कोई भी रही हों, आंदोलन का स्थान चाहे देश-विदेश में कहीं भी रहा हो उसका लक्ष्य भारत की संपूर्ण आज़ादी था।
उन्होंने कहा कि आजादी का हमारे आंदोलन का स्वरूप लोकल भी था और ग्लोबल भी। जैसे गदर पार्टी दिल से राष्ट्रीय भी थी, लेकिन स्केल में ग्लोबल थी। श्यामजी कृष्ण वर्मा का इंडिया हाउस लंदन में भारतीयों का जमावड़ा था, लेकिन मिशन भारत की आजादी का था। नेताजी के नेतृत्व में आजाद हिंद सरकार भारतीय हितों के लिए समर्पित थी, लेकिन उसका दायरा ग्लोबल था। यही कारण है कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन ने दुनिया के अनेक देशों के आजादी के आंदोलन को प्रेरित किया। लोकल से ग्लोबल की यही भावना हमारे आत्मनिर्भर भारत अभियान की भी ताकत है।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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