पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर द्वारा दिल्ली में आयोजित पर्यावरण संवाद में स्वतंत्र पत्रकार क्षिप्रा माथुर ने विचार रखने के साथ जलांदोलन को लेकर प्रजेंटेशन भी दिया। उन्होंने कहा कि चक्रीय अर्थव्यवस्था को समझने के लिए हमारी सनातन परंपरा में उद्भव में ही अंतिम समागम होता है। हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम करना जरूरी है। ऐसा न हुआ तो दुनिया को संभालना मुश्किल होगा। अक्षय ऊर्जा का आयाम बहुत महत्वपूर्ण है। जल, जंगल, जमीन, जन, मिट्टी को हम अलग करके नहीं देख सकते। पाञ्चजन्य ने 4 साल पहले जलांदोलन शुरू किया था।
क्षिप्रा माथुर ने कहा कि पाञ्चजन्य में प्रकाशित जलांदोलन कहानियों से एक बड़ा बदलाव आया है। यह बदलाव चक्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़ा है। इसमें महिलाओं की बड़ी भागीदारी है। महाराष्ट्र में 400 नदियां जीवित हुईं हैं। परंपरा के साथ भविष्य भी संवर रहा है। जयपुर में कचरे से सड़क बनी है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशुधन की बड़ी भूमिका होती है। हमने गोचर भूमि खत्म कर दी।
राजस्थान के जल-चेतन गांव ने गोचर जमीन को पशुओं के लिए संरक्षित किया है। आज राजस्थान के 50 गांव में गोचर भूमि को सहेजा जा रहा है। कुदरत बहुत पानी देती है, जिसे हमें सहेजना होगा। गांवों में जाकर हम पाते हैं कि हमें अभी बहुत कुछ करना है।
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