ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था और हिंदू साम्राज्य स्थापित हुआ। भगवा के अनन्य उपासक शिवाजी रणनीति, कूटनीति में माहिर होने के साथ भ्रष्टाचार निषेधक और हिंदुओं की घर वापसी के समर्थक थे। प्रस्तुत है पाञ्चजन्य के अभिलेखागार से शिवाजी महाराज पर एक आलेख
स्वामी विवेकानंद ने कहा था- ‘क्या शिवाजी से बड़ा कोई नायक, संत, भक्त और राजा है? हमारे महान ग्रंथों में मनुष्यों के जन्मजात शासक के जो गुण हैं, शिवाजी उन्हीं के अवतार थे। वह भारत के असली पुत्र की तरह थे जो देश की वास्तविक चेतना का प्रतिनिधित्व करते थे। उन्होंने दिखाया था कि भारत का भविष्य अभी या बाद में क्या होने वाला है। एक छतरी के नीचे स्वतंत्र इकाइयों का एक समूह, जो एक सर्वोच्च अधिराज्य के अधीन हो।’
एक सच्चा राजा जानता है कि कैसे हारे हुए युद्ध को भी जीतना है। एक सच्चा राजा जानता है कि जब उसका जीवन समाप्त हो जाता है, तो भी उसे कैसे जीना चाहिए। शिवाजी महाराज जन-जन के नायक हैं। लेकिन स्वयं शिवाजी का नायक कौन है?
शिवाजी महाराज ने न कभी विदुर को देखा-पढ़ा था, न चाणक्य को। न उनके दौर में कोई ऐसा शूरवीर था, जो उन्हें प्रेरित कर सकता होता। लेकिन शिवाजी महाराज ने विदुर, कृष्ण, चाणक्य, शुक्राचार्य, हनुमान और राम-सभी को आत्मसात किया हुआ था।
उनकी पहली नायक उनकी माता जीजाबाई हैं। जिन्होंने बचपन से ही उनको रामायण और महाभारत की शिक्षा दी। महात्मा विदुर ने कहा था-
कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम्।
तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत्॥
(महाभारत विदुरनीति)
अर्थात् जो (आपके प्रति) जैसा व्यवहार करे उसके साथ वैसा ही व्यवहार करो। जो तुम पर हिंसा करता है, उसके प्रतिकार में तुम भी उस पर हिंसा करो! मैं इसमें कोई दोष नहीं मानता, क्योंकि शठ के साथ शठता करना ही उचित है।और जब शिवाजी ने अफजल खां का वध किया, तो जाहिर तौर पर उनकी यही शिक्षा उनकी प्रेरणा थी। जबकि उनके अधिकांश मंत्रियों की समझ से यह सारी बातें परे थीं। शिवाजी महाराज ने घुड़सवारी, तलवारबाजी और निशानेबाजी दादोजी कोंडदेव से सीखी थी।
शिवाजी ने हमेशा उन लोगों की मदद की जो हिंदू धर्म में लौटना चाहते थे। यहां तक कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी एक ऐसे हिंदू से कर दी, जो अतीत में मुसलमान बना दिया गया था। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। शिवाजी के राज्याभिषेक समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था।
भ्रष्टाचार और शिवाजी : शिवाजी ने राजदरबारों और शासन प्रणाली में निहित भ्रष्टाचार को देख-समझ लिया था। साधारण बुद्धि का राजा होता, तो अपने दरबार में या अपने शासन में निहित भ्रष्टाचार को समाप्त करवा कर ही स्वयं को महान समझ लेता। लेकिन शिवादअजी महाराज एक कदम और आगे गए। उन्होंने अपने राज्यक्षेत्र में तो भ्रष्टाचार को समाप्त किया ही, इसी हथियार का प्रयोग अपने राज्य के विस्तार में किया।
अनिल माधव दवे ने अपनी पुस्तक ‘शिवाजी एंड सुराज’ में लिखा है, ‘‘महाराज को राज व्यवहार में भ्रष्टाचार, चाहे वह आचरण में हो या अर्थतंत्र में, बिल्कुल अस्वीकार्य था।’’
अपने अधिकारियों को लिखे 13 मई, 1671 के एक पत्र में शिवाजी लिखते हैं, ‘‘अगर आप जनता को तकलीफ देंगे और कार्य संपादन हेतु रिश्वत मांगेंगे तो लोगों को लगेगा कि इससे तो मुगलों का शासन ही अच्छा था और लोग परेशानी का अनुभव करेंगे।’’
मनोवैज्ञानिक युद्ध कौशल : औरंगजेब ने शिवाजी की चुनौती का सामना करने के लिए बीजापुर की बड़ी बेगम के आग्रह पर अपने मामा शाइस्ता खान को दक्षिण भारत का सूबेदार बना दिया। शाइस्ता खान ने डेढ़ लाख सेना लेकर पुणे में 3 साल तक लूटपाट की। शिवाजी ने 350 मावलों के साथ उस पर छापामार हमला कर दिया। शाइस्ता खान अपनी जान बचाकर भागा। शाइस्ता खान को इस हमले में अपनी 3 उंगलियां गंवानी पड़ी। औरंगजेब ने शाइस्ता खान को दक्षिण भारत से हटाकर बंगाल भेज दिया। लेकिन शाइस्ता खान अपने 15,000 सैनिकों के साथ फिर आया और शिवाजी के कई क्षेत्रों में आगजनी करने लगा। जवाब में शिवाजी ने मुगलों के क्षेत्रों में लूटपाट शुरू कर दी। शिवाजी ने 4 हजार सैनिकों के साथ सूरत के व्यापारियों को लूटने का आदेश दिया। उस समय हिन्दू मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार सूरत ही था।
सामाजिक चुनौतियों का सामना : शिवाजी ने अपने धर्म की रक्षा और संवर्धन के लिए ब्राह्मणों, गायों और मंदिरों की रक्षा को अपनी राज्यनीति का लक्ष्य घोषित किया था। लेकिन उस समय प्रचलित छुआछूत एक बड़ी बाधा थी। सन् 1674 तक पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बावजूद शिवाजी का राज्याभिषेक नहीं हो सका था। ब्राहमणों ने उनका घोर विरोध किया था, क्योंकि उनके अनुसार शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे। राज्याभिषेक के लिए उन्हें क्षत्रियता का प्रमाण चाहिए था। बालाजी राव जी ने शिवाजी के मेवाड़ के सिसोदिया वंश से संबंध के प्रमाण भेजे, जिसके बाद रायगढ़ में उन्होंने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया।
युद्ध नीति : शिवाजी महाराज ने अपना साम्राज्य बाहुबल के साथ-साथ बुद्धिबल से स्थापित किया था। उन्होंने स्थापित साम्राज्यों और सल्तनतों की युद्ध-मशीनरी में एक प्रमुख दोष खोज निकाला। और अपनी मराठा सेना में चेन-आफ-कमांड को सर्वोच्च शक्तियां दीं। चाणक्य की नीति पर चलते हुए उन्होंने अपने अद्वितीय गुप्तचरों और कार्यकर्ताओं का तानाबाना पूरे देश में फैला दिया था। उस दौर में राजा के मर जाने पर सैनिक भी युद्ध से भाग खड़े होते थे, लेकिन शिवाजी के सशक्त योद्धा उनकी मृत्यु के 27 साल बाद भी उनके सपने को जीवित रखने के लिए लड़ते रहे थे। क्योंकि शिवाजी अपनी जागीर बचाने के लिए नहीं लड़े। वे स्वराज्य की स्थापना के लिए लड़े। उनका लक्ष्य एक स्वतंत्र साम्राज्य स्थापित करना था लेकिन उनके सैनिकों को स्पष्ट आदेश था कि भारत के लिए लड़ो, किसी राजा विशेष के लिए नहीं।
शिवाजी महाराज ने अपना साम्राज्य बाहुबल के साथ-साथ बुद्धिबल से स्थापित किया था। उन्होंने स्थापित साम्राज्यों और सल्तनतों की युद्ध-मशीनरी में एक प्रमुख दोष खोज निकाला। शिवाजी के सशक्त योद्धा उनकी मृत्यु के 27 साल बाद भी उनके सपने को जीवित रखने के लिए लड़ते रहे थे। क्योंकि शिवाजी स्वराज्य की स्थापना के लिए लड़े। उनके सैनिकों को स्पष्ट आदेश था कि भारत के लिए लड़ो, किसी राजा विशेष के लिए नहीं।
सर्जिकल स्ट्राइक : शिवाजी की अभिनव सैन्य रणनीति विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध के तरीकों का अविष्कार किया, जिन्हें शिवा सूत्र या गामिनी कावा कहते हैं। यह भूगोल, फुर्ती और भौंचक कर देने वाले सामरिक कारकों के अनुसार भारी जोखिम लेकर युद्ध में परिस्थिति का लाभ उठाने की रणनीति है। इसमें बड़े और अधिक शक्तिशाली दुश्मनों को हराने के लिए सटीक हमलों पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। इसमें सर्जिकल स्ट्राइक जितना ही भारी जोखिम है।
मानसिक दृढ़ता : शिवाजी महिलाओं से बलात्कार या छेड़छाड़ पर कठोर दंड देते थे। क्रूर घटनाओं के लिए वह महाक्रूर थे। दंड अपराध की गंभीरता पर निर्भर करता था। जब शिवाजी मात्र चौदह वर्ष के थे, तो उनकी जागीर के एक गांव के रणजी नाम के एक पाटील (गांव के मुखिया) पर एक विधवा की इज्जत लूटने का आरोप साबित हुआ था। अपनी माता और दादाजी की उपस्थिति में शिवाजी ने अपना फैसला सुनाया: ‘पाटील रणजी, ताराफ- खेड़ेदेरे, बाबाजी भिकाजी गुजर ने पाटील के रूप में अपने कार्यालय में नौकरी करते हुए अपराध का कार्य किया है। उसके कार्यों की सूचना हमारे पास पहुंची है- और उसका अपराध संदेह से परे साबित हो गया है। इसके बाद हमारे आदेश के अनुसार, उसके सभी चार अंग (हाथ-पैर) भंग कर दिए जाएं।’
उस युग में इससे पहले कभी भी किसी भी (गरीब) पुरुष या महिला ने इतना सुरक्षित और इतना प्रसन्न महसूस नहीं किया था। उस दिन से पूरा मावल शिवाजी से प्रेम करने लगा।
घर वापसी : शिवाजी जानते थे कि भारत के हिन्दुओं का मतांतरण ही समस्या की सबसे बड़ी जड़ है। उन्होंने हमेशा उन लोगों की मदद की जो हिंदू धर्म में लौटना चाहते थे। यहां तक कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी एक ऐसे हिंदू से कर दी, जो अतीत में मुसलमान बना दिया गया था। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। शिवाजी के राज्याभिषेक समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था।
विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। उन्होंने दरबार के कई पुरानी विधियों को पुनर्जीवित किया एवं शासकीय कार्यों में मराठी तथा संस्कृत भाषा के प्रयोग को बढ़ावा दिया। महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी के सार्वजनिक त्यौहार की शुरुआत सबसे पहले छत्रपति शिवाजी महाराज ने ही की थी।
भारतीय नौसेना के जनक : 17 वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी के राज्यकाल में एक मजबूत मराठा नौसेना ने भारतीय जल सीमाओं की अनेकों विदेशी आक्रमणकारियों से सफलतापूर्वक रक्षा की। छत्रपति शिवाजी की नौसेना भलीभांति प्रशिक्षित थी और उनके पोत तोपों से सुसज्जित थे। शिवाजी ने अंडमान द्वीप समूह पर निगरानी चौकियों का निर्माण कराया जहां से शत्रुओं पर निगाह रखी जाती थी। मराठा नौसेना ने कई बार अंग्रेजी, डच और पुर्तगाली नौसेना पर सफलतापूर्वक हमले किये और जहाजों पर कब्जा किया। शिवाजी ने अपनी दूरदर्शिता और रणनीति से भारतीय नौसेना के इतिहास में ऐसी छाप छोड़ी कि उन्हें आधुनिक भारतीय नौसेना का जनक कहा जाता है।
अंग्रेजों को सबक : राजापुर में ब्रिटिश व्यापारियों का गोदाम था। उन्होंने वहां के व्यापारियों को अपने वश और प्रलोभन में लेकर किसानों से अत्यंत अल्प दाम में वह खोपरा खरीद लिया। तब परिवहन के साधन नहीं थे। किसानों की आर्थिक क्षमता ऐसी नहीं थी कि वे अपना उत्पाद अन्य मंडी में भेजते। उन्हें भारी हानि सहनी पड़ी। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज को पत्र लिखकर इस विषय में सूचित किया।
शिवाजी महाराज ने तुरंत अंग्रेजों की ओर से आ रही वस्तुओं पर 200 प्रतिशत दंडात्मक आयात शुल्क लगा दिया। इससे अंग्रेजों की वस्तुओं की बिक्री घट गई। अंग्रेजों ने छत्रपति शिवाजी महाराज को पत्र लिखा कि ‘हम पर दया करें, सीमा शुल्क कम करें।’ छत्रपति शिवाजी महाराज ने शर्त रखी कि अंग्रेजों ने राजापुर के किसानों की जो कुछ भी हानि की हैं, उसका भुगतान योग्य प्रकार से करें। दूसरे दिन से अंग्रेजों ने व्यापारियों से मिलकर उनके द्वारा सभी किसानों को उनकी वस्तुओं का उचित मूल्य तथा उसके साथ हानिपूर्ति की राशि अदा करना आरंभ किया। तब जाकर शिवाजी महाराज ने सीमाशुल्क निरस्त किया।
धार्मिक सहिष्णुता : 1650 के पश्चात बीजापुर, गोलकुंडा, मुगलों की रियासत से भागे अनेक मुस्लिम, पठान व फारसी सैनिकों को विभिन्न ओहदों पर शिवाजी द्वारा रखा गया था जिनकी धर्म सम्बन्धी आस्थाओं में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया
जाता था।
बखर्स के अनुसार जब आगरा में शिवाजी को कैद कर लिया गया था तब उनकी सेवा में एक मुस्लिम लड़का भी था जिसे शिवाजी के बच निकलने का पूरा वृत्तांत मालूम था। शिवाजी के बच निकलने के पश्चात उसे अत्यंत मार खाने के बाद भी स्वामी भक्ति का परिचय देते हुए अपना मुँह कभी नहीं खोला था। शिवाजी के सेना में कार्यरत हर मुस्लिम सिपाही चाहे किसी भी पद पर हों, शिवाजी की न्यायप्रिय नीति के कारण उनके जीवन भर सहयोगी बने रहे।
भगवा ध्वज और गुरु के प्रति असीम श्रद्धा : एक कथा के अनुसार:-
छत्रपति शिवाजी के गुरुदेव, समर्थ गुरु रामदास एक दिन गुरु भिक्षा लेने जा रहे थे। उन पर शिवाजी की नजर पड़ते ही प्रणाम कर निवेदन किया, ‘हे गुरुदेव! मैं अपना पूरा राज-पाट आपके कटोरे में डाल रहा हूं! अब से मेरा राज्य आपका हुआ!’
तब गुरु रामदास ने कहा, ‘सच्चे मन से दे रहे हो! वापस लेने की इच्छा तो नहीं?’ ‘बिलकुल नहीं! यह सारा राज्य आपका हुआ!’
‘तो ठीक है! यह लो!’ कहते कहते गुरु ने अपना भगवा चोला फाड़ दिया! उसमें से एक टुकड़ा निकाला और शिवाजी के मुकुट पर बांध दिया और कहा, ‘लो! मैं अपना राज्य तुम्हें सौंपता हूं, इसे चलाने और देखभाल के लिए। मेरे नाम पर राज्य करो! मेरी धरोहर समझ कर! मेरी तुम्हारे पास अमानत रहेगी।’
‘गुरुदेव! आप तो मेरी भेंट लौटा रहे हैं.’ कहते-कहते शिवाजी की आंखें गीली हो गयीं।
‘ऐसा नहीं! कहा न मेरी अमानत है. मेरे नाम पर राज्य करो. इसे धर्म राज्य बनाये रखना, यही मेरी इच्छा है.’
‘ठीक है गुरुदेव! इस राज्य का झंडा सदा भगवा रंग का रहेगा! इसे देखकर आपकी तथा आपके आदर्शों की याद आती रहेगी।’
‘सदा सुखी रहो! कहकर गुरु रामदास भिक्षा हेतु चले दिए!
तब से मराठा साम्राज्य का ध्वज भगवा रंग का रहा।
सुनहरे मुकुट से बंधी भगवा वस्त्र की यह केवल कतरन नहीं है, यहां शिवराय के साहस, शासन और सरोकारों का सूत्र गुंथा है-
ल्ल एक सच्चा राजा जानता है कि कैसे हारे हुए युद्ध को भी जीतना है। भगवा जान की बाजी लगाने की प्रेरणा है।
ल्ल एक सच्चा राजा जानता है कि जब उसका जीवन समाप्त हो जाता है, तो भी उसे कैसे जीना चाहिए।
भगवा अग्निशिखा बताती है श्वास अंतिम हो तब भी उद्दीप्त संस्कारों से जगमग आत्मा की यात्रा जारी रहती है।
शिवाजी महाराज जन-जन के नायक हैं। लेकिन स्वयं शिवाजी का नायक कौन है? निश्चित ही भगवा और भगवान में अभेद रचने वाली संस्कृति ही वह अदृश्य नायक है। शिवाजी राजे के रक्त में, हम सब की नस-नस में वही संस्कृति तो है! कोई भय नहीं, कोई भेद नहीं….जय शिवराय!
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