चर्च ने पहले 12 नाबालिग हिंदू बच्चों को ईसाई बनाया। एफआईआर दर्ज होने पर बच्चों के माता—पिता पर ही दबाव बनाया कि लिखकर दो कि बच्चों ने स्वेच्छा से ईसाई मत को अपनाया है।
क्या कोई मां—बाप अपने बच्चों को अपने मत या मजहब से दूर होने देगा? इसका उत्तर है बिल्कुल नहीं, लेकिन आजकल झारखंड में ऐसा ही देखने को मिल रहा है। यह क्यों हो रहा है, यह आगे बताएंगे लेकिन मामला क्या है, उसे जान लेते हैं।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों खूंटी के तोरपा विधानसभा के कमड़ा गांव में 12 नाबालिगों को चर्च के लोगों ने ईसाई बना दिया था। इसकी रिपोर्ट पाञ्चजन्य में 3 जून को प्रकाशित हुई थी। इसी रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने खूंटी के पुलिस अधीक्षक और उपायुक्त को पत्र लिखकर कहा कि नाबालिगों को जिन्होंने ईसाई बनाया है उनके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई जाए। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया और जांच बैठाई गई। जांच में घटना को सत्य पाया गया। इसके बाद चर्च के कुछ लोगों पर कन्वर्जन कानून के तहत 7 जून को प्राथमिकी दर्ज कराई गई। इसकी भी रिपोर्ट पाञ्चजन्य में छपी।
इसके बाद ऐसा माना जा रहा है कि चर्च के लोग उन बच्चों के माता-पिता से मिले और उन पर यह लिखने के लिए दबाव बनाया कि उनके बच्चे किसी लोभ—लालच या किसी के दबाव मेें ईसाई नहीं बने हैं, बल्कि स्वेच्छा बने हैं। इसके बाद बच्चों के माता—पिता ने यही लिखकर प्रशासन को दे दिया।
यानी चर्च ने हिंदुओं के बच्चों को ईसाई बनाया और उनके माता—पिता पर ऐसा दबाव भी बनाया कि वे उनका विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं। खूंटी और उसके आसपास के इलाकों में ऐसी चर्चा है कि चर्च और मिशनरियों ने एक ऐसा दबाव समूह बना लिया है कि उसके विरोध में जाना असंभव सा लगता है। यही कारण है कि माता-पिता अपने बच्चों को ईसाई बनते हुए देख रहे हैं और कुछ नहीं कर पा रहे हैं, और तो और खुद हिंदू होते हुए भी अपने बच्चों को ईसाई बनने का स्वीकृति पत्र प्रशासन को सौंप रहे हैं।
लोगों का यह भी कहना है कि चर्च इतना बलशाली इस इलाके में इसलिए होता जा रहा है क्योंकि राज्य सरकार और प्रशासन का उसे समर्थन प्राप्त है। हालांकि झारखंड का हिंदू समाज सतर्क है इसीलिए अब चर्च का विरोध देखने को मिल रहा है।
स्थानीय विधायक कोचे मुंडा ने कहा कि इस तरह की हरकत करने वालों पर प्रशासन को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज के लोग काफी सीधे और भोले होते हैं। इन्हें आसानी से बरगला दिया जाता है। अगर इन ग्रामीणों को कन्वर्जन कानून की जानकारी नहीं थी तो यह कैसे मान लिया जाएगा कि चर्च और पादरियों को भी इस कानून की जानकारी नहीं होगी! उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि जिसने भी कानून का उल्लंघन किया है उसे दंडित किया जाना चाहिए तभी लोगों के अंदर कानून के प्रति भरोसा बना रहेगा।
क्या है धर्मांतरण कानून ?
2017 में तत्कालीन रघुवर सरकार ने धर्मांतरण कानून बनाया था। इस कानून के तहत झारखंड में किसी भी व्यक्ति को बलपूर्वक, कपट से या प्रलोभन देकर कन्वर्जन कराना संज्ञेय व गैर जमानती अपराध है। साथ ही, आरोप साबित होने पर ऐसे मामलों में तीन वर्ष तक की जेल तथा 50,000 रु के जुर्माने का प्रावधान है। अगर कन्वर्जन किसी नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों का किया गया हो तो चार वर्ष की जेल और 1,00,000 रु तक का जुर्माना है। यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से मत परिवर्तन करना चाहता है तो उसे इसके लिए उपायुक्त से सहमति लेनी होगी। ऐसा नहीं करने पर उसे एक वर्ष तक की जेल या 5,000 रु का जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है।
अब देखना यह है कि 12 नाबालिगों के कन्वर्जन पर प्रशासन का रवैया कैसा रहता है !
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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