हरियाणा में उत्कृष्ट गांव योजना शुरू की गई है। इसका मूल उद्देश्य नई तकनीक और बीज की उन्नत किस्मों से राज्य के किसानों की आय बढ़ाने के साथ पानी बचाने के लिए सूक्ष्म सिंचाई पर भी जोर देना है। फिलहाल, इस योजना से अंबाला, यमुनानगर और कुरुक्षेत्र के 80 किसान लाभान्वित हो रहे
गांव व किसानी दोनों उत्कृष्ट बनें। इनकी सूरत और सीरत बदलनी ही चाहिए। हरियाणा उद्यान विभाग की ‘उत्कृष्ट गांव योजना’ के तहत इस दिशा में लगातार काम किया जा रहा है। विभाग द्वारा हर जिले से चार से पांच गांवों को गोद लिया गया है। इन गोद लिए गांवों में किसानों को कृषि की नई तकनीक और बीज की उन्नत किस्मों से अवगत कराया जाता है, ताकि फसल उत्पादन के साथ किसानों की आय में बढ़ोतरी हो सके। इसलिए प्रदेश के किसान भी अब बाजारोन्मुखी बने हैं।
किसानों ने उपभोक्ताओं की नब्ज को टटोलना शुरू कर दिया है। किसान बाजार की मांग के अनुसार अब परंपरागत ढर्रे को छोड़कर कृषि की नई-नई तकनीक के साथ फसल चक्र और विविधीकरण को अपना रहे हैं। कुछ किसानों ने विपणन प्रणाली को समझ कर अपने उत्पाद के प्रसंस्करण से लेकर फसल की छंटाई, ग्रेडिंग और पैकिंग कर उसे बाजार में बेचना शुरू किया है। इसके कारण उन्हें घर बैठे फसल की अच्छी कीमत तो मिल ही रही है, सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि उन्हें बिचौलियों से भी छुटकारा मिला है।
‘उत्कृष्ट गांव योजना’ में अभी तीन जिलों अंबाला, यमुनानगर और कुरुक्षेत्र के 80 किसान जुड़े हैं। भारत-इस्राएल परियोजना के तहत इस योजना को लाडवा स्थित उप-उष्णकटिबंधीय फल केंद्र अमलीजामा पहना रहा है। इस परियोजना के तहत कृषि विशेषज्ञ किसानों को सघन खेती, सूक्ष्म सिंचाई, पुराने बागों का जीर्णोद्धार, छत्रक प्रबंधन और पौधों की कटाई-छंटाई की जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं। इसके अलावा, कीट और बीमारियों के एकीकृत प्रबंधन, विभिन्न प्रकार के पौधों के संरक्षण और उपकरण जैसे नाप-बोरी, गतूर, कीटों और रोगों के नियंत्रण के लिए विशेषज्ञों द्वारा मैन्युअल तरीके से संचालित स्प्रे पंप जैसी विभिन्न प्रकार की सहायता भी उपलब्ध कराई जाती है। कुल मिलाकर विभाग द्वारा किसानों को पौध की नर्सरी से लेकर फल की बिक्री तक का प्रबंधन करना सिखाया जाता है।
भारत-इस्राएल उप-उष्णकटिबंधीय फल केंद्र, लाडवा के विषय वस्तु विशेषज्ञ डॉ. शिवेंदू प्रताप सोलंकी ने बताया कि उत्कृष्ट गांव योजना में एक गांव से चार से पांच किसानों को चयनित किया गया है। इस योजना में किसानों को खेती के नए गुर सिखाने के अलावा सिंचाई पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कारण, राज्य में भू-जल संकट गहराता जा रहा है, इसलिए किसानों को सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके साथ ही कृषि की नई तकनीक अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। अभी एक जिले के चार से पांच गांव गोद लिए गए हैं। बाद में हर साल इनकी संख्या बढ़ाई जाएगी।
आलू की खेती बनी मुनाफे का सौदा
अंबाला जिले के गांव गंधेली के किसान सत्यपाल कनाडा की मैकेन कंपनी के साथ पिछले दो वर्ष से अनुबंध पर आलू की खेती कर रहे हैं। उनकी आलू की फसल गुणवत्ता की दृष्टि से बेहतरीन होती है। इसलिए भारत की बड़ी कंपनियां इसे हाथोंहाथ खरीद लेती हैं, साथ ही वे देश के बाहर भी इसका निर्यात करते हैं। सत्यपाल ने बताया कि अनुबंध आधारित खेती के दो लाभ हैं। इसका पहला लाभ मंडी के मकड़जाल से छुटकारा मिला, दूसरा बाजार में आलू की कीमत कितनी भी गिर जाए, अनुबंध के अनुसार कंपनी उन्हें फसल की वही कीमत देती है, जो पहले से तय है। कंपनी न केवल उन्हें बालू के बीज उपलब्ध कराती है, बल्कि आलू की फसल तैयार होने पर इसे खेत से भी उठा लेती है। इससे उन्हें न तो बीज के लिए कहीं जाना पड़ता है और न ही फसल बेचने के लिए मंडी जाने का झंझट रहता है।
सत्यपाल बताते हैं कि इस सीजन में उन्हें 7.50 लाख रुपये का लाभ हुआ है। अभी वे 9 एकड़ जमीन में आलू की खेती कर रहे हैं। उत्कृष्ट गांव योजना के तहत उन्होंने चार एकड़ भूमि पर नाशपाती का बगीचा लगाया है, जो चार साल बाद फल देने लगेगा। उन्होंने 10 एकड़ में अमरूद का बगीचा पहले से ही लगा रखा है। इस नए बाग में नाशपाती की नई किस्म और उन्नत तकनीक से पौधे रोपित किए गए हैं। इसे हिडेन सीट नाम दिया गया है। इसका लाभ यह है कि जो पौधा दस साल में फल देता था, वह पांच साल के भीतर फल देने के लिए तैयार हो जाएगा। इस तकनीक में पौधों के बीच दूरी 20 फीट रखी जाती है। बागवानी विशेषज्ञों द्वारा समय-समय पर बाग का निरीक्षण किया जाता है और किसी भी प्रकार की बीमारी लगने पर उचित मार्गदर्शन किया जाता है। इसके अलावा, सत्यपाल फल प्रसंस्करण की ओर भी कदम बढ़ा रहे हैं।
मुख्य फसल के साथ मौसमी फल-सब्जियों से बढ़ी कमाई
यमुनानगर जिले के कलेसर गांव के किसान ओमेंद्र ने 22 एकड़ में आम का बगीचा लगाया है। 14 एकड़ जमीन में आम का पुराना बगीचा है, जबकि 8 एकड़ में उन्होंने बागवानी की नई तकनीक से आम की नई किस्में लगाई हैं, जिसमें उद्यान विभाग की उत्कृष्ट गांव योजना के तहत विशेषज्ञों की टीम ने पूर्ण सहयोग किया है। आमेंद्र बताते हैं कि परंपरागत तकनीक से खेती लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही थी।
फसल चक्र और फसल विविधीकरण किसानों और जमीन, दोनों को बचा सकते है। इसलिए अब 8 एकड़ भूमि पर चौसा, आम्रपाली और मल्लिका आम की किस्में लगाई हैं। उनका कहना है कि पहले पौधे 30 फीट दूरी पर लगाए जाते थे, लेकिन नई तकनीक से पौधे लगाने का लाभ यह है कि प्रति एकड़ पौधों की संख्या बढ़ गई है, जिससे उत्पादन भी दोगुना होगा। नई तकनीक में समय-समय पर पौधों की कटाई-छंटाई की जाती है, ताकि उनकी ऊंचाई को सीमित रखा जा सके। इस कारण फसल तोड़ने में भी आसानी होती है और यह पक्षियों से भी सुरक्षित रहता है। ओमेंद्र आम का मुरब्बा और अचार बनाने की सोच रहे हैं। इसके लिए वे जल्द ही प्रसंस्करण यूनिट शुरू करेंगे।
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