विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अपने विकल्प या पसंद पर किसी को वीटो लगाने का अधिकार नहीं देगा। देश अब पुरानी झिझक से उभर चुका है।
विदेश मंत्री ने नरेन्द्र मोदी सरकार के आठ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में विदेश मंत्रालय की ओर से आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में नई दिल्ली स्थित विदेशी राजदूतों और राजनयिकों को संबोधित किया। कार्यक्रम में विदेश मंत्रालय के कामकाज और अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम में भारत की भूमिका के बारे में एक पुस्तक का विमोचन भी किया गया। जयशंकर ने विदेशी राजनयिकों को मोदी सरकार द्वारा अपनाई गई विदेश नीति के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी।
चीन का नाम लिए बिना जयशंकर ने कहा कि देश की सीमाओं की सुरक्षा को सरकार बहुत महत्व देती है। हम सीमा पर यथास्थिति को एकतरफा तौर पर बदलने के किसी प्रयास को बर्दाश्त नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि पहले से तय तौर-तरीकों और सहमति का उल्लंघन होने पर भारत उपयुक्त रवैया अपनाएगा। सुरक्षा का मामला आने पर देश की भलाई के लिए जरूरी सभी कदम उठाए जायेंगे।
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत अपने भरोसेमंद साझेदारों के योगदान को मान्यता देता है जिन्होंने देश को सुरक्षित बनाए रखने में मदद दी है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है। कूटनीति के माध्यम से भारत ने इस चुनौती का सामना किया है। साथ ही आतंकवाद और उसे समर्थन देने वाले तत्वों को नाकारा और नाकाम बनाने का अभियान चलाया है।
जयशंकर ने कहा कि भारत जैसे देश को अपनी सुरक्षा के संबंध में व्यापक रवैया अपनाने की जरूरत है। अतीत में वैश्विकरण के प्रवाह में हमने आतंरिक ताकत को बढ़ाने के संबंध में कोताही बरती। इसी कमी को दूर करने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ का अभियान शुरू किया गया है। हम निश्चित रूप से ‘मेक इन इंडिया’ की नीति पर चल रहे हैं। ऐसा करते समय हम दुनिया के साथ मिलकर और दुनिया के लिए निर्माण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से मजबूत हो रहा भारत ‘वसुधैव कुटंबकम’ के अनुरूप विभिन्न देशों के साथ विकास साझेदारी कर रहा है।
विदेश मंत्री ने कहा कि कोरोना महामारी और यूक्रेन संघर्ष के कारण आर्थिक गतिविधियां और आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हुई है। उन्होंने कहा कि दुनिया आज ऊर्जा, खाद्यान और उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोत्तरी की चुनौती का सामना कर रहा है। गरीब और विकासशील देश इससे मुख्य रूप से प्रभावित हुए हैं। उन्होंने यूक्रेन संकट का समाधान के लिए कूटनीति के रास्ते पर लौटने पर जोर दिया। उन्होंने विदेश नीति के संबंध में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका प्रयास’ मंत्र को दोहराया।
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत में परमाणु ऊर्जा उद्योग से जुड़ी एक अवसंरचना है और हम स्वभाविक रूप से ‘न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप’ (एनएसजी) से जुड़ना चाहते हैं। चीन का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि एनएसजी की सदस्यता में राजनीतिक कारणों से बाधा डालने का प्रयास किया जा रहा है और यह दुनिया के हित में नहीं है।
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