उत्तराखंड के उफरेखाल के शिक्षक सच्चिदानंद भारती इलाके में भगीरथ बाबा के नाम से ख्यात हैं। आज से 30-32 वर्ष पूर्व शिवालिक का यह इलाका वीरान और जल संकट से ग्रस्त था। परंतु सच्चिदानंद जी ने ग्रामवासियों को साथ लेकर यहां हजारों जलस्रोत बनाए और 800 हेक्टेयर क्षेत्र में लाखों पेड़ लगाए। अब यहां चारों तरफ हरियाली है
देश में पेड़ों को बचाने को लेकर बहुत आंदोलन हुए लेकिन पेड़ लगाने के आंदोलन गिनती भर के हैं। उत्तराखंड में श्री सच्चिदानंद भारती ने पेड़ लगाने का आंदोलन शुरू किया और 140 गांवों की आबोहवा बदल डाली। इन गांवों में आज न तो पानी का संकट है और न ही जंगलों में आग का कोई खतरा है। शिवालिक की बंजर पहाड़ियों से गंगाजल की धारा को निकाल कर, लोगों के घरों तक पहुंचाने के कारण लोग सच्चिदानंद भारती को ‘भगीरथ बाबा’ भी बुलाते हैं। भारती जी का सेवा कार्य देखने रा.स्व.संघ के तत्कालीन सरसंघचालक परमपूज्य कुप.सी.सुदर्शन जी भी यहां आए थे और यहां तीन दिन तक प्रवास किया।
1978 में सच्चिदानंद भारती, पौड़ी गढ़वाल के उफरेखाल के सरकारी स्कूल में अध्यापक नियुक्त हुए थे। तब उन्हें लगा कि आसपास के पहाड़ वीरान हैं और यहां गांवों में पानी का घोर संकट है। उन्होंने स्कूल के बच्चों के साथ आसपास पेड़ लगाने शुरू किए लेकिन यह अभियान कभी चला, कभी रुकता रहा।
140 गांवों तक फैला है सेवा कार्य
सम्मान
भारती जी ने सभी प्राप्त सम्मानों की पुरस्कार राशि को अपने कर्मक्षेत्र में महिला मंगल दलों को पुन: पेड़ लगाने और गड्ढे खोदने के लिए दे दिया। उन्हें मिले प्रमुख सम्मानों में शामिल हैं…
- इन्दिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार, भारत सरकार
- गांधी राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मान,मध्य प्रदेश सरकार
- स्वामी राम मानवता पुरस्कार, हिमालयन इंस्टीट्यूट, देहरादून
- भगीरथ प्रयास सम्मान,डब्लूडब्लूएफ उत्तराखंड ग्रीन एवार्ड,
- सीईई राष्ट्रीय भाऊराव देवरस सम्मान
- डी.लिट. मानद उपाधि,उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय
मन की बात में प्रधानमंत्री मोदी ने की प्रशंसा
सच्चिदानंद भारती के सेवा प्रकल्प से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अवगत़ हैं। आकाशवाणी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम में पीएम मोदी ने सच्चिदानंद भारती द्वारा पेड़ लगाने और जल स्रोतों की गंगा बहाने को भागीरथ कार्य बताया।
1990 के आसपास क्षेत्र में सूखे के हालात हो गए। भारती ने स्कूल के बच्चों के जरिए गांव के लोगों से संवाद किया और हर रविवार को गांव के ग्राम देवता के मंदिर में एकत्र होकर पहाड़ों में गड्ढे खोदने के लिए श्रमदान शुरू किया। मानसून में बारिश होने पर इन गड्ढों में पानी भरता चला गया। भारती ने इन गड्ढों से एक फुट की ढाल की दूरी पर एक पेड़ लगाना शुरू किया। गड्ढे में पानी की वजह से पेड़ों को पानी मिलने लगा और धीरे-धीरे सूखे पहाड़ों पर हरियाली लौटने लगी।
आज जब भी कोई उफरेखाल की सीमा से प्रवेश करता है तो उसे अगले 15 किमी तक एक अलग हरियाली के पहाड़ दिखलाई देते है। तकरीबन आठ सौ हेक्टेअर का यह जंगल भारती के इस भगीरथ कार्य का गवाह बना दिखता है। इन पहाड़ों पर अब चीड़ के जंगल नहीं बल्कि उतीस, काफल,बांज, देवदार, सुरई के पेड़ दिखते हैं। इन पेड़ों के बीच हजारों की संख्या में जल तलैया दिखती हैं जो यहां की जमीन को नमी देती है। ये जल तलैया हर गांव में पेयजल भी पहुंचा रही हैं।
सुकून और संतुष्टि का भाव
सच्चिदानंद जब जंगल और ताल तलैया को देखते हैं तो उनके चेहरे पर संतुष्टि महसूस की जा सकती है। वे कहते हैं कि इससे मुझे नहीं, हजारों परिवारों, जंगल, चारा, पानी,वन्यजीव आदि को फायदा मिल रहा है। मैं रहूं या न रहूं, लेकिन ये जंगल और ये पानी यहां रहेगा। हमें इस बुनियादी विषय को समझ लेना चाहिए कि रामगंगा, कोसी, गौला जैसी नदियां हिमालय से नहीं निकलीं, बल्कि शिवालिक के जलस्रोतों से निकली हैं। हमारे पास बांझ (ओक) एक ऐसा पेड़ है जो हरा चारा और पानी देता है। बस इसे हम लगाएं और गड्ढे खोद कर उनमें बारिश का पानी एकत्र होने दें। इतनी सस्ती तकनीक से हम अपने पहाड़ को हरा-भरा रख सकते हैं।
इन जंगलों में नहीं लगती आग
श्री भारती बताते हैं कि गर्मियों में पहाड़ के जंगलों में अक्सर आग लगने की घटनाएं होती हैं किंतु हमारे जंगलों में आग नहीं लगती। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि जंगल से जुड़ाव के कारण ग्रामवासी ऐसा कुछ भी होने देते कि यहां आग लगे। साथ ही हमारे जंगलों में जल तलैया है जिस कारण धरती में नमी रहती है। भारती आगे कहते हैं कि वन विशेषज्ञों के मुताबिक चीड़ के नीचे कुछ नहीं पनपता। ऐसा कहने वाले यहां आकर देखें कि चीड़ के नीचे और आसपास ही बांझ, देवदार, उतीस, काफल पनपे हैं और उन्होंने चीड़ को ही सिकोड़ कर रख दिया। भारती बताते हैं कि चीड़ उत्तराखंड का मूल पौधा नहीं है, इसे अंग्रेज यहां लाए। हमारे जो परंपरागत पौधे है, वे खूब पनप रहे हैं।
चिड़ियों के हजारों घोंसले
भारती जी अपने लगाए जंगलों में घोसले दिखाते हुए बताते हैं कि यहां आपको सैकड़ों किस्म की चिड़िया मिल जाएंगी। ऐसा इसलिए है कि आसपास के जंगलों में जब आग लगती है तो परिंदे अपने लिए सुरक्षित स्थान ढूंढते हैं। हमारे जंगलों में उन्हें भोजन, पानी, सुरक्षा, संरक्षण सबकुछ मिल रहा है। हां! जंगल में पानी होने से तेंदुए और अन्य जंगली जानवरों का खतरा भी बढ़ गया है।
महिला मंगल दलों की बढ़ी आय
भारती ने पिछले तीन वर्ष में गांव के पास बने जंगल में महिला मंगल दलों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से तेजपत्ता, काफल, कीवी के पेड़ लगाने शुरू किए हैं। उन्होंने बताया कि कीवी ऐसा फल है जिसे बंदर नहीं खाता। इससे क्षेत्र के परिवारों की आय बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि काफल, बुरांश,माल्टासे भी आमदनी हो रही है। तेजपत्ता के पौधे भी एक-दो साल में आय देने लगेंगे। ये ऐसे जंगली पेड़ हैं जो हरियाली भी देते हैं और आमदनी भी।
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