पाञ्चजन्य का विश्वास भारतीय संस्कृति के अनुरूप लोकतंत्र में रहा है। मार्ग भिन्न हो सकते हैं परंतु सभी लोग अपने हैं। सत्य का संधान करना है तो विचार सबके प्रस्तुत होने चाहिए। मुद्दों पर, विषयों पर विमर्श खड़े होने चाहिए। यह विमर्श कैसे खड़ा होगा? सत्य के संधान से। परंतु वर्तमान दौर में सूचनाओं के बाढ़ में सत्य बह न जाए, यह चिंता प्रासंगिक है।
पाञ्चजन्य अपनी पत्रकारीय यात्रा के 75वें वर्ष से गुजर रहा है। विश्वभर में करोड़ों लोगों तक इसकी पहुंच है। प्रसार की दृष्टि से पाञ्चजन्य देश की शीर्ष पत्रिकाओं में है। समय बदला है, साधन बदले हैं, संचालन-सम्पादन टोलियों में चेहरे भले ही बदले हैं। परंतु पत्रकारिता के इस प्रखर प्रवाह में 75वें वर्ष में भी जो बात नहीं बदली, वह है, भारत की गौरव पताका विश्व में लहराने का लक्ष्य।
यह लक्ष्य हमें प्रेरित करता है सत्य के संधान के लिए, समाज के प्रति अपने दायित्वों के लिए। पाञ्चजन्य सदैव अपने इन दायित्वों के प्रति सचेत रहा है।
15 अगस्त, 1947—भारत को स्वाधीनता मिल चुकी थी। एक नई परिस्थिति, नया परिदृश्य सामने था। विभाजन के दंश जनता भुगत रही थी। पाकिस्तान पैदा होते ही कुटिल चालें चलना शुरू कर चुका था। कुछ रियासतें असमंजस में थीं कि किधर जाएं। प्रशासनिक तंत्र, सुरक्षा, शिक्षा, इतिहास, स्वास्थ्य, उद्योग, सबके लिए दृष्टि तय करनी थी। भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप ढांचा खड़ा करना था। तय करना था कि इनकी, देश की, दिशा क्या हो?
मार्ग तय करने को लेकर अलग-अलग आवाजें थीं, अलग-अलग आकांक्षाएं थीं। बड़ा प्रश्न था, संविधान में उल्लिखित-हम भारत के लोग-कौन हैं, हमारी राष्ट्रीय पहचान क्या है? क्या होंगे हमारे रास्ते?
अब तक जो पत्रकारिता हुई, उनका उद्देश्य भारत को स्वतंत्र कराना था। भारत स्वतंत्र हुआ। उद्देश्य प्राप्त हुआ। अब पत्रकारिता क्या करे? प्रश्न सर्वथा नए थे।
पराई सरकार गई। यह सरकार अपनी है। परन्तु सरकारें तो आती-जाती हैं, बड़ी बात है सांस्कृतिक सरोकार! तो इन्हीं प्रश्नों के उत्तरों के उद्घोष के रूप में भारतीय पत्रकारिता में शंखनाद हुआ पाञ्चजन्य का। 14 जनवरी, 1948 को साप्ताहिक पाञ्चजन्य का पहला अंक प्रकाशित हुआ।
पत्रकारिता का यह शंखनाद पिछले 75 वर्षों से निरंतर गूंज रहा है।
अपने 75 वर्ष की यात्रा में राष्ट्रीय मुद्दों की परख करती पत्रकारिता। इन मुद्दों पर जनमत प्रबोधन। विविध विचारों का खुला मंच। विशेषज्ञों, मर्मज्ञों को सामान्य जन से जोड़ने वाला सेतु। जिन विषयों से बाकी कतराते हों, उन्हें तर्कों/प्रमाणों के साथ उठाने वाला साप्ताहिक यह सब रंग पाञ्चजन्य के हैं।
पाञ्चजन्य का विश्वास भारतीय संस्कृति के अनुरूप लोकतंत्र में रहा है। मार्ग भिन्न हो सकते हैं परंतु सभी लोग अपने हैं। सत्य का संधान करना है तो विचार सबके प्रस्तुत होने चाहिए। मुद्दों पर, विषयों पर विमर्श खड़े होने चाहिए।
यह विमर्श कैसे खड़ा होगा? सत्य के संधान से। परंतु वर्तमान दौर में सूचनाओं के बाढ़ में सत्य बह न जाए, यह चिंता प्रासंगिक है। पाञ्चजन्य ने इस महती जिम्मेदारी को उठाने की ठानी।
सूचनाएं छान-फटक के बाद ही आगे बढ़ाई जाएं, यह पत्रकारिता की प्रमुख शर्त है। परंतु पत्रकारिता में इस शर्त का पालन करने की प्रवृत्ति ही लुप्त होने लगी।
झूठी, एजेंडापरक खबरें एवं तथ्यान्वेषण
वर्तमान दौर में पुन: कुछ नए प्रश्न सामने हैं। यह प्रश्न हैं सूचनाओं की बाढ़ में सत्य के बह जाने के खतरे के बारे में, सूचनाओं को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने के बारे में, सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखते हुए समय के अनुरूप बदलती आवश्यकता को पूरा करने के बारे में, सूचनाओं के तथ्यों की छान-फटक के बारे में, झूठी खबरों का पदार्फाश करने के बारे में।
पाञ्चजन्य ने अपने सामने आए इस गुरुतर दायित्व को समझा, गंभीरता से लिया। वह दौर था जब किसी मीडिया की त्रुटियों का उल्लेख करना पाप समझा जाता था। तब पाञ्चजन्य ने नारद स्तंभ प्रारंभ किया। इस स्तंभ में खबरों की छान-फटक होती है, उनके तथ्यों को जांचा जाता है, उसे प्रस्तुत करने के संदर्भों की जांच होती है, उसे प्रस्तुत करने के पीछे के उद्देश्यों की पड़ताल होती है। और, इस कार्य का जिम्मा विभिन्न बड़े पत्रकार उठाते हैं, वह भी बिना नाम और बिना दाम की आकांक्षा के।
विपुल सूचना प्रवाह के साथ ही पूर्वाग्रह और पक्षपात के आज के दौर में फेक न्यूज बड़ी आम बात हो गई है। अपने एजेंडा को साधने के लिए बड़े-बड़े मीडिया संस्थान फेक न्यूज परोसने लगे हैं। तब पाञ्चजन्य ने फैक्ट चेक की ठानी और इस कार्य में पत्रकारिता संस्थानों में पढ़ रहे विद्यार्थियों को शामिल किया। पत्रकारिता के इन विद्यार्थियों ने विभिन्न प्रतिष्ठित अखबारों, वेबसाइटों की 15 खबरों का चयन किया और उनके तथ्यों का अन्वेषण प्रारंभ किया। अध्ययन में यह पाया गया कि बड़े-बड़े नामचीन मीडिया घरानों ने अपने एजेंडा को साधने के लिए फेक न्यूज चलाए। इस तरह पाञ्चजन्य ने न केवल मीडिया घरानों के झूठ को उजागर किया बल्कि नई पीढ़ी के पत्रकार भी तैयार किए जो तथ्यों के आधार पर खबरों की पड़ताल करें।
इस स्थिति में नया पड़ाव तब आया जब फैक्ट चेक के नाम पर बाजार में कुछ स्वयंभू फैक्ट चेकर पैदा हो गए और अपने एजेंडा के अनुरूप खबरों को सच-झूठ ठहराने लगे। फैक्ट चेकर की शुचिता स्थापित करने के लिए पाञ्चजन्य ने एक बार फिर कमर कसी और शुचिता के इन स्वयंभू पहरेदारों की पड़ताल की। पड़ताल में इन पहरेदारों के एजेंडा का पदार्फाश हो गया।
हमारे देश का जो नागरिक है, वह सामान्यजन है। सामान्य जन जटिल मुद्दों को नहीं जानता। पाञ्चजन्य ऐसे सब मुद्दों को सरल करके जनता के सामने प्रस्तुत करता है। और जनता को कहता है, निर्णय आप लीजिए। क्या ठीक और क्या गलत। अर्थात् तथ्यों को प्रामाणिकता के साथ खोजकर जनता के सामने प्रस्तुत करना, निर्णय जनता के ऊपर छोड़ देना। यही पत्रकारिता का आदर्श है।
पत्रकारिता के इस शंखनाद पर राष्ट्रीय विमर्श के लिए पाञ्चजन्य ने मीडिया मंथन की परंपरा प्रारंभ की। यह मीडिया मंथन पत्रकारिता के आदि पुरुष नारद जी की जयंती के अवसर पर होता है। इसी क्रम में पाञ्चजन्य के 75वें वर्ष में इस बार 22 मई को मीडिया महामंथन का आयोजन किया गया। इसके तहत कसौटी नेतृत्व की कार्यक्रम में सात राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए। इन मुख्यमंत्रियों ने राष्ट्रीय और अपने राज्य से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की। सरोकारों की बात की और भविष्य के भारत के लिए अपनी योजनाओं को सामने रखा। पत्रकारिता और सोशल मीडिया के दिग्गजों ने सूचनाओं के दिनों-दिन बदलते दौर की चुनौतियों पर बात की, उनके समाधान की बात की।
बात मात्र विमर्श से समाप्त नहीं होती। पत्रकारिता में नैतिकता, शुचिता और तथ्यान्वेषण बुनियादी जरूरत है। इसमें निरंतरता चाहिए। इसके लिए उन पत्रकारों का सम्मान किया जाना चाहिए जो सत्य पर टिके रहे। उन्हें प्रोत्साहन मिलना चाहिए। इस दृष्टि से हमने विभिन्न श्रेणियों में पत्रकारिता पुरस्कारों की घोषणा की। इन पुरस्कारों के लिए हमने एक तटस्थ ज्यूरी बनाई ताकि पुरस्कारों की शुचिता बनी रहे।
पाञ्चजन्य की कसौटी
कहते हैं, परिवर्तन अपरिवर्तनीय नियम है। बदलाव के बावजूद अपने बीजभाव को बचाए रखना ही बड़ी बात है। पाञ्चजन्य की पत्रकारीय यात्रा में यह बड़ी बात बहुत अच्छे से रेखांकित दिखती है। पाञ्चजन्य ने आकार और साज-सज्जा में बदलाव को लेकर समय-समय पर तरह-तरह के प्रयोग किए। किन्तु राष्ट्रीय विचारों के प्रसार के लिए ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता की अपनी धुरी से यह जरा भी नहीं डिगा। संक्षेप में कहें तो-राष्ट्रीय विचार को बनाए रखते हुए जनप्रियता, पाञ्चजन्य की कसौटी सदा यही रही।
अनेक पत्रिकाएं पिछले 75 वर्ष में आई और गई। लेकिन पाञ्चजन्य 75 वर्ष की लंबी यात्रा के बाद भी हिम्मत के साथ विश्व पटल पर और विशेष रूप से भारत के लोकमानस के बीच में खड़ी है। अनेक जटिल और कठिन विषयों पर पाञ्चजन्य ने देश की जनता का प्रबोधन किया है। कठिन से कठिन विषयों को सरलता के साथ जनता को समझाने का प्रयत्न किया है।
महापुरुषों को स्वार्थ के खांचे में बांटने, उन्हें एक की बपौती और दूसरे के शत्रु के रूप में प्रस्तुत करने वाली राजनीतिक चाल, अकादमिक छल के विरुद्ध भी पाञ्चजन्य ने महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी है। महापुरुषों को खंड-खंड देखने के दृष्टिकोण को सुधारते हुए पाञ्चजन्य ने देश के समक्ष महापुरुषों को समग्रता से उनके सही परिप्रेक्ष्य में रखने का गुरुत्तर दायित्व भी संभाला।
इस तथ्यपरक समग्रता से विमर्श की धारा तो बदली ही, साप्ताहिक पत्रिकाओं के लिए तकनीकी चुनौती के दौर में पाञ्चजन्य लगातार नए पाठक जोड़ने और प्रसार के नए कीर्तिमान स्थापित करने वाला साप्ताहिक बना।
दायित्व एवं आदर्श का निर्वाह
आज 130 करोड़ देशवासियों को भिन्न-भिन्न मुद्दों पर राष्ट्रीय विचारों से अवगत कराना, यह पाञ्चजन्य का दायित्व है। सारे देश को सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से एक बनाए रखना उसका दूसरा प्रमुख दायित्व है। जब कभी सरकार रास्ता बदलती है और रास्ता ऐसी ओर जाता है जिससे देश को कोई हानि होने वाली है, तो ऐसी बातों पर जनता को जागरूक करना, जनता का प्रबोधन करना, यह दायित्व पाञ्चजन्य का है।
अनेक बार जटिल मुद्दे खड़े हो जाते हैं। हमारे देश का जो नागरिक है, वह सामान्यजन है। सामान्य जन जटिल मुद्दों को नहीं जानता। पाञ्चजन्य ऐसे सब मुद्दों को सरल करके जनता के सामने प्रस्तुत करता है। और जनता को कहता है, निर्णय आप लीजिए। क्या ठीक और क्या गलत। अर्थात् तथ्यों को प्रामाणिकता के साथ खोजकर जनता के सामने प्रस्तुत करना, निर्णय जनता के ऊपर छोड़ देना। यही पत्रकारिता का आदर्श है। पाञ्चजन्य उस आदर्श का निर्वाह पिछले 75 वर्ष से कर रहा है।
‘बात भारत की’ जैसे गर्वीले उद्घोष के साथ पाञ्चजन्य की पत्रकारिता उस दिशा में बढ़ रही है जो समय का आह्वान है, जिसका रास्ता दीनदयाल जी और अटल जी सरीखे पुरखों ने दिखाया था।
@hiteshshankar
टिप्पणियाँ