राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने कहा कि विश्वभर में अनेक चिकित्सा पद्धतियां हैं, लेकिन आयुर्वेद इससे अलग हैं। इसका अर्थ है साइंस ऑफ लाइफ। आयुर्वेद में रोग के उपचार के साथ-साथ रोग के निवारण पर भी बल दिया जाता है। यह समय आयुर्वेद के ज्ञान को अधिकाधिक समझने और तकनीकी मापदंडों को परिमार्जित कर विश्व को देने का है। आज से हजारों साल पहले चरक संहिता में कहा गया था कि भोजन से पहले हाथ, पैर और मुंह धोना आवश्यक है। इससे बीमारियों से भी बचा सकता है। कोविड-19 के दौरान इसके माध्यम से लाखों लोगों के जीवन की रक्षा हुई है।
राष्ट्रपति कोविंद रविवार को मध्यप्रदेश के उज्जैन में आयोजित अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन के 59वें अधिवेशन को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्यपाल मंगुभाई पटेल मौजूद रहे। राष्ट्रपति ने कहा कि उज्जैन से मैं पूरी तरह वाकिफ हूं। सचमुच में भारत गांव का देश है और गांव में जो पारंपरिक चिकित्सा की व्यवस्था है, वह आज भी आयुर्वेद की है। किसी भी चिकित्सा पद्धति ने इसका स्थान अभी तक नहीं लिया। उन्होंने कहा कि अवंतिका, प्रतिकल्पा जैसे पौराणिक नामों को धारण करने वाली यह नगरी है। यह कृष्ण और सुदामा को शिक्षा देने वाले महर्षि सांदीपनी के गुरुकुल की नगरी है। यह भगवान महाकाल, मंगलकारी भगवान मंगलनाथ की भूमि है। इसके साथ यह प्रकांड ज्योतिषविद पंडित सूर्यनारायण व्यास की जन्मस्थली भी है। ऐसी पावन भूमि को मैं नमन करता हूं।
राष्ट्रपति ने कहा, यह जानकर गौरव होता है कि मॉरीशस सहित विश्व के लगभग 20 देशों में आयुर्वेद में अनुसंधान किया जा रहा है। भारत सरकार ने समय-समय पर भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए अनेक उपाय किए हैं, परंतु वर्ष 2014 में पृथक आयुष मंत्रालय की स्थापना के बाद इस कार्य में और तेजी आई है। उन्होंने कहा कि मप्र में राज्यपाल मंगुभाई पटेल के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चिकित्सा सुविधाओं को मध्यप्रदेश में लगातार संबल मिलता रहे और यह प्रदेश आयुर्वेद चिकित्सा का गंतव्य बने। आप सब मिलकर मध्यप्रदेश को इंडिया का एक आयुर्वेद सेंटर स्थापित करने में मदद करें तो उसका क्रेडिट आपको और मध्यप्रदेश सरकार को भी जाएगा।
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि आयुर्वेद प्रशासन से जुड़े लोगों से ये अपेक्षा है कि आयुर्वेद के संरक्षण और विस्तार के समक्ष नीतिगत बाधाओं को दूर किया जाए और आयुर्वेद के प्रति जनसामान्य में जागरुकता बढ़ाई जाए। आयुर्वेद शिक्षकों से अपेक्षा है कि ऐसे योग्य चिकित्सक तैयार करें जो लोगों को व्यापक तौर पर किफायती उपचार उपलब्ध कराने में अपना अधिक से अधिक योगदान दे सकें। अनुसंधान से जुड़े हुए लोगों से अपेक्षा है कि रोगों के उपचार एवं महामारी विज्ञान के नए-नए क्षेत्रों में आयुर्वेद की प्रभावशीलता और लोकप्रियता को बढ़ाया जाए।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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