महामंथन के तीसरे सत्र में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल से ‘पाञ्चजन्य’ के संपादक हितेश शंकर ने बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उसी वार्ता के मुख्य बिंदु
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल से पहला सवाल भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने से संबंधित पूछा गया। प्रश्न था कि एक बार एक प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘‘मैं एक रुपए भेजता हूं, जो आम जन तक पहुंचते-पहुंचते 15 पैसा रह जाता है।’’ इस भ्रष्ट तंत्र को आपने कैसे तोड़ा? इस पर उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो मैं उनको दाद देता हूं कि उन्होंने सच को स्वीकारा। केंद्र और प्रदेशों में भाजपा सरकार आने से पहले ही हमने घोषणापत्र में भ्रष्टाचार से मुक्त और पारदर्शी सरकार देने का वादा किया था और हम इसमें सफल भी रहे हैं। इसमें नई तकनीक और डिजिटलीकरण ने काफी सहायता की है।
दूसरा सवाल उनके तकनीकी प्रेम से जुड़ा था। इसमें उनसे पूछा गया कि आप इतने टेक्नोफ्रेंडली कैसे हैं? आपने जापानी भाषा भी सीखी है। इस पर उन्होंने कहा कि शुरू से नई-नई चीजें सीखना मेरा शौक रहा है। हर किसी से, यहां तक कि अपने विरोधी से भी कुछ सीखने को मिलता है तो मैं पीछे नहीं हटता। मैं तमिल और जापानी भाषा भी बोल सकता हूं। इसके लिए मैंने ‘ट्यूटर’ भी रखा था। इससे कामकाज में भी सहायता मिलती है। अगला प्रश्न हरियाणा की राजनीति में जाति के प्रभाव से जुड़ा था। इसमें उनसे पूछा गया कि जातिगत राजनीति और भ्रष्टाचार वाली हरियाणा की पहचान आपने कैसे बदली? उन्होंने कहा कि हमें रा.स्व.संघ से संस्कार मिले हैं, ऐसे में (हरियाणा की) पहचान बदलने में काफी सहायता मिली। हां, यह बात सही है कि राजनीति में अपने स्वार्थ के लिए लोग जाति का सहारा लेते हैं, लेकिन हमने नारा दिया, ‘एक हरियाणा, हरियाणवी एक।’ इसका लाभ मिला, भेदभाव में कमी आई है। शासन-प्रशासन में तकनीक के ज्यादा से ज्यादा प्रयोग ने भ्रष्टाचार को कम करने में मदद की।
आगे उनसे पूछा गया कि किसी वर्ग को खुश करना और बाकी को कमजोर करना या पीछे छोड़ देना, यह भी राजनीति का हिस्सा रहा है। इससे कैसे निपटे? इस पर उन्होंने कहा कि आज हमारे समाज में युवाओं का एक ऐसा बड़ा वर्ग तैयार हो चुका है, जो जाति को विकास में बाधा मानता है। लोगों में भी जागरूकता बढ़ी है। पिछले आठ साल में जाति आधारित राजनीति करने वाले नेता पीछे रह गए हैं। जातिगत विषय अब पीछे होता जा रहा है। हमारा मकसद है कि लोग खुश रहें। अगला सवाल खेल से जुड़ा था। उनसे पूछा गया कि पहले कहावत थी कि खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब, पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब।
आपने इस कहावत को ही पलटकर रख दिया है। इस पर उन्होंने कहा कि इसके कई पहलू हैं। आज पढ़ने-लिखने वाला भी नवाब बनेगा और खेलने-कूदने वाला भी। हमारे छोरे ही नहीं, बल्कि छोरियां भी खेल के मैदान में लट्ठ गाड़ रही हैं। हरियाणा देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में भी ओलंपिक में स्वर्ण पदक लाने वाले को सबसे ज्यादा नकद ईनाम देने में अव्वल है। हम स्वर्ण पदक लाने वाले अपने खिलाड़ी को छह करोड़ रु., जबकि रजत या कांस्य लाने वाले को 2.5 या तीन करोड़ रु. देते हैं। इसके साथ ही प्रदर्शन के आधार पर ‘क्लास वन’ से लेकर ‘ग्रुप डी’ तक में नौकरी भी देते हैं। यही नहीं, चौथे स्थान पर रहने वाले को भी 50,00,000 रु. देते हैं। साथ ही खिलाड़ियों के लिए नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण रखा है। यही कारण है कि खेल के क्षेत्र में युवा देश-दुनिया में नाम कमा रहे हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव कैसे लाए? इसके उत्तर में श्री मनोहर लाल ने कहा कि आज तकनीक का जमाना है। कोरोना काल में आनलाइन शिक्षा वक्त की जरूरत बन गई थी, लेकिन हर बच्चे के पास इतनी सुविधाएं नहीं थीं कि वह आनलाइन पढ़ाई कर सके। ऐसे में हमने 650 करोड़ रु. के टैबलेट 12वीं, 11वीं और 10वीं के बच्चों को बांटे, ताकि उनकी शिक्षा में बाधा न आए। साथ ही शिक्षकों में भी 33,000 टैबलेट बांटे।
नई तकनीक के साथ नई योजनाओं के क्रियान्वयन पर उनकी क्या सोच है? इस सावल पर उन्होंने बताया कि नई तकनीक के उपयोग से योजनाएं लागू करने में मदद मिलती है। पहले शिक्षा विभाग में स्थानांतरण का ही काम होता था। इसलिए हमने स्थानांतरण नीति बनाई। इस नीति से 92 प्रतिशत शिक्षक खुश हैं। इसी तरह, स्वामित्व योजना लाई गई, जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बहुत पसंद आई और उन्होंने इसे पूरे देश में लागू करवाने को कहा। परिवार पहचान योजना भी एक ऐसी ही जनता के हित की योजना है। इसमें हमारे पास परिवार का पूरा विवरण होता है। अभी तक 69,00,000 परिवारों को पहचान पत्र मिल चुका है। इसके जरिए इन परिवारों को 300 से ज्यादा योजनाओं से जोड़ा गया है उन्हें बार-बार अपने कागज नहीं दिखाने पड़ते। इसके अलावा अंत्योदय योजना है, इसमें वे परिवार आते हैं जिनकी सालाना आय 1,00,000 रु. से कम है। इस योजना के अंतर्गत ऐसे परिवार के कम से कम एक सदस्य को रोजगार दिया जाता है।
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