पाकिस्तान में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता संभलती नहीं दिख रही। अनुमान है कि मौजूदा स्थिति में तत्काल सुधार नहीं हुआ तो पाकिस्तान दो से तीन महीने में दिवालिया हो जाएगा। सेना वर्तमान सरकार पर जुलाई तक चुनाव कराने का दबाव डाल रही और इस कारण वह अलोकप्रिय फैसले करने से हिचक रही है
मित्रो! निवेदन है कि पाञ्चजन्य का 30 जनवरी, 2022 का अंक संभालकर पास रखें और यदि उपलब्ध न हो, तो इसकी व्यवस्था कर लें। इस अंक में आने वाले कई सालों का घटनाक्रम दर्ज है और हमारे भविष्य की आशाओं और उमंगों के भारत की लय, ताल भी।
एक माह पहले बनी वर्तमान पाकिस्तान सरकार के गिरने का अंदेशा जोर पकड़ रहा है। पाकिस्तानी सेना एक बार फिर सत्ता में हस्तक्षेप से बाज नहीं आ रही। इमरान खान द्वारा चलाए जा रहे सेना के खिलाफ दुष्प्रचार ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है और सेना इसका दबाव महसूस कर रही है। इसके चलते सेना ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से जुलाई तक चुनाव करवाने की इच्छा जताई है। लेकिन सरकार ऐसा करने के लिए तैयार नहीं है। इमरान सरकार के आखिरी दिनों में रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के चलते दुनिया भर में तेल की कीमतों में वृद्धि हो रही थी और पाकिस्तान में भी इसके असर में कीमतों में वृद्धि जरूरी थी, लेकिन इमरान सरकार ने ऐसा नहीं किया बल्कि तेल के दामों में 10रुपये की कटौती कर दी। उनके ऐसा करने के पीछे अपनी गिरती सरकार पर बढ़ती कीमतों का बोझ न लेने की मंशा थी।
सरकार का अनिर्णय
इसका दबाव अर्थव्यवस्था पर पड़ना ही था। आज दो माह से अधिक देरी के बाद तेल के दामों में बढ़ोतरी की बात की जा रही है तो मौजूदा सरकार की ऐसा करने में टांगें कांप रही हैं। तार्किक रूप से इस वृद्धि को कम से कम तीस रुपये तक होना है लेकिन ऐसी वृद्धि के बाद महंगाई के जिस तूफान का जन्म होगा, उसमें मौजूदा सरकार को अपने उड़ जाने का खतरा है। उसे डर है कि ऐसी परिस्थिति में सरकार को भारी चुनावी नुकसान होगा।
पाकिस्तानी सेना एक बार फिर सत्ता में हस्तक्षेप से बाज नहीं आ रही। इमरान खान द्वारा चलाए जा रहे सेना के खिलाफ दुष्प्रचार ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है और सेना इसका दबाव महसूस कर रही है। इसके चलते सेना ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से जुलाई तक चुनाव करवाने की इच्छा जताई है। लेकिन सरकार ऐसा करने के लिए तैयार नहीं है।
ऐसा नहीं है कि शरीफ सरकार इन दामों में वृद्धि नहीं करना चाहती, दरअसल वह यह चाहती है कि इस वृद्धि के बाद वह अगले डेढ़ साल शासन करती रहे ताकि इस वृद्धि के कारण सत्तारूढ़ दल पर आने वाले दुष्परिणामों को कम कर सके। लेकिन सेना इमरान खान की तरफ से आने वाले आरोपों की बौछार को झेल नहीं पा रही और अगर आप पाकिस्तानी सेना के इतिहास से परिचित हैं तो जानते होंगे कि उसके अधिकारियों के लिए देशहित से बहुत पहले स्वहित आता है। लग रहा है कि उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए देश को भट्टी में झोंकने का फैसला कर लिया है।
यदि सरकार संसद भंग कर चुनाव की घोषणा करती है तो आगामी महीनों के लिए एक अंतरिम सरकार बनाई जाएगी, जो चुनाव होने तक सरकारी कामकाज चलाएगी। इस अंतरिम सरकार में मूल रूप से सेवानिवृत्त फौजी, जज और सेवानिवृत्त नौकरशाह होंगे। इससे राजनीतिक दल अपने को महंगाई के दुष्प्रभावों से अलग रख पाएंगे। लेकिन अनुमान बताते हैं कि किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने वाला और चुनाव के बाद भी मुख्य रूप से पाकिस्तान मुस्लिम लीग और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी को मिलकर सरकार बनानी होगी।
प्रश्न यह है कि यदि यह छह महीने बाद होना है तो आज भी तो यही दोनों दल सत्ता में हैं, तो भला दोनों मिलकर आज वे फैसले क्यों नहीं कर सकते जो छह महीने बाद करने हैं। कारण सिर्फ एक है और वह है सेना का स्वार्थ और इसके चलते उसका सत्ता के गलियारों में हस्तक्षेप।
नवाज की चेतावनी
पिछले सप्ताह नवाज शरीफ ने अपने भाई और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ मंत्रिमंडल के मुख्य सदस्यों को लंदन आमंत्रित किया ताकि आगामी रणनीति पर संवाद किया जा सके। नवाज शरीफ का मानना था कि सेना को यह स्पष्ट बता दिया जाए, कि यह पाकिस्तान के इतिहास का निर्णायक बिंदु है। यदि सेना यहां से राजनीति में अपना दखल बंद करती है और अपनी संस्था के भीतर मौजूद उन लोगों के विरुद्ध कार्यवाही करती है जो संविधान की राहों में रोड़े अटकाते रहे हैं, तभी इस सरकार के सत्ता में होने का कोई औचित्य बनता है।
उनका यह भी कहना था कि इमरान खान समेत उन तमाम राजनीतिक और सेना से जुड़े उन अधिकारियों पर देशद्रोह के मुकदमे चलाए जाएं, जिन्होंने जान-बूझकर संविधान के पालन में मुश्किलें खड़ी कीं। इसमें आईएसआई के पूर्व निदेशक और वर्तमान में पेशावर कोर कमांडर फैज हमीद और उसके सहयोगियों के साथ-साथ इमरान खान, वर्तमान राष्ट्रपति आरिफ अल्वी पर भी देशद्रोह के मुकदमे चलें। पर लगता यह है कि पाकिस्तानी सेना अपने स्वार्थ से आगे कुछ भी नहीं देख पा रही और उसके लिए स्वार्थ ही सर्वोपरि है।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने चीन का दौरा करने की भी इच्छा जताई है, लेकिन चीन ने अभी तक इसके लिए भी कोई तारीख नहीं दी है। इस बीच विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो 18 मई को अमेरिका जा रहे हैं। देखना है कि वहां क्या होता है।
कर्ज के लाले
उधर आईएमएफ की ओर से अभी तक कोई सकारात्मक संकेत नहीं आया है। 18 मई को दोहा में पाकिस्तानी वित्त मंत्री मिफ्ता इस्माइल आईएमएफ के दल से मिलेंगे और यह प्रयास करेंगे कि वहां से अगली किस्त मिल पाए। आईएमएफ की परेशानी यह है कि वह एक अस्थिर सरकार पर अपनी नीतियों को अमली जामा पहनाने का भरोसा नहीं कर सकता। वह चाहेगा कि एक स्थिर सरकार हो जो निर्धारित आर्थिक नीतियों पर चले और सुनिश्चित करें कि आईएमएफ की रकम वापस की जा सके।
स्थायित्व पाकिस्तान की सरकार से अभी बहुत दूर है। बिना आईएमएफ की सहमति के पाकिस्तान के मित्र देश अर्थात् सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भी कर्ज देने के लिए सहमत नहीं हैं और न ही चीन से इसकी कोई उम्मीद की जा सकती है। इस माह के अंत में चीन को एक अरब डॉलर का भुगतान किया जाना है लेकिन अपनी असमर्थता के चलते पाकिस्तान ने इसके लिए मोहलत मांगी है। चीन ने अभी तक इसका कोई उत्तर नहीं दिया है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने चीन का दौरा करने की भी इच्छा जताई है, लेकिन चीन ने अभी तक इसके लिए भी कोई तारीख नहीं दी है। इस बीच विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो 18 मई को अमेरिका जा रहे हैं। देखना है कि वहां क्या होता है।
एक ऐसे वक्त जब देश बेहद खतरनाक आर्थिक स्थिति से जूझ रहा है, पाकिस्तानी सेना ने सत्ता पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए न्यायपालिका का इस्तेमाल करने का फैसला किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने एक साथी जज की शिकायत पर सुओ मोटो नोटिस लेते हुए सरकार पर आशंका आशंका जताई है कि वह जांच अधिकारियों के स्थानांतरण के माध्यम से प्रधानमंत्री और मंत्रियों के विरुद्ध चल रहे मुकदमों में प्रभाव डाल रही है।
मनपसंद बेंच बनवा कर मनपसंद फैसले लेने का क्रम एक बार फिर शुरू हो गया है। माना जा रहा है कि इस सरकार की उम्र अधिक नहीं है और सेना इसे न्यायालय के माध्यम से एक बार फिर बर्खास्त करवाएगी। आने वाले सप्ताह पाकिस्तान की सरकार पर बहुत भारी है।
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