जेठ के दारुण आतप से, तप के जगती तल जावै जला ,
नभ मंडल छाया मरुस्थल सा, दल बाँध के अंधड़ आवै चला ,
जलहीन जलाशय, व्याकुल हैं पशु–पक्षी, प्रचंड है भानु कला,
किसी कानन कुञ्ज के धाम में प्यारे, करै बिसीराम चलौ तो भला |
प्रख्यात साहित्यकार श्रीधर पाठक की यह पंक्तियां आपने सुनी जरूर होंगी। गर्मी और सूर्य के प्रचंड ताप का इसमें जिक्र है। देश में जेठ का महीना भीषण गर्मी का होता है। इसमें मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी भी त्राहि-त्राहि करने लगते हैं। घर से निकलते ही गला सूखने लगता है। राह में कुछ जगहों पर पानी से भरे घड़े देखने को मिल जाते हैं। लेकिन पशु-पक्षियों पर कम लोगों का ध्यान जाता है। जेठ का माह आने वाला है और इतनी भीषण गर्मी में पशु-पक्षी व्याकुल न हों, इसके लिए जेएनयू के विद्यार्थी सराहनीय कार्य कर रहे हैं।
एसएफडी (स्टूडेंट्स फॉर डेवलपमेंट) ने 14 मई को विश्वविद्यालय परिसर में मिट्टी के पात्रों को विभिन्न स्थानों पर रखकर पशु-पक्षियों के लिए पानी का प्रबंध किया। जेएनयू के विद्यार्थियों ने बढ़-चढ़कर कार्यक्रम में हिस्सा लिया। कुल 75 विद्यार्थी इस अभियान में शामिल हुए, जिनमें 35 छात्राएं थीं।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जेएनयू परिसर में चिड़ियों की 240 प्रजातियां हैं और पूरी दिल्ली में तितलियों की 110 प्रजातियों में से 80 प्रजाति सिर्फ जेएनयू परिसर में पाई जाती हैं। गर्मी के मौसम में पानी नहीं मिलने के कारण कई पक्षियों की मृत्यु हो जाती है। पानी के प्राकृतिक स्रोत खत्म होते जाने के कारण पशु और पक्षियों के लिए विकट स्थिति पैदा हो रही है। हालांकि जेठ के माह में जलाशय भी जलहीन हो जाते हैं।
एसएफडी जेएनयू परिसर में तालाब सफाई अभियान, पक्षियों के लिए पानी एवं हर्बल पौधों का रोपण जैसे कार्यक्रम करता रहता है। तीन दिन तक यह अभियान चलेगा, जिसमें अलग-अलग जगह मिट्टी के पात्र रखे जाएंगे। कार्यकर्ता नियमित तौर पर इन पात्रों में पानी भरेंगे, जिससे पक्षी और पशुओं को पानी की समस्या न हो।
इस योजना पर भी हो रहा काम
एसएफडी जेएनयू के संयोजक निशांत विद्यार्थी और सहसंयोजक स्वास्तिक बहेरा बताते हैं कि वह छात्रों के सहयोग से जेएनयू की चंद्रभागा झील की सफाई एवं जीर्णोद्धार की योजना आगे बढ़ाने पर भी काम कर रहे हैं।
टिप्पणियाँ