‘कोर्ट कमिश्नर’ के नेतृत्व में तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे के तल पर ‘वीडियोग्राफी’ करने जा रही टीम का विरोध कर मुसलमानों ने बता दिया कि वे न तो न्यायालय को मानते हैं और न ही भारत के संविधान को
गत दिनों वाराणसी स्थित तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद के संचालकों द्वारा भड़काने पर मुसलमानों की उग्र भीड़ ने ‘कोर्ट कमिश्नर’ को न्यायालय के आदेश के अनुसार काम नहीं करने दिया। बता दें कि एक याचिका पर सुनवाई के बाद वाराणसी जिला न्यायालय ने ‘कोर्ट कमिश्नर’ नियुक्त किया था। उन्हें यह काम दिया गया था कि तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने और उसके आसपास के क्षेत्र का वीडियो बनवाएं और अदालत को 10 मई तक अपनी रपट दें। लेकिन मुसलमानों की उग्र भीड़ ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। इसके बाद मामला एक बार फिर न्यायालय पहुंचा। 12 मई को न्यायालय ने साफ कर दिया कि ज्ञानवापी परिसर का सर्वे होगा और 17 मई तक उसकी रपट भी मांगी गई है। आगे बढ़ने से पहले मामले को जानना जरूरी है।
उल्लेखनीय है कि कथित ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के साथ आदि मां शृंगार गौरी का पिंड और उसके सामने एक चबूतरा है। यह पूरा क्षेत्र आदि मां शृंगार गौरी के स्थान के नाम से विख्यात है। इसके बावजूद हिंदू वहां मां शृंगार गौरी की निरंतर पूजा नहीं कर सकते। वर्ष में केवल एक बार चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्थ नवरात्र को ही पूजा करने की अनुमति है। 1991 से पहले वहां निरंतर पूजा होती थी, लेकिन 1992 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान मुलायम सिंह की सरकार ने एक मौखिक आदेश से वहां पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया। बाद में जब हिंदूनिष्ठ ने इसका विरोध किया तो वर्ष में एक बार पूजा करने की अनुमति दी गई।
लेकिन अनेक हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों की मांग थी कि वहां रूप से हिंदुओं को मां शृंगार गौरी की नियमित पूजा का अधिकार मिलना चाहिए। इसी मांग को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन और ‘विश्व वैदिक सनातन संघ’ के प्रमुख जितेन्द्र सिंह ‘बिसेन’ ने वाराणसी जिला न्यायालय में एक याचिका दायर करने की तैयारी शुरू की। जब पूरी तैयारी हो गई तब 18 अगस्त, 2021 को वाराणसी जिला न्यायालय में सीता साहू, लक्ष्मी देवी, मंजू व्यास, रेखा पाठक और राखी सिंह की ओर से एक याचिका दायर की गई।
इसमें मांग की गई कि श्रद्धालुओं को मां शृंगार गौरी मंदिर में प्रतिदिन दर्शन-पूजन की अनुमति दी जाए। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मां शृंगार गौरी, भगवान गणेश, हनुमान जी, आदि विश्वेश्वर, नंदी जी और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भूखंड संख्या 9130 में विराजमान हैं। उक्त भूखंड काशी विश्वनाथ गलियारे के बिल्कुल करीब है। इनकी मांग यह भी है कि मस्जिद की इंतजामिया कमेटी इन मूर्तियों को क्षति न पहुंचाए। इस याचिका पर सुनवाई करने के बाद न्यायालय ने वहां की वस्तुस्थिति की जानकारी पाने के लिए ‘कोर्ट कमिश्नर’ नियुक्त किया। इसके विरोध में मुस्लिम पक्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय गया, लेकिन उच्च न्यायालय ने जिला न्यायालय के निर्णय को सही माना।
इसके बाद ‘कोर्ट कमिश्नर’ दोनों पक्षों के वकील और अन्य संबंधित अधिकारियों के साथ तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद पहुंचे, लेकिन मुसलमानों के विरोध के कारण वे मस्जिद के अंदर नहीं जा सके। ‘कोर्ट कमिश्नर’ को मस्जिद के अंदर नहीं जाने देने के पक्ष में ‘ज्ञानवापी इंतजामिया कमेटी’ के सचिव ने जो चार तर्क दिए, वे बेहद गंभीर हैं। पहला तर्क था हम किसी गैर-मुस्लिम को मस्जिद के अंदर नहीं घुसने देंगे। दूसरा तर्क था अदालत ने हमारी बात नहीं सुनी इसलिए हम उसकी बात नहीं सुनेंगे। तीसरा तर्क था मस्जिद के अंदर की वीडियोग्राफी या फोटो खींचने से हमारी सुरक्षा को खतरा है। चौथा तर्क था यदि अदालत कहे कि मेरी गर्दन काट के ले आओ तो क्या अदालत द्वारा नियुक्त अधिकारी को मैं अपनी गर्दन काटकर दे दूंगा!
श्रद्धालुओं को मां शृंगार गौरी मंदिर में प्रतिदिन दर्शन-पूजन की अनुमति दी जाए। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मां शृंगार गौरी, भगवान गणेश, हनुमान जी, आदि विश्वेश्वर, नंदी जी और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भूखंड संख्या 9130 में विराजमान हैं।
उनके इन तर्कों का विरोध करते हुए विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा, ‘‘एक मस्जिद की इंतजामिया कमेटी द्वारा दिया गया यह वक्तव्य न्यायालय के लिए तो कोई महत्व नहीं रखता, किंतु विदेशी आक्रांताओं के समर्थकों की चाल, चरित्र और चेहरे को अवश्य उजागर करता है।’’ इसके साथ ही उन्होंने प्रश्न उठाया कि क्या भारत में मस्जिदों के अंदर न्यायालय या देश के कानून का पालन करने वाली संस्थाओं को भी जाने की अनुमति नहीं है? क्या अब न्यायालय का भी मजहब देखा जाएगा? क्या यह न्यायालय की अवमानना नहीं है? उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग सत्य पर पर्दा डाल और असत्य की ढाल ओढ़कर देश में सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने का एक कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने यह भी पूछा कि जनता यह जानना चाहती है कि आखिरकार मस्जिद में ऐसी क्या गुप्त चीजें हैं जिनको छुपाया जा रहा है और क्या किसी मस्जिद में आज तक कोई गैर-मुस्लिम घुसा ही नहीं? क्या भारत की न्याय-व्यवस्था पर आपको कोई विश्वास नहीं?
ज्ञानवापी संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ज्ञान का कुआं होता है। विवादित परिसर के अंदर नंदी का मुख देखकर समझ में आता है कि वहां पहले मंदिर था।’’ बीएचयू में ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर और काशी विद्वत परिषद के महामंत्री राम नारायण द्विवेदी कहते हैं, ‘‘इतिहासकारों की मानें तो ज्ञानवापी कूप आज भी मौजूद है। मस्जिद के तहखानों का सर्वे होगा तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।’’
वहीं अंजुमन इंतजामिया कमेटी के अधिवक्ता अभय यादव का कहना था, ‘‘हम सर्वे का नहीं, बल्कि ‘कोर्ट कमिश्नर’ का विरोध कर रहे हैं, जो पक्षपात कर रहे हैं। न्यायालय ने मस्जिद के अन्दर जाकर सर्वे करने का कोई आदेश पारित नहीं किया है। जिस प्लाट संख्या 9130 का उल्लेख किया गया है, वह प्लाट कहां तक है, यह कैसे तय होगा? यह कैसे तय होगा कि जहां पर ज्ञानवापी मस्जिद है, वह प्लाट संख्या 9130 का हिस्सा है।’’ वहीं जितेन्द्र सिंह ‘बिसेन’ कहते हैं, ‘‘अंजुमन इंतजामिया के अधिवक्ता मामले को कानूनी दांव-पेंच में उलझाने का प्रयास कर रहे हैं। प्लाट संख्या 9130 पर ही ज्ञानवापी मस्जिद है।
सर्वे के समय अगर मस्जिद के अंदर की वीडियोग्राफी हो रही है तो उनको इस बात पर आपत्ति क्यों है? मस्जिद के अंदर तो कोई भी जा सकता है। मस्जिद परिसर में मुसलमानों के अतिरिक्त पुलिस तो जाती ही है। अब अगर सर्वे करने वाली टीम वहां जाती है, तो इसमें इतना हंगामा करने की क्या जरूरत थी?’’ इस सवाल का उत्तर उन्होंने खुद ही दिया। उन्होंने कहा,‘‘तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद का सच दुनिया के सामने न आ जाए, इसलिए न्यायालय के आदेश का भी विरोध किया जा रहा है। जो भी तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद को देखता है, वह तुरंत कहता है कि इसे तो मंदिर तोड़कर बनाया गया है। मस्जिद की दीवारें भी चीख-चीख कर कह रही हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद को बाबा विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाया गया है।’’
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रो. राजीव श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘औरंगजेब ने 1669 मेें मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद ब
दी थी। ज्ञानवापी संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ज्ञान का कुआं होता है। विवादित परिसर के अंदर नंदी का मुख देखकर समझ में आता है कि वहां पहले मंदिर था।’’ बीएचयू में ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर और काशी विद्वत परिषद के महामंत्री राम नारायण द्विवेदी कहते हैं, ‘‘इतिहासकारों की मानें तो ज्ञानवापी कूप आज भी मौजूद है। मस्जिद के तहखानों का सर्वे होगा तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।’’
अंत में कह सकते हैं कि मुस्लिम पक्ष ज्ञानवापी के सच को दबाने के लिए अदालत और अनुसंधान का विरोध कर रहा है। ल्ल
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