महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव के दौरान अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण को लेकर मौजूदा गतिरोध के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने हेतु राजनीतिक चर्चा तेज हो गई है। उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग को नगर निगम के चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के सुनिश्चित करने के आदेश देने के पश्चात चुनाव आयोग ने नगर निगमों को प्रभाग परीसीमन का कार्य तुरंत पूरा करने के लिए सूचित किया है। परीसीमन के नाम पर नगर निगम के चुनाव लंबित रखने का राज्य सरकार का प्रयास अब विफल होता दिखाई दे रहा है।
ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव होने पर ओबीसी समाज का गुस्सा राज्य सरकार में सत्तारूढ महाविकास आघाडी पर न फूटे इसलिए फडणवीस सरकार को जिम्मेदार ठहराने का प्रयास काँग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की ओर से किया जा रहा है।
महाविकास आघाडी की सरकार स्थापित होने के पश्चात जो पहला विधानसभा अधिवेशन हुआ था उस समय 13 दिसंबर 2019 को उच्चतम न्यायालय का फैसला आया था जिसमे सरकार को ट्रिपल टेस्ट पार करने के लिए निर्देशित किया गया था। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देवेन्द्र फडणवीस ने तब सरकार को मागासवर्ग आयोग गठित कर इम्पिरिकल डेटा इकठ्ठा करने के लिए तुरंत पहल करने का आग्रह किया था। लेकिन सत्तापक्ष के नेताओं ने केंद्र सरकार की तरफ निर्देश कर जनगणना का डेटा देने का प्रस्ताव रखा था। तब सरकार की ओर से कहा गया था की, ‘फडणवीस अपने पक्ष के केंद्र सरकार की ओर से जनगणना का डेटा लाए जिसके लिए वे मुख्यमंत्री रहते केंद्र को खत लिख कर डेटा मांगा था ।’
लेकिन फडणवीस का कहना था कि तब यह ट्रिपल टेस्ट का मसला उच्चतम न्यायालय ने नही दिया था। जनगणना का डेटा पचास प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण को जस्टिफाय करने हेतु मांगा गया था, उसका इम्पिरिकल डेटा से कोई संबंध नही था। तब से ले कर पिछले दो साल में सरकार ने इम्पिरिकल डेटा के लिए कुछ प्रयास नही किए । केंद्र से जनगणना का डेटा लाने की बात दोहराई गयी। वह डेटा उच्चतम न्यायालय ने नकारा और इम्पिरिकल डेटा पेश करने को कहा। गौरतलब है कि सांगली जिले के आटपाडी तहसील में कुछ युवकों ने दस गांवों का इम्पिरिकल डेटा केवल सात दिन में इकठ्ठा कर जिल्हाधिकारी को सौंपा था। लेकिन दो साल तक राज्य सरकारने इस डेटा के लिए कोई प्रयास न करते हुए केंद्र की तरफ इशारा करते रहें। देवेन्द्र फडणवीस ने सरकार की जम कर आलोचना की। उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद भी सरकार चुनाव टालना चाहती थी लेकिन चुनाव आयोग ने नगर निगम को परीसीमन अंतीम करने के लिए आदेश दे कर चुनावी प्रक्रिया शुरू कर दी है।
आरक्षण के बिना चुनाव होंगे तो ओबीसी समाज में सरकार के प्रती गुस्सा फूटने का डर सत्तापक्ष को सता रहा है। इसलिए ओबीसी आरक्षण के लिए फडणवीस सरकार को जिम्मेदार ठहराने की कोशिशे की जा रही है। इस राजनीतिक बयानबाजी में न जा कर देवेन्द्र फडणवीस ने यह घोषित किया की आरक्षण न होने के बावजूद जब चुनाव होंगे तो भारतीय जनता पार्टी अपने उम्मीदवार तय करते समय 27 प्रतिशत उम्मीदवार ओबीसी समाज से उतारने पर गौर करेगी और आरक्षण को लागू करेेगी। ओेबीसी आरक्षण से प्रतिबद्धता जाहीर करने हेतु यह पहल सराहनीय है और उसका ओबीसी समाज से स्वागत हो रहा है।
महाराष्ट्र की राजनीती में अन्य पिछडा वर्ग हमेशा भारतीय जनता पार्टी का साथ देता आया है। शरद पवार का प्रयास इस अन्य पिछडे वर्ग को लुभाने भले ही रहा हो लेकिन उनकी छवी मराठा नेता होने के कारण उसे जादा समर्थन नही मिल पाया है। महाविकास आघाडी सरकार की अनाकानी और कोर्ट में समय पर बातें न रखने के कारण मराठा आरक्षण और अन्य पिछडा वर्ग का आरक्षण न्यायालय में निरस्त हो गया। देवेन्द्र फडणवीस सरकारने यह आरक्षण दिया था और वह सरकार रहने तक न्यायालय में इस आरक्षण को कुछ हद तक मान्यता प्राप्त की थी। ठाकरे सरकार के कार्यकाल में आरक्षण के मामले में सभी दांव उलटे पडने से असंतोष और गुस्सा है।
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