संस्कृत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले प्रो. भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी ‘वागीश’ शास्त्री (88) का बुधवार की रात निधन हो गया। पद्मश्री से सम्मानित वागीश शास्त्री के निधन से संस्कृत जगत में शोक की लहर है। शहर के एक निजी चिकित्सालय में इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। गुरुवार को उनकी अंतिम यात्रा शिवाला स्थित आवास से निकलेगी।
वागीश शास्त्री के बड़े बेटे आशापति शास्त्री ने बताया कि पिताजी कई दिनों से बीमार चल रहे थे। बीते सोमवार हालत ज्यादा गंभीर होने पर चिकित्सकों ने उन्हें वेंटीलेटर पर रखा था। आज (बुधवार) रात में अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई और रात के करीब 10:30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
आशापति शास्त्री ने बताया कि उनके पिता जी की अंतिम यात्रा सुबह नौ बजे के बाद शिवाला स्थित आवास से हरिश्चंद्र घाट के लिए निकलेगी।
पद्मश्री वागीश शास्त्री योग, तंत्र विद्या के मर्मज्ञ थे। उन्हें वर्ष 2018 में पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया गया था। वागीश शास्त्री को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्कृत, साहित्य, व्याकरण, भाषा-वैज्ञानिक और तंत्र विद्या में योगदान के लिए भी पुरस्कृत किया गया था।
प्रो. वागीश शास्त्री का जन्म 24 जुलाई 1934 में मध्यप्रदेश के सागर जनपद के बिलइया ग्राम में हुआ था। उन्होंने 1959 में वाराणसी के टीकमणि संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत प्राध्यापक के रूप में अपने अध्यापकीय जीवन की शुरुआत की थी। इसके बाद वह संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में अनुसंधान संस्थान के निदेशक व प्रोफेसर के पद पर 1970 में नियुक्त हुए और 1996 तक यहां पर कार्यरत रहे।
वागीश शास्त्री ने 1983 में बाग्योग चेतनापीठम नामक संस्था की स्थापना की थी। यहां पर वह सरल विधि से बिना रटे पाणिनी व्याकरण का ज्ञान देते थे। जिसके लिए कई विदेशियों को उन्होंने संस्कृत सिखायी। बाद में कई देशों का भ्रमण भी किया और कई विदेशी शिष्य भी बने।
प्रो. शास्त्री को राष्ट्रपति द्वारा सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट सम्मान प्रदान किया जा चुका है। 2014 में प्रदेश सरकार की ओर से यशभारती सम्मान मिला था और 2014 में ही संस्कृत संस्थान ने विश्व भारती सम्मान दिया था। 2017 में दिल्ली संस्कृत अकादमी ने महर्षि वेद व्यास सम्मान से सम्मानित किया। इसके अलावा अमेरिका ने सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट गोल्ड ऑफ ऑनर से 1993 में सम्मानित किया।
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