झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खनन पट्टा मामले में जवाब देने के लिए भारत निर्वाचन आयोग से और 1 महिने का समय मांगा था लेकिन आयोग ने उन्हें 10 का समय दिया है। लेकिन जिस तरह से वे फंस गए हैं उसे देखते हुए कहा जा रहा है कि अब वे ज्यादा दिन तक कुर्सी पर नहीं रह पाएंगे।
झारखंड में जबरदस्त सियासी भूचाल आया हुआ है। एक तरफ अपने पद का दुरुपयोग करने की वजह से राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी खतरे में नजर आ रही है, दूसरी तरफ खान और उद्योग विभाग की सचिव पूजा सिंघल पर प्रवर्तन निदेशालय के छापे के बाद भाजपा ने कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है।
एक तरह से कह सकते हैं कि झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बनता दिखाई दे रहा है। भाजपा के कार्यकर्ता राज्य सरकार की शवयात्रा निकाल रहे हैं, इसके जवाब में झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता भाजपा के प्रदेश कार्यालय का घेराव कर रहे हैं। अपने मुख्यमंत्री के बचाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा कह रहा है कि भाजपा जनजाति विरोधी है और इसलिए वह एक जनजाति मुख्यमंत्री को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। इसलिए कभी ईडी, तो कभी अन्य तरीकों से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को परेशान कर रही है। वहीं भाजपा ने झामुमो के इस तर्क को सिरे से खारिज किया है। भाजपा सांसद समीर उरांव कहते हैं कि भाजपा ही वह पार्टी है, जिसने झारखंड में दो-दो जनजातीय समाज के मुख्यमंत्री दिए हैं। उनमें एक बाबूलाल मरांडी और दूसरे अर्जुन मुंडा हैं। झामुमो अपने पापों के कारण लोगों के बीच अपनी विश्वसनीयता खो रहा है। इसलिए वह भाजपा पर झूठे आरोप न लगाए।
दरअसल, झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लेकर दबाव में है। उस दबाव से बाहर निकलने के लिए वह भाजपा पर जनजातीय विरोधी होने का आरोप लगा रही है। वास्तव में हेमंत सोरेन ने अपने नाम से खनन का पट्टा लेकर अपने पैर ही कुल्हाड़ी मार ली है। इस मामले पर भारत निर्वाचन आयोग ने जवाब मांगा है, पर हेमंत को कोई जवाब सूझ नहीं रहा है। उन्हें इस बात का आभास है कि एक गलत जवाब ही उन्हें कुर्सी से उतार सकता है। उल्लेखनीय है कि निर्वाचन आयोग ने 10 मई तक हेमंत से जवाब मांगा था। उन्हें जवाब कुछ सूझा नहीं तो उन्होंने निर्वाचन आयोग से और 10 दिन का समय मांग लिया और उन्हें मिल भी गया है। यानी अब वे 10 दिन तक जवाब नहीं भेजेंगे। राज्य सरकार ने समय यह कहते हुए मांगा है कि चूंकि हेमंत सोरेन अपनी बीमार मां के इलाज के लिए पिछले कुछ दिनों तक हैदराबाद में रहे और उन्हें निर्वाचन आयोग के पत्र का अध्ययन करने का समय नहीं मिला। इसलिए 10 दिन और समय दे दें, ताकि अच्छी तरह अध्ययन कर जवाब दिया जा सके।
लोगों का मानना है कि हेमंत का सारा गणित ईडी की छापेमारी ने बिगाड़ दिया है। बता दें कि झारखंड की खनन सचिव पूजा सिंघल के ठिकानों पर ईडी ने छापेमारी की है। इसमें कुछ लोग गिरफ्तार भी हुए हैं। पूजा आईएएस अधिकारी हैं, लेकिन उनके बचाव में झामुमो और कांग्रेस के नेता उतर रहे हैं। उनका कहना है कि ईडी और अन्य केंद्रीय एजेंसियों के जरिए केंद्र सरकार झारखंड सरकार को अस्थिर करना वाहती है! अब सवाल यह उठता है कि एक सरकारी आईएएस अधिकारी के भ्रष्टाचार के खिलाफ छापामारी करने से राज्य सरकार अस्थिर कैसे हो सकती है! दरअसल, राज्य के खनन मंत्री भी हेमंत सोरेन हैं। इसलिए झामुमो और कांग्रेस को लगता है कि खनन सचिव के बहाने केंद्र सरकार हेमंत सोरेन को परेशान कर रही है, लेकिन आम लोगों का कहना है कि हेमंत सोरेन ने जैसा किया है, वैसा फल उन्हें मिल रहा है। उनकी कुर्सी अब जाने वाली ही है। उन्हें अब कोई नहीं बचा सकता है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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