माह-दिवस मुरत भले के दिन व्योहारों से मनाने के बजाय गुरू के दिखाए मार्ग पर चलकर अकाल पुरख की उस्तति करनी व उसके आगे ही अरदास करने का सही मार्ग गुरु नानक देव जी के सिक्खों के लिए अंकित है.
शायद इसी कारण ही श्री गुरु अमरदास जी व श्री गुरु तेग बहादुर साहिब द्वारा 1569 तथा 1669 ई. में श्री गुरु नानक देव जी के 100वें व 200वें प्रकाश पर्व मनाने का इतिहास, मर्यादा पर सिख फलसफा खामोश है। 50 वर्ष खालसा राज्य का इतिहास भी महाराजा रणजीत सिंह बहादुर द्वारा किसी सिख गुरु साहिब की शताब्दी मनाने की गवाही नहीं भरता।
अंग्रेजों के राज्य के समय में शायद यह प्रथा शुरू हुई जिस बारे फौजी वर्दी में गोरे फौजी व पुलिस अफसर श्री दरबार साहिब के अंदर घुमते हुए की वीडियो फिल्म भी देखी जाती रही है।
दिवाली व वैसाखी के मौके पर पथक नेतृत्व करने वालों द्वारा 18वीं सदी से ही राष्ट्रीय समस्याओं के निवारण के लिए एकसाथ बैठने और नेतृत्व करने वाले सुनहरी फैसलों से इतिहास भरा पड़ा है। मिसलों के आपसी टकराव के बावजूद एकता के मामले के बारे में श्री दरबार साहिब के अंदर तथा प्रथक सरबत खालसा के समय एक दूसरे का आदर करने जैसी बहुत सी पवित्र मिसालें है। जिससे भौतिक लालच से उपर उठकर राष्ट्रीय नेतृत्व कर सिख एक-दूसरे का आदर-सम्मान करते थे।
यदि किसी एक की गलती यदि न सुधारी जाये तो सारी कोम की दिशा बदल जाती है। पंथ के महान विद्वान भाई वीर सिंह व प्रोफेसर साहिब सिंह जी द्वारा राय मांगने पर शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को सलाह दी जाती थी कि गुरु साहिबानों के चित्र क्योंकि मनो कल्पित हैं इसलिए इन चित्रो को मानता न दी जाए, क्योंकि सिखों का गुरू श्री गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित गुरुवाणी का हर शब्द है इसका ही प्रचार होना चाहिए, चित्र के साथ जुड़कर सिख मूर्ति पूजा की तरफ बढ़ेगा व ज्ञान गुरु की बाणी से टूट जायेगा। यह मनोकल्पित चित्र आज धर्म प्रचार करने वाली संस्थाओं और सिख गुरुधामों के प्रबंधक भी उपयोग कर रहे हैं।
1969ई. में श्री गुरु नानक देव जी के 500वें प्रकाश पर्व शताब्दी वर्ष पहली बार बड़ी धूमधाम से मनाया गया था। सभी राजनीतिक पार्टीयों व देश के राष्ट्रपति श्री वी. वी. गिरी ने अकाली दल के प्रधान संत फ़तेह सिंह और नेतृत्व करने वालों से साझा की थी। श्री गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर भी इसी समागम की प्राप्ती है।
इसके बाद तो गुरु साहिबान की शताब्दीयाँ व धार्मिक प्रोग्राम करने की होड़ ही लग गई। ज्ञानी जेल सिंह मुख्यमंत्री पंजाब ने 10 अप्रैल 1973 में श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी मार्ग आनंदपुर साहिब से दमदमा साहिब का उद्घाटन किया। गुरु गोबिन्द सिंह जी से संबंधित 91 गुरुद्वारों को आपस में जोड़ा गया था। अकाली भी अग्रणी होकर प्रसाद बांटते रहे, पर आज तक इस रूट से बस नहीं चली। खालसा का 300वां वर्ष साजना दिवस 1999 में मनाया गया। केन्द्र सरकार ने खूब ऐसा दिया। श्री गुरु ग्रंथ साहिब का 400वॉ वर्ष संपूर्णता दिवस, श्री गुरु अर्जुन देव जी का 400वॉ शहीदी दिवस, बाबा बंदा सिंह बहादुर का 300वीं वर्ष खालसा राज स्थापना दिवस इत्यादि मनाया गया। फिर श्री गुरु नानक देव जी के जन्म की 550वें प्रकाशोत्सव वर्ष व श्री गुरु गोविन्द सिंह जी के 350वें जन्म अर्ध शताब्दीयों भी मनाई गई।
21 अप्रैल 2022 को श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के 400वें जन्म शताब्दी वर्ष को दिल्ली के लाल किले से देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जिन्हें शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने वर्ष 2019 में सिख कॉम का मसीहा कहकर ‘राष्ट्रीय सेवा अवार्ड’ के सम्मान से नवाजा था प्रधानमंत्री ने उसे पुरी शानो-शौकत से गुरु मर्यादा अनुसार मनाया। देश के सभी स्कूलों में 18 लाख बच्चों ने श्री गुरु तेग बहादुर जी पर लेख लिखे। मुंबई राज भवन समेत बहुत सारे राज्यों के गवर्नर व मुख्यमंत्री साहिबानों ने श्री गुरू तेग बहादुर की जन्म शताब्दी पाठ कीर्तन व ज्ञान चर्चा करके मनाई। 400 रुपये का सिक्का व डाक टिकट भी जारी हुआ। 70 प्रमुख सिख धार्मिक, राजनीतिक, लेखक व सामाजिक शख्सियतों पर आधारित एक कमेटी भी बनाई गई यह बात अलग है कि इनमें से बहुतों ने कोई योगदान नहीं दिया, बल्कि समागमों में शामिल भी नहीं हुए।
पंजाब सरकार ने पिछले वर्ष गुरुपर्व मनाने के लिए 937 करोड़ रुपये की मांग की थी पर कोई समागम नहीं किया गया, 1 मई को इस समागम के लिए अंतिम तारीख रखी थी, लेकिन लगता नहीं इंकलाब जिन्दाबाद वालों के दिल में तिलक-जसू के रक्षक गुरू के लिए प्यार है, और उन्हें गुरु के फलसफे पर विश्वास हो सकता है?
1000 करोड़ रूपये के वार्षिक बजट वाली शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर ने पहली बार देश के राष्ट्रीय नेतृत्वकर्ताओं को नहीं बुलाया और स्वयं भी धार्मिक नेतृत्व सिंह साहिबान, शिरोमणी कमेटी प्रधान व शिरोमणी अकाली दल के नेतृत्वकर्ता दिल्ली के लाल किले से समागमों में शामिल भी नहीं हुए। बहुत से तो शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा गुरु के महल जन्म स्थान व मंजी साहिब के समागमो में स्वयं भी गैर हाजिर रहे. इन्होने दूसरी राजनीतिक पार्टीयों व सरकार दरबार व और पार्टीयों में बैठे गुरू के सिखों को तो क्या बुलाना था।
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने नौवें गुरु नानक जी की उपमा “तिलक जंझू राखा प्रभि ताका” अंकित करके की है, तिलक जंझू धारण करने वाले हिन्दू समाज के लोग तो आज भी गुरु जी की उपमा करते है, पर अपने आपको गुरु के सिख कहलवाने वाले गुरुद्वारा प्रबंधक गुरु से पीछे हटने नजर आ रहे हैं।
सब से बड़ा समागम तो हरियाणा सरकार ने पानीपत में किया. जहाँ लाखों की गिनती में श्रद्धालु शामिल हुए, यमुनानगर मेडीकल कॉलेज का नाम गुरू जी के नाम पर रखने का फैसला किया. पानीपत के पार्क व सड़कों के नाम भी गुरु तेग बहादुर जी के नाम पर रखे गये।
हर समागम पर गुरू के फलसफे और इतिहास पर आधारित पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। इस तरह भारत सरकार, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड व मध्य प्रदेश की सरकारें भी गुरु जी के जन्म शताब्दी समागम मना चुकी है या अभी भी यत्नशील है, पर पंजाब में ऐसी कोशिश राज्य स्तर पर केवल एक राजसी पार्टी के अलावा किसी राजनीतिक पार्टी व सामाजिक संस्था के द्वारा नजर नहीं आया।
गुरु साहिबान का फलसफा व इतिहास, विश्व शांति, धार्मिक सहनशीलता व दूसरे धर्मों व धर्म चिन्हों के आदर-सम्मान के प्रकाश स्तंभ है, जिस का प्रचार-प्रसार विश्व स्तर पर होना चाहिए, इसलिए यह कोशिश करनी बनती।
विश्व भर में बसते सिख कई समस्याओं से दो-चार हो रहे हैं, जिनके लिए जिम्मेदार राजनीतिक तत्वों के हाथों की अब भी कठपुतली है। दोस्त व विरोधी में पहचान करने, और समस्याओं के हल के लिए गुरू हुकुम अनुसार संवाद सरकार से रचाना जरूरी है।
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