एक अजीब-सी मानसिकता हमारे देश में बन गई कि हम किसी भी क्षेत्र के कुछेक लोगों की प्रशंसा करके इतिश्री कर लेते हैं। यही स्थिति बिजनेस की दुनिया के लिए भी कही जाएगी। कुछ ज्ञानी और गुणी लोग रतन टाटा, एन. नारायण मूर्ति, अजीम प्रेमजी, मुकेश अंबानी वगैरह की बात करके सोचने लगते हैं कि इससे आगे की चर्चा व्यर्थ है। ये ही हमारे कॉरपोरेट संसार की सबसे श्रेष्ठ हस्तियां हैं। इसी सोच के कारण वे पृथ्वीराज सिंह ओबराय (पीआरएस) का नाम लेना या उनकी चर्चा करना भूल जाते हैं। उन्हें ‘बिक्की ओबेरॉय’ के नाम से भी जाना जाता है।
भारत के होटल सेक्टर में लक्जरी लाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। उन्होंने लगभग 93 साल की उम्र में ओबराय होटल ग्रुप के चेयरमैन का पद छोड़ दिया। कहना होगा कि भारत तथा भारत से बाहर विश्वस्तरीय ओबराय होटलों के चलते ही ओबराय तथा भारत की इमेज उजली हुई। किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि आर्थिक उदारीकरण से पहले के दौर में भारत के टाटा, गोदरेज, महिन्द्रा तथा ओबराय जैसे ब्रांड ही देश से बाहर जाने जाते थे। भारत आने वाले विदेशी व्यापारी और पर्यटक मुंबई के ओबराय ट्राइडेंट तथा दिल्ली के ओबराय इंटरकांटिनेंटल पर जान निसार करते हैं। इन दोनों को बिक्की ओबेराय ने अपने हाथों से बनाया था। इसकी योजना बनाने से लेकर इसे शुरू करने तक वे इससे जुड़े रहे थे। वे सारे फैसले खुद लेकर अपने पिता सरदार मोहन सिंह ओबराय को बता भर देते थे। पीआरएस ओबराय के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने पिता को इस बात के लिये तैयार किया था कि वे दिल्ली में भी एक होटल और खोलें। हालांकि तब तक ओबराय ग्रुप का ओबराय मेडिंस होटल चल रहा था।
यह 1960 के दशक के शुरू की बातें हैं। तब दिल्ली में लक्जरी होटल के नाम पर अशोक होटल तथा इंपीरियल होटल ही कायदे के होटल थे। ओबराय पिता-पुत्र ने दिल्ली के अपने होटल के लिए जमीन ली ड़ॉ. जाकिर हुसैन रोड पर। यह जगह दिल्ली गोल्फ क्लब से सटी है। पीआरएस ओबराय ने इसके डिजाइन का काम सौंपा पीलू मोदी को। हालांकि उनके पास देश-दुनिया के तमाम आर्किटेक्ट अपने डिजाइन लेकर आए थे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बाल सखा और टाटा अध्यक्ष रूसी मोदी के बड़े भाई पीलू मोदी सियासी शख्सियत होने के साथ-साथ प्रयोगधर्मी आर्किटेक्ट भी थे। उन्होंने इसका शानदार डिजाइन बनाया। यह 1965 में शुरू हुआ। भारत में लक्जरी होटल की जब भी बात होती है, तो ओबराय इंटरकांटिनेंटल होटल का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।
ओबराय इंटरकांटिनेंटल से पहले राजधानी में कायदे का स्तरीय सिर्फ अशोक होटल ही था। यह अक्तूबर,1956 में शुरू हो गया था। इसमें उसी साल यूनिस्को सम्मेलन में भाग लेने आए दुनियाभर के प्रतिनिधियों को ठहराया गया था। गुजरे साढ़े छह दशकों के दौरान अशोक होटल को सैकड़ों राष्ट्राध्यक्षों और नामवर शख्सियतों की मेजबानी का मौका मिला। इसकी भव्यता भी लाजवाब है।
पीआरएस ओबराय विश्व नागरिक होने के बावजूद दिल से हिन्दुस्तानी हैं। उनकी इस सोच के चलते सभी ओबराय होटलों में आने वाले गेस्ट का होटल स्टाफ नमस्कार करके ही स्वागत करते हैं। वे मानते रहे हैं कि नमस्कार ही भारत की पहचान है। जब कोई ओबराय होटल में आए तो उसे पता चले कि इस होटल का संबंध भारत से है। देखिए, आपने पीआरएस ओबराय का नाम कभी किसी विवाद में नहीं सुना होगा। यह सामान्य बात नहीं है। बिजनेस की दुनिया में रहते हुए लोग कुछ न कुछ गड़बड़ कर ही देते हैं। टैक्स चोरी के केस तो सामान्य रूप से सामने आ ही जाते हैं। पर ओबराय होटल पर कभी इस तरह के आरोप नहीं लगे। इससे पीआरएस ओबराय यह साबित करते हैं कि आप ईमानदारी से भी आगे बढ़ सकते हैं।
पीआरएस ओबराय बहुत आहत हुए थे जब उनके प्रिय ट्राइडेंट होटल को मुंबई में हुए 26/11 के हमलों में तबाह कर दिया गया था। वहां पाकिस्तानी आतंकिय़ों ने दर्जनों बेगुनाहों को मार डाला था। पीआरएस ओबराय दुखी थे पर वे दुनिया को संदेश देना चाहते थे कि वे और भारत राख के ढेर पर से भी उठना जानते हैं। तब उनकी सरपरस्ती में ओबराय ट्राइडेंट होटल का नए सिर से रेनोवेशन हुआ। वे कई महीनों के लिये दिल्ली से मुंबई चले गए थे। उन्होंने दिल खोलकर पैसा लगाय़ा। यानी पीआरएस ओबराय ने इसे राख के ढेर से फिर खड़ा किया।
एक बात और जान लें कि भारत में एक से बढ़कर एक सैकड़ों की गिनती में उद्योगपति हैं। पर पीआरएस ओबराय सबसे अलग हैं। वे जानते हैं कि अपने ब्रांड को कैसे बाजार में सम्मान दिलवाया जाता है। वे होटल इंडस्ट्री के भीष्म पितामह हैं। वे 1988 में ओबराय होटल के चेयरमैन बने थे। उनसे पहले उनके पिता मोहन सिंह ने ही ओबराय होटल ग्रुप की कमान संभाल रखी थी। वे अपने पिता के जीवनकाल में ही अपने ग्रुप के लिए अहम फैसले लेने लगे थे।
वे भविष्य द्रष्टा किस्म के इंसान हैं। उन्हें ईश्वर ने यह शक्ति दी कि वे जान लें किस शहर या देश में इनवेस्ट करने से लाभ होगा। उन्होंने करीब दस साल पहले गुरुग्राम में अपना होटल खोला। उसमें तगड़ा इनवेस्टमेंट किया। तब कुछ लोग दबी जुबान से कह रहे थे कि उनकी गुरुग्राम की इनवेस्टमेंट का लाभ नहीं होगा। पर वे सब गलत साबित हुए। पिछले दस साल में गुरुग्राम बदल गया है। अब यह शहर आईटी हब बन गया है। यहां हजारों विदेशी रहते हैं और आते-जाते हैं। इनका गुरुग्राम का होटल धड़ल्ले से चल रहा है।
दरअसल शिखर पर बैठे शख्स से यही उम्मीद रहती है कि वह भविष्य की संभावनाओं को जान ले। इस लिहाज से पीआरएस ओबराय लाजवाब हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि वयोवृद्ध पीआरएस ओबराय आगे भी भारत के कॉरपोरेट संसार के लिए प्रेरणा बने रहेंगे।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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