सुनील दिल्ली सरकार के एक विभाग में काम करते हैं और इन दिनों इस बात से खुश हैं कि कम से कम एमवे की ठगी को किसी ने तो पकड़ा। सुनील बताते हैं कि उनके एक रिश्तेदार के लगातार जोर देने पर उन्होंने एमवे के उत्पाद खरीदे थे। उन्होंने एमवे की मीटिंग्स में जाकर भी देखा, लेकिन अब वे उत्पाद उनके घर में जगह घेर रहे हैं। सुनील के मुताबिक इन अति महंगे उत्पादों की उन्हें कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन यह एक तरह का सामाजिक दबाव था, जिसकी वजह से इस स्कीम के मेंबर बने। उन्होंने इसके लिए 1500 रुपये दिए और बाकी के उत्पाद खरीदे। कुल मिलाकर उन्होंने इसके लिए 5000 रुपये लगाए, लेकिन इसके बदले जो उन्हें मिला, वह एक ट्रेनिंग थी, जिसमें उन्हें बड़े-बड़े ख्वाब दिखाए गए।
सुनील को ट्रेनिंग में बताया गया कि साल में 10 लाख की बिक्री करने पर उन्हें विदेश यात्रा कराई जाएगी और लाखों रुपये उनके बैंक खाते में होंगे। लेकिन दो बार सामान खरीदने के बाद उन्हें लगा कि वे ठगे जा चुके हैं, क्योंकि जो सामान उन्होंने खरीदा था, वह बाजार में सबसे बेहतर ब्रांड की कीमत से भी 30 प्रतिशत ज्य़ादा कीमत पर था, इसमें उन्हें 15 प्रतिशत का डिस्काउंट मिला, लेकिन इसके बावजूद वह उन्हें महंगा ही पड़ा।
बात यहां सिर्फ सुनील की नहीं है। देश में एमवे के करीब 60 लाख सदस्य बताए जाते हैं। इनमें से बहुत से सक्रिय हैं और बहुत से सक्रिय नहीं हैं। लेकिन देश के हर छोटे से छोटे शहर में भी अब एमवे पहुंच चुका है। कंपनी के एजेंट हर शहर, कस्बे में फैले हुए हैं जहां इनका जोर घर बैठे पैसे कमाने पर रहता है। बस यहीं वह बिंदु है, जिस पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एमवे की 757 करोड़ रुपये की संपत्ति को जब्त किया है।
कभी चानू, कभी अमिताभ
एमवे की कार्यप्रणाली को समझिए। वर्ष 2021 में 18 अगस्त को एमवे इंडिया ने ओलंपियन सेखोम मीराबाई चानू को एमवे और उसके उत्पादों की न्यूट्रीलाइट रेंज के लिए ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया। चानू न्यूट्रीलाइट डेली, ओमेगा और आॅल प्लांट प्रोटीन जैसी उत्पाद श्रृंखलाओं पर केंद्रित कंपनी के अभियानों का नेतृत्व करेंगी। भारोत्तोलक चानू ने 2020 टोक्यो ओलंपिक में महिलाओं के 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीता था।
चानू की नियुक्ति को दो माह ही हुए होंगे कि वर्ष 2021 में ही 28 अक्तूबर को एमवे इंडिया ने बॉलीवुड मेगास्टार अमिताभ बच्चन को अपना ब्रांड एंबेसडर नियुक्त करने की घोषणा की। कंपनी की विज्ञप्ति में बताया गया कि अमिताभ बच्चन सभी प्लेटफार्मों पर एमवे ब्रांड और न्यूट्रीलाइट श्रेणी के विभिन्न उत्पादों का समर्थन करेंगे। वे एमवे के मार्दर्शन में उद्यम स्थापित करके के प्रयासों के लिए महिलाओं और युवाओं को सशक्तिकरण के लिए प्रोत्साहित करेंगे।
एमवे इंडिया बड़े सेलिब्रिटीज के सहारे समृद्धि के इच्छुक देश की जनता को आकर्षित करती है। वह एक के बाद एक सेलिब्रिटीज को मैदान में उतारती है ताकि बाजार में उसकी चमक फीकी न पड़े।
दरअसल डायरेक्ट मार्केटिंग में एमवे जैसी कंपनियां अपने उत्पाद सीधे उपभोक्ता को तो बेच सकती हैं, लेकिन ये कंपनियां उपभोक्ता उत्पाद बेचने की आड़ में अमीर बनने के सपने बेच रही हैं। ईडी भी इसी मामले को लेकर जांच कर रहा है। इस कंपनी में उत्पाद बेचने से हुए मुनाफे के बदले नए सदस्य बनाने से जो फायदा हुआ, उसको बांटा जा रहा है। यानी जितने ज्य़ादा सदस्य होंगे, लाभ उतना ही कम होता जाएगा, क्योंकि वह हर स्तर पर बंटेगा। हालांकि कंपनी ने कई बार इसका खंडन भी किया है कि उसकी बिक्री प्रणाली में मिले हुए प्वाइंट हर स्तर पर बराबर बांटे जाते हैं। कंपनी ने इस बार ईडी की रेड के बाद एक बार फिर कहा है कि वे पिरामिड प्रणाली में काम नहीं करती।
पिछले कुछ सालों में उपभोक्ता उत्पाद क्षेत्र में एमवे घर-घर पहचाने जाना वाला नाम बन गई है। लेकिन अपना चेन बनाने के लिए अपने उपभोक्ताओं को घर बैठे पैसा कमाने का सपना दिखाने वाली यह अमेरिकी कंपनी लंबे समय से जांच एजेंसियों के निशाने पर थी। वह भारत में पिछले 20 साल से भी ज्य़ादा समय से कारोबार कर रही है। देश में डायरेक्ट सेल्स का कारोबार सालाना 10 हजार करोड़ रुपये से ज्य़ादा का है और इसमें सबसे ज्य़ादा हिस्सेदारी एमवे की ही है।
ईडी इस कंपनी पर पिरामिड स्कैम चलाने और अपने ग्राहकों को ठगने की जांच कर रहा है। ईडी के मुताबिक कंपनी अपने उत्पादों की बहुत ज्य़ादा कीमत रखे हुए थी। ईडी ने एमवे पर रेड के बाद एक प्रेस रिलीज भी जारी की थी, जिसमें साफ लिखा था कि एमवे एमएलएम और पिरामिड शैली में काम कर रही थी और देश की जनता को अपने सदस्य के तौर पर महंगी कीमतों पर अपने उत्पाद बेचने के लिए प्रेरित कर रही थी। एमवे के ज्य़ादातर उत्पाद बाजार में उपलब्ध प्रमुख ब्रांड्स के मुकाबले काफी महंगे हैं। कंपनी के नए सदस्य कंपनी के उत्पाद खरीदने के लिए एमवे के सदस्य नहीं बन रहे हैं, बल्कि वे तो अमीर बनने के लिए एमवे के सदस्य बन रहे हैं। एमवे पिरामिड सिस्टम से सदस्य बना रही थी, जोकि अमीर बनने के लिए महंगे दामों पर उत्पाद खरीद रहे थे।
उधर, एमवे ने कहा है कि वह नए सदस्य को रिवार्ड प्वाइंट नहीं देती है, बल्कि वह तो नए सदस्य को उत्पाद बेचने के बाद ही रिवार्ड प्वाइंट देती है।
सरकार ने पिछले साल ही उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2021 में बदलाव किया था, जिसके बाद पिरामिड शैली की डायरेक्ट सेल्स और मनी सकुर्लेशन स्कीम पर भी रोक लगा दी गई थी।
क्या होता है पिरामिड स्कैम
इस तरह के स्कैम में सबसे पहला व्यक्ति जितने सदस्य बनाता है, वे सभी सदस्य फिर आगे सदस्य बनाते हैं। फिर उनके बनाए हुए सदस्य आगे-आगे सदस्य बनाते रहते हैं। इससे फिर तेजी से सदस्य बनते रहते हैं। इस तरह जितने ज्य़ादा सदस्य बनते हैं, उस पहले व्यक्ति को उतना ज्य़ादा से ज्य़ादा फायदा मिलता है। यानी हर स्तर पर नए सदस्य बनते हैं और यह पिरामिड बड़ा होता जाता है।
ब्रेनवॉश के लिए बाकायदा बनी है टूलकिट
अपनी बड़ी सरकारी नौकरी छोड़कर एमवे में काम कर रहे हरि कृष्णा ने अपने सभी रिश्तेदारों, दोस्तों को यही सपने बेचे। इनके इन सपनों से इनके आसपास का कोई भी व्यक्ति नहीं बच पाया। इनसे परेशान एक रिश्तेदार ने बताया कि जो व्यक्ति इनके जरिए एमवे के चंगुल में फंस गया, उसका ब्रेनवॉश कर दिया जाता है। उसे हर हफ्ते एमवे के नए सदस्य बनाने और ज्य़ादा से ज्य़ादा पैसा कमाने के लिए मोटिवेशन क्लासेज दी जाती हैं। आम लोगों को करोड़ों रुपये की कमाई का लालच भी दिया जाता है। इन मोटिवेशन क्लासेज में जाने वालों को यूट्यूब पर वीडियो दिखाया जाता है। और तो और, अपने उत्पाद की कीमतों को सही ठहराने के लिए तरह-तरह के डेमो भी दिए जाते हैं। लेकिन ये पैसा कमाने का ऐसा लालच देते हैं कि व्यक्ति इनके चंगुल में फंस ही जाता है।
कंपनी ने अपने नए सदस्य बनाने और उन्हें समान बेचने के लिए बाकायदा टूलकिट बनाई हुई है। इसमें यह भी बताया जाता है कि किसी व्यक्ति से बात करने पर किस प्रश्न पर क्या बोलना है। साथ ही अपनी ब्रेनवॉश मीटिंग में ये कई बड़े लोगों को भी लाते हैं ताकि लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़े। घर बैठे कमाई करने वाले ज्य़ादातर विज्ञापन भी एमवे के बड़े-बड़े एजेंट ही देते हैं, जो कि सैकड़ों लोगों को इस कंपनी से जोड़ने के बाद उनको बेचे जाने वाले उत्पादों पर अच्छा-खासा कमीशन पाते हैं।
सीईओ की दो बार हो चुकी है गिरफ्तारी
ऐसा नहीं है कि इस अमेरिकी कंपनी के खिलाफ पहले कार्रवाई नहीं हुई है। पहले भी एमवे के सीईओ विलियम्स एस पिंकने की दो बार गिरफ्तारी हो चुकी है। उस समय भी पिंकने को प्राइज चिट और मनी सकुर्लेशन स्कीम एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था। इससे पहले इसी तरह के मामलों में केरल पुलिस ने भी पिंकने को गिरफ्तार किया था। हालांकि इन गिरफ्तारियों के बाद भी कंपनी के कारोबार पर कोई असर नहीं पड़ा।
अधिवक्ता शशांक देव सुधी के मुताबिक, किसी भी स्कीम को गलत तरीके से बताना ही कानूनन अपराध है, फिर चाहे वो वित्तीय स्कीम हो या फिर उपभोक्ता स्कीम। दरअसल उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम बहुत ज्य़ादा सख्त नहीं है। इस तरह के मामलों में सिर्फ आईपीसी है। लेकिन इसकी अपनी सीमाएं हैं। पुलिस ज्य़ादा से ज्य़ादा 420 का ही केस बना सकती है। लेकिन पुलिस को ये केस बनाने में जूते घिस जाते हैं।
अधिवक्ता शशांक के मुताबिक जरूरत तो इस बात की है कि इस तरह की कंपनियों पर शुरू से ही नकेल कसी जानी चाहिए। ये कंपनी 20 वर्ष से ज्य़ादा समय से भारत में काम कर रही है और पैसा उगाह रही है, लेकिन इस पर क्या कार्रवाई हुई है?
अगर कोई कंपनी अपने रजिस्ट्रेशन के बॉईलॉज के हिसाब से काम नहीं कर रही है तो उसका रजिस्ट्रेशन ही रद्द होना चाहिए। दरअसल ये कंपनियां गरीब और अनपढ़ लोगों को ही टारगेट करती हैं। लेकिन इस तरह के मामलों में भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इस तरह लूटने वाली कंपनियों पर तो सिविल रिकवरी करने की भी जरूरत है।
उपभोक्ता मामलों के जानकार बिजॉन मिश्रा के मुताबिक, दुनियाभर में डायरेक्ट सेलिंग होती है, ये सीधे कंपनी द्वारा व्यक्ति को होती है, इसमें भी व्यक्ति नेटवर्क बनाता है। लेकिन डायरेक्ट सेलिंग और पॉन्जी स्कीम में बहुत ही महीन अंतर होता है। इसलिए सरकार को इस पर सीधे कोई कानून बनाना चाहिए था। अब जाकर उपभोक्ता अधिनियम में बदलाव कर डायरेक्ट सेलिंग को अधिसूचित किया गया है। लेकिन अब लोगों को जानने की जरूरत है कि डायरेक्ट सेलिंग की परिभाषा क्या है?
उपभोक्ता मामलों के एक अन्य जानकार श्रीराम खन्ना इस मामले को बिजनेस की आपसी खींचतान का नतीजा बताते हैं। उन्होंने बताया कि यह व्यापार के क्षेत्र में आपसी खींचतान का नतीजा है। घरेलू सप्लायर्स भी कई बार गैंगअप करके काम करते हैं और कई बार इसमें राजनैतिक दखल भी होता है। हालांकि इससे ज्य़ादा वे कुछ बोलने को तैयार नहीं हुए। ल्ल
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