स्वतंत्रता के समय भारत ने तय किया था कि हम संविधान से चलेंगे। संविधान का अनुच्छेद-1 कहता है इंडिया अर्थात भारत। अगर भारत को जानना हो, तो इसके जीवन मूल्य क्या हैं, संविधान के मूल्य क्या हैं, इसके लिए हजारों साल की संस्कृति को देखना होगा। भारत की संस्कृति सह अस्तित्व की संस्कृति है। जिस तरह संविधान का मूल आधार है, वैसे ही भारत का भी मूल आधार है। यह मूल आधार है- कण-कण में भगवान हैं। ईश्वर एक है, लेकिन उस तक पहुंचने के मार्ग अलग-अलग हैं। एक शरीर का दूसरे शरीर से भेद नहीं है। सभी एक हैं। पूरी दुनिया में भारत की यही संस्कृति प्रचारित है।
हमारा संविधान हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, स्त्री-पुरुष के लिए अलग-अलग प्रावधान नहीं करता। यह कहता है कि हम भारत के लोग अपने आपको यह संविधान देते हैं जो सबको समानता प्रदान करता है, सबको स्वतंत्रता देता है, सबको गरिमापूर्ण जीवन देता है। इसलिए यहां सभी को अनुच्छेद-35 मिला हुआ है। जो कहता है कि आप अपने धर्म को मान सकते हैं, यानी प्रशासन की अनुमति के तहत शोभायात्रा निकाल सकते हैं। कहां लिखा है कि मस्जिद के आगे से जुलूस नहीं निकल सकता? कहां लिखा है कि रमजान के दौरान हिंदू जुलूस नहीं निकाल सकते? हनुमान जयंती नहीं मना सकते। यदि पत्थर मारे जाएंगे, चाहे वह जाफराबाद हो या जहांगीरपुरी, तो वह पत्थर भारत के संविधान पर पड़ता है। जो पत्थर मारते हैं, वे भारत के खिलाफ हैं। हिन्दुस्थान में जो पथराव हो रहा है, वह किसी एक के ऊपर नहीं पड़ रहा है। ये पत्थर भारत के गौरव पर पड़ रहे हैं। 1947 में बंटवारा तो हो गया था। उस समय भारत ने तय कर लिया था, जिसे मजहबी राष्ट्र चाहिए वह पाकिस्तान चला जाए। फिर भी वहां के लोग सीमा पार करके भारत में घुसपैठ के चक्कर में लगे रहते हैं।
दिल्ली के जहांगीरपुरी में 16 अप्रैल, 2022 को हनुमान जयंती पर शोभायात्रा पर पथराव तो किया ही, दो दिन बाद अपराध शाखा की टीम जब पूछताछ करने गई तो उस पर पथराव किया गया। पथराव करने वाले 21 उन्मादियों को गिरफ्तार किया गया। इनमें अंसार और असलम भी था। असलम, जिसे सेकुलर मीडिया बहुत दिनों तक सोनू चिकना कहता रहा। पांच आरोपियों पर रासुका लगा यानी वे भारत के लिए खतरा हैं। उनकी जमानत नहीं हो सकती। पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में कहा गया है कि पुलिस पर हमला किया गया। पिस्तौल भी बरामद हो गया। यानी आरोपियों के खिलाफ सभी सबूत हैं। उसी मामले में दूसरे पक्ष के लोगों को भी उठा लिया गया। शोभायात्रा निकालने वालों पर अवहेलना का मामला दर्ज किया गया। सवाल है, बिना अनुमति कोई यात्रा निकालता है क्या? क्या पथराव पहली बार हुआ है? क्या अंसार, असलम को पकड़ने पर पथराव रुक जाएगा?
जहांगीरपुरी वैसे तो हिंदू बहुल क्षेत्र है, लेकिन जिन-जिन क्षेत्रों में हिंसा या पथराव हुए, वे मुस्लिम आबादी वाले हैं। बीते 30 साल से वहां बांग्लादेशी बस्तियां बसती आ रही हैं। वहां गैर कानूनी बूचड़खाने हैं, पानी-बिजली नहीं है। कचरा घर के बाहर फेंका जाता है। उनके लिए न तो कोई नियम-कानून है और न ही उन्हें कोई रोकने वाला है। वहां, सरकारी जमीन पर प्लास्टिक का कबाड़ का धंधा चलता है। जरा सी चूक पर पूरा इलाका धू-धू कर जल उठेगा। लेकिन किसी को इसकी चिंता नहीं है। हमने अपने फैक्ट फाइल में इसका पता भी दिया है, जिसे गृह मंत्रालय को भी देंगे। यदि हम यह बात जानते हैं, तो क्या स्थानीय पुलिस-प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं होगी?
उस इलाके के लोग बताते हैं कि इसी कबाड़ से बोतलें निकाल कर छतों पर जमा किया जाता है, जिसका प्रयोग हिंदुओं के खिलाफ किया जाता है। यही नहीं, इसी कबाड़ में कारतूस छिपाकर रखा जाता है। वहां अवैध हथियार का कारोबार भी फल-फूल रहा है। बताते हैं कि मस्जिद के आगे अवैध पार्किंग है, जिसे अंसार चलाता है। इससे उसे हर माह लाखों रुपये की कमाई होती है। जहांगीरपुरी में गैर कानूनी मदरसे बच्चों को पत्थरबाज बना रहे हैं। मुसलमानों ने नाले और सड़कों पर अतिक्रमण कर रखा है, लेकिन प्रशासन आंखें मूंदे हुए है। उन इलाकों में झपटमारी होती है। लड़कियों से छेड़खानी की जाती है और उन्हें धमकाया जाता है। आलम यह है कि रात को हिंदू अकेले नहीं निकल सकते। वे हर पल खौफ के साये में रहते हैं कि पता नहीं कब क्या हो जाए। लेकिन पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती। क्यों?
महत्वपूर्ण बात यह है कि हनुमान जयंती पर जब हिंदुओं पर पथराव हुआ तो किसी वामपंथी ने इसकी निंदा तक नहीं की। लेकिन जब अतिक्रमण के खिलाफ बुलडोजर चला तो सर्वोच्च न्यायालय में वकीलों की फौज खड़ी हो गई। यही वकील आतंकियों की ओर से कानूनी लड़ाई लड़ते हैं, बांग्लादेशियों, रोहिंग्याओं के अधिकार के लिए लड़ते हैं। लेकिन कश्मीनी हिंदुओं के समर्थन में कभी आवाज नहीं उठाते।
2020 में जब उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे हुए थे, उस समय भी हमने दंगा प्रभावित जाफराबाद, मुस्तफाबाद और चांदबाग का दौरा किया था। उस समय वहां जो देखा था, वही जहांगीरपुरी में दिखा। आखिर कब तक हम किसी उमर खालिद और अंसार को ढ़ूंढ़ते रहेंगे? क्यों नहीं हम बीमारी का इलाज नहीं करना चाहते? छोटे-छोटे बच्चों, महिलाओं को जिहादी बनाया जा रहा है। अगर इसे रोका नहीं गया तो हालात भयावह होंगे।
दरअसल, जहांगीरपुरी और उत्तर-पूर्वी दिल्ली में जो दंगे हुए, उनमें एक समानता है। दंगों में हिंदू बहुल इलाकों को निशाना बनाया गया। ये इलाके मुसलमानों की घनी आबादी से घिरे हुए हैं। जितने भी धरने हुए, सभी मस्जिद के पास हुए। भले ही धरनों के लिए बहाने कुछ भी हों। ये पहले जगह चुनते हैं, फिर अपने मंसूबों को अंजाम देते हैं। इनके लिए मस्जिद के पास भीड़ इकट्ठा करना आसान होता है।
दंगे से पहले जहांगीरपुरी से 6-7 बसों में लगभग 300-400 औरतें जाफराबाद जाती थीं। वहां उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता था। यह 2020 के दंगों में मिले प्रशिक्ष का असर है कि वे आज वे पत्थरबाजी कर रही हैं। इस बढ़ती मजहबी कट्टरता पर बुलडोजर चलाने की जरूरत है। अगर इस जिहादी मानसिकता पर रोक नहीं लगाई गई तो देश नहीं बचेगा।
इस देश में रहने वाले लोगों को भारत के सह अस्तित्व को स्वीकार करना होगा। यहां रमजान और हनुमान जयंती, दोनों पर जुलूस निकल सकता है।
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