किशनगंज जिले के मुस्लिम—बहुल क्षेत्रों के सरकारी प्रारंभिक विद्यालयों में रविवार की जगह शुक्रवार को छुट्टी होती है। अपने को सेकुलर कहने वाले नेताओं ने इस जिले के लिए अलग से विधान ही बना दिया है।
बिहार का एक मात्र मुस्लिम—बहुल जिला है किशनगंज। कुछ दशकों में तो इस जिले में इतने बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए बस चुके हैं कि अब इस जिले के कुछ ही हिस्सों में हिंदू सिमट गए हैं। ग्रामीण क्षेत्र तो लगभग हिंदू—विहीन हो चुके हैंं। इस कारण इस जिले में कट्टरवादी तत्वों की पकड़ मजबूत होती जा रही है। दुर्भाग्य से सेकुलर सरकारों की नीतियां भी ऐसी बनती रही हैं कि उनसे इन तत्वों को ही बल मिल रहा है।
एक ऐसी ही नीति है सरकारी प्रारंभिक विद्यालयों में छुट्टी देने की। चूंकि बिहार में हर जिले के मौसम और परिस्थिति को देखते हुए जिले के वरिष्ठ अधिकारी ही अवकाश की तिथियां तय करते हैं। कहा जाता है कि इसका लाभ किशनगंज जिले के मुस्लिम नेताओं ने उठाया और प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव बनाया कि मुस्लिम त्योहारों को देखते हुए अवकाश की तिथियां तय करें। पता चला कि ऐसी परम्परा कई दशक से चल रही है। इस कारण इस जिले में इस बार ‘ईद उल फितर’ की छुट्टी छह दिन की हो रही है। पहली छुट्टी 29 अप्रैल, शुक्रवार यानी जुम्मे को हो रही है। इस जुम्मे को रमजान की अंतिम नमाज पढ़ी जाती है। इस कारण इसे ‘अलविदा जुम्मा’ कहा जाता है। इस बार किशनगंज जिले में लगातार 29 अप्रैल से 4 मई तक छुट्टी हो रही है। उल्लेखनीय है कि अलविदा जुम्मा की छुट्टी कई राज्यों में होती है और कइयों में नहीं होती है।
यह भी बता दें कि किशनगंज जिले में ऐसे अनेक विद्यालय हैं, जो शुक्रवार को बंद रहते हैं। ये विद्यालय मुस्लिम—बहुल इलाकों में हैं। मुस्लिम वोट को देखते हुए सरकार ने ही शुक्रवार के अवकाश का प्रावधान किया है। शुक्रवार को बंद रहने वाले विद्यालय रविवार को खुलते हैं। इन विद्यालयों में वीरवार को आधे दिन पढ़ाई होती है, जबकि सामान्य विद्यालयों में शनिवार को आधे दिन पढ़ाई होती है और रविवार को छुट्टी रहती है। सामान्य विद्यालयों के अनेक शिक्षकों ने बताया कि ऐसे विद्यालयों के मुसलमान शिक्षक हर शुक्रवार को नमाज पढ़ने के लिए 12 बजे विद्यालय से चले जाते हैं और फिर वे लौटते नहीं हैं। ऐसे में जिस विद्यालय में दो—तीन मुसलमान शिक्षक होते हैं, वहां 12 बजे के बाद पढ़ाई भी नहीं हो पाती है। ऐसे विद्यालयों की संख्या अच्छी—खासी है। जिला शिक्षा पदाधिकारी सुभाष कुमार गुप्ता से जब इस संबंध में पूछा तो उन्होंने बताया कि ऐसी कभी कोई शिकायत नहीं आई है। उन्होंने यह भी कहा कि शिकायत आने पर ऐसे शिक्षकों के विरुद्ध कार्रवाई हो सकती है।
लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि ऐसे शिक्षकों की शिकायत कौन करे! दरअसल, इस मुस्लिम—बहुल जिले में हिंदू शिक्षक नौकरी कर पा रहे हैं, वही बड़ी बात है। यही हाल हिंदू प्रशासनिक अधिकारियों का है। हर कोई शांति से नौकरी करना चाहता है। इसलिए कोई कुछ करे, इन्हें कोई मतलब नहीं रहता है। चूंकि गांवों में अधिकतर मुसलमान हैं इसलिए स्वाभाविक रूप से प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र भी 99 प्रतिशत मुसलमान ही होते हैं। ऐसे में कौन शिकायत करेगा कि अमुक शिक्षक नमाज पढ़ने के लिए गया और फिर वापस ही नहीं आया। इसलिए मुसलमान शिक्षकों ने हर शुक्रवार को नमाज के बहाने 12 बजे विद्यालय छोड़ देने का चलन ही बना लिया है। यानी इन लोगों के लिए शुक्रवार भी हाफ डे, शनिवार भी हाफ डे और रविवार तो छुट्टी है ही।
मुस्लिम—बहुल इलाके के विद्यालय में कार्यरत एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि न चाहते हुए भी उन्हें हर शुक्रवार को अवकाश पर रहना पड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि ’जिला एक और विधान दो’ वाली नीति आज नहीं तो कल घातक होने वाली है।
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