झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के राजनीतिक सलाहकार सुनील तिवारी के विरुद्ध चल रहे बाल मजदूरी मामले में उच्च न्यायालय ने किसी भी तरह की पीड़क कार्रवाई पर रोक लगाते हुए झारखंड सरकार से जवाब मांगा है।
झारखंड में राज्य सरकार, विशेषकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विरुद्ध कुछ बोलने पर तुरंत किसी से कोई फर्जी मुकदमा दायर करवा दिया जाता है। इसके बाद तो पुलिस उस व्यक्ति के विरुद्ध इस तेजी से कार्रवाई करती है, मानो वह कोई आतंकवादी हो। कुछ ऐसा ही मामला है सुनील तिवारी का। वरिष्ठ पत्रकार रहे सुनील तिवारी राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के राजनीतिक सलाहकार हैं। इनकी ‘गलती’ केवल इतनी थी कि इन्होंने मुम्बई में हेमंत सोरेन के विरुद्ध दायर एक मुकदमे के संदर्भ में हस्तक्षेप याचिका दायर की थी।
उल्लेखनीय है कि मुम्बई की एक मॉडल ने 2013 में हेमंत सोरेन पर बलात्कार का आरोप लगाते हुए एक मुकदमा दायर किया था। कहा जाता है कि इसके बाद हेमंत सोरेन ने अपनी पहुंच का लाभ उठाते हुए उस मामले को दबा दिया था और अंत में मॉडल को वह मुकदमा वापस लेना पड़ा। लेकिन 2020 में फिर से उस मॉडल ने मुकदमा दायर कर मामले की जांच करने की अपील की। इस बार भी उस पर दबाव डाला गया कि वह मुकदमा वापस ले। इसी बीच सुनील तिवारी ने एक हस्तक्षेप याचिका दायर कर न्यायालय से निवेदन किया कि इस मामले में उनकी भी बात सुनी जाए। इस कारण वह मुकदमा अभी भी चल रहा है।
ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद तो झारखंड सरकार सुनील तिवारी के पीछे पड़ गई। अंत में सुनील तिवारी के खिलाफ 16 अगस्त, 2021 को उनके घर पर रहकर पढ़ने वाली एक युवती को मोहरा बनाकर एक मुकदमा नम्बर 229/2021 अरगोड़ा थाने में दर्ज करवाया गया। पुलिस ने उन्हें प्रताड़ित किया, यहां तक उन्हें जेल भी जाना पड़ा। बीस दिन बाद झारखंड उच्च न्यायालय ने उन्हें ज़मानत दे दी। न्यायालय के आदेश पर उन्हें छह महीने झारखंड से बाहर रहना पड़ा।
जब इस मामले में उच्च न्यायालय से जमानत मिली तो झारखंड सरकार सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गई। सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने उच्च न्यायालय के निर्णय को सही ठहराया और झारखंड सरकार की याचिका को ख़ारिज कर दिया।
झारखंड सरकार ने सुनील तिवारी पर पहला मुक़दमा दर्ज करने के महज़ सात दिन के भीतर उनके ख़िलाफ़ चाइल्ड लेबर एक्ट का दूसरा मुक़दमा 255/2021 अरगोड़ा थाने में दर्ज करवा दिया। इसके लिए सुनील तिवारी के घर रह कर कानवेंट स्कूल में पढ़ रही एक 12 वर्षीया बच्ची को मोहरा बनाने का प्रयास हुआ। हालांकि पुलिस के लाख प्रयास के बावजूद इस बच्ची ने सुनील तिवारी के खिलाफ बोलने से इंकार कर दिया। उस बच्ची समेत, उसके पिता, भाभी एवं तीन -चार वर्षीय दो बच्चों तक को पुलिस उनके गांव से उठाकर ले गई। बच्ची के भाई ने इस मामले को लेकर झारखंड उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की, साथ ही इसकी शिकायत राष्ट्रीय जनजातीय आयोग में भी कर दी।
इसी मामले में 18 अप्रैल को उच्च न्यायालय ने सुनील तिवारी के खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने पर रोक लगा दी है।
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