रमजान का महीना और रामनवमी साथ-साथ हैं। और, इसके साथ ही दनदनाती आईं दंगों की खबरें। इस देश में सेकुलर/मुस्लिम कोटरी गंगा-जमुनी तहजीब की बात करते नहीं अघाती। ऐसे में रामनवमी और रमजान साथ-साथ आए तो माहौल तो अच्छा होना चाहिए था, गंगा-जमुनी मेल-मिलाप, सौजन्यता, कलकल-छलछल उत्साह और ठहाके दिखने चाहिए थे, परंतु उत्साह के बजाय उत्पात, ठहाकों के बजाय धमाके क्यों गूंजने लगे? वातावरण में चीख-पुकार, खून-खराबे के धब्बे क्यों उभर आए?
रमजान में हमलों का अर्थ
प्रश्न यह है कि क्या ऐसा पहली बार हुआ है और इस वजह से हमें इन पथराव, हमलों, आगजनी को अपवाद मानते हुए इस पर चिंता नहीं करनी चाहिए? परंतु ऐसा है नहीं, यह अपवाद नहीं है। आप इस घटनाक्रम का फैलाव दो तरह से देख और माप सकते हैं।
’ पहला – अगर किसी हिंदू जुलूस पर पथराव केवल एक स्थान तक सीमित होता तो आप इसे दुर्घटना मान सकते थे परंतु यह एक जगह नहीं, एक दर्जन से ज्यादा जगह दिख रहा है। इसका मतलब कि इन हमलों के कुछ स्पष्ट निहितार्थ हैं।
’ दूसरी कसौटी है कि क्या भारत से बाहर भी इस्लामी दुनिया से रमजान में हिंसक आह्वानों के उदाहरण मिलते हैं। और क्या पहले भी इसके उदाहरण मिलते हैं। जी हां! इसके एक नहीं, कई उदाहरण आपको मिल जाएंगे।
जून, 2018 में लश्करे-तैयबा के फ्रंट जमात उद दावा ने मुसलमानों से अपील की कि वे रमजान के महीने में जिहाद छेड़ें। दावा के एक शीर्ष कमांडर और खुद को आतंकी हाफिज सईद का संदेशवाहक बताने वाले मौलाना बशीर ने यह भी कहा कि एक दिन भारत और अमेरिका में इस्लाम का झंडा फहराएगा और पीएम मोदी मारे जाएंगे।
गौर करेंगे तो पाएंगे कि मुस्लिम जमात भी कई फिरकों/ आतंकी तंजीमों में बंटी है और रमजान के दौरान काफिरों के अलावा मुसलमान एक-दूसरे को निशाना बनाने से नहीं चूकते। अफगानिस्तान का उदाहरण देखिए। मुस्लिम देश है परंतु रमजान के दौरान 12 मई, 2020 को मजहब की स्थापना के लिए काबुल के एक प्रसूति अस्पताल पर जिहादियों ने हमला किया। इसमें 24 जानें गईं। इनमें आठ तो वे बच्चे थे जिन्होंने अभी-अभी दुनिया में कदम रखा था। कुछ मांएं थीं जिन्होंने अभी-अभी बच्चे को जन्म दिया था या देने वाली थीं। कुछ नर्सें थीं जो बच्चे पैदा करने में इन मांओं की मदद कर रही थीं।
रमजान के दौरान हिंसक घटनाओं का इतिहास और वर्तमान परिदृश्य का विश्लेषण बताता है कि रमजान में होने वाले हमले कोई इक्का-दुक्का अपवाद नहीं हैं और न ही स्थानीय प्रकृति के हैं। यानी दंगों की ये कड़ियां रमजान से जुड़ी हुई हैं, इस्लाम से जुड़ी हुई हैं। यह क्षेत्र विशेष की समस्या नहीं है और ना ही इस कालखंड में कुछ ऐसा है कि मुसलमानों को ज्यादा दिक्कत हो रही है। यह भारत के अलावा अन्य स्थानों पर भी हो रहा है और हर कालखंड में होता आया है।
आतंकवाद का ‘मजहबी कनेक्शन’
अब जरा याद करें मई, 2018। कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती केंद्र से अपील करती हैं कि रमजान के पवित्र महीने को देखते हुए घाटी में आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के अभियान को रोक कर संघर्ष विराम घोषित किया जाए। इस अपील को कैसे देखना चाहिए?
जुमला है कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता। यदि आतंकवाद और मजहब अलग-अलग चीजें हैं तो फिर आतंकवादियों के खिलाफ अभियान को रमजान के महीने में रोकने की अपील का क्या मतलब रहा होगा? क्या आतंकवादी रमजान के महीने में हिंसा नहीं करते? आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं है तो रमजान में उनके खिलाफ अभियान रोकने का क्या औचित्य? इसी मजहबी महीने में जिहाद का ऐलान होता है और इसी मजहबी महीने में बाकी जगह हमले हो रहे हैं। मई, 2021, एक बार फिर रमजान का महीना। फिलिस्तीन की ओर से इज्राएल पर जमकर हमले हुए। 2014 से इज्राएल से कोई बड़ा टकराव न होने से हमास की लोकप्रियता घट रही थी। हमास ने अशांति फैलाने के लिए रमजान का महीना चुना। कश्मीर में तो हर साल ये हमले रमजान के दौरान बढ़ते रहे।
शांति से दूर रमजान
रमजान का शांति से क्या लेना-देना है? असल में देखा जाए तो गैर-मुसलमानों को अशांत करने वाला समय इसी दौरान शुरू होता है।
इस्लाम की स्थापना के बाद बद्र की लड़ाई भी रमजान महीने में ही हुई।
ल्ल मक्का पर फतह की लड़ाई भी इसी महीने में लड़ी गई।
1946 में जिन्ना ने हिंदुओं के खिलाफ रक्तरंजित डायरेक्ट ऐक्शन डे भी इसी माह में मनाया।
बीते वर्षों में सीरिया में अलकायदा के आधिकारिक संगठन नुस्रा फ्रंट ने रमजान को विजय अभियान का महीना बताया और रमजान के नजदीक आते ही आईएस के प्रवक्ता अबु मोहम्मद अल-अदनानी ने दुनियाभर के अपने समर्थकों से कहा था, तैयार हो जाओ। काफिरों के लिए इसे आपदा का महीना बनाने के लिए तैयार हो जाओ।
तो क्या इस्लाम और रमजान सिविल सोसाइटी के लिए समस्या बन गए हैं? सामूहिक नमाज की बात हो, अजान की बात हो, लाउडस्पीकर से औरों को ललकारने की बात हो, ये क्या है? नमाज के लिए बुलाने को अजान कहते हैं मगर इस आह्वान के शाब्दिक अर्थ मुसलमानों को, उनके खुदा और उनके नबी को श्रेष्ठ और अंतिम तौर पर सही ठहराने वाले तथा अन्य सभी की आस्था को पूरी तरह खारिज करने की ललकार से भरे हैं। ‘यहां हमारे अलावा कोई नहीं..’ की यह ललकार सड़क पर सामूहिक नमाज की जिद से यातायात और सार्वजनिक सुविधा बाधित करने और बुर्का के नाम सिविल व्यवस्था तोड़ने के हठ तक जाती है। प्रश्न है कि – यह हठधर्मिता क्या सभ्य समाज में स्वीकार्य हो सकती है?
राजस्थान के करौली में 2 अप्रैल की शाम नवसंवत्सर जुलूस के एक मस्जिद के सामने से गुजरने पर छत से पथराव हुआ। इसके बाद दंगे भड़क गए। आगजनी में लाखों की संपत्ति स्वाहा हुई और पथराव में 20 लोग जख्मी हुए। 46 से ज्यादा लोग हिरासत में लिए गए और कई गिरफ्तार हुए।
गुजरात के खंभात और आणंद जिलों में रामनवमी पर मुस्लिम समुदाय के पथराव से घायल 65 वर्षीय कन्हैयालाल राणा की मृत्यु हो गई। झड़पों में एक अन्य व्यक्ति भी घायल हुआ और कुछ दुकानों में आगजनी हुई। पुलिस ने आंसू गैस छोड़कर स्थिति पर काबू पाया। ऐसी ही झड़प साबरकांठा जिले के हिम्मतनगर में भी हुई।
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गोवा के वास्को कस्बे के बैना इलाके में रामनवमी जुलूस पर पथराव के बाद हिंसा भड़क उठी। पत्थरबाज भाग कर बैना मस्जिद में जो छिपे। घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने थाने गए हिंदुओं पर भी हमला किया गया और वास्को पुलिस एवं वास्को पुलिस स्टेशन पर भी हमला किया गया।
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झारखंड के लोहरदग्गा जिले के हिरही गांव में रामनवमी पर हुई झड़प में 16 से ज्यादा लोग जख्मी हो गए। चार की हालत गंभीर है। हिंसा के दौरान 10 मोटरसाइकिल एवं एक पिकअप वैन में आगजनी की गई। इसके तीन दिन बाद लोहरदग्गा के ही सेन्हा थानाक्षेत्र के अरु गांव में कुछ मुस्लिम युवकों ने एक शिव मंदिर में घुस कर जबरन लाउडस्पीकर बंद करा दिया।
कर्नाटक के कोलार जिले के मुलबगल कस्बे में रामनवमी शोभा यात्रा पर पथराव हुआ। प्रतिमा के साथ-साथ यात्रा में शामिल दो पहिया एवं चार पहिया वाहनों पर भी हमले हुए और आगजनी की गई।
मध्य प्रदेश के खरगौन जिले के तालाब चौक इलाके में रामनवमी जुलूस पर पथराव के बाद हिंसा फैल गई। इसके बाद शहर के चार अन्य इलाकों में भी झड़पें शुरू हो गईं। कम से कम 10 घरों को आग के हवाले कर दिया गया। इस दौरान गोलियां भी चलीं। हिंसा में एसपी सिद्धार्थ चौधरी समेत 24 लोग घायल हुए हैं। बड़वानी जिले के सेंधवा कस्बे में रामनवमी जुलूस पर हमले के बाद कई स्थानों पर झड़पें हुई जिसमें दो पुलिसकर्मियों समेत सात लोग घायल हुए।
महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई के मलाड इलाके में मस्जिद के सामने से रामनवमी जुलूस गुजरने पर मुस्लिम समुदाय ने अल्ला हो अकबर के नारे लगाए। मनखुर्द इलाके में मुस्लिमों द्वारा हिंदुओं को जबरन रोके जाने पर झड़पें हुईं। अहमदनगर जिले के नेवासा में मुस्लिम समुदाय ने रामनवमी जुलूस में हरे झंडे लहराए। पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो पुलिस पर हमला कर दिया गया। जालना जिले में मुस्लिम युवकों द्वारा हनुमान मंदिर पर पथराव करने से हिंसा शुरू हुई।
पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले के मनचनतला इलाके में रामनवमी जुलूस पर ईंटों से हमला हुआ। हावड़ा जिले के शिबपुर इलाके में जुलूस पर पथराव और आगजनी हुई।
दुनिया को स्वीकार नहीं
दुनिया यह हठधर्मिता, उन्माद और कट्टरता स्वीकार नहीं करती। फ्रांस ने 2021 में रमजान के महीने में ही मुसलमानों पर विशेष पाबंदियां लगाई थीं। कट्टरपंथी इस्लाम पर अंकुश लगाने के मकसद से लाए गए बिल को फ्रांस की सीनेट ने पास किया था। तमाम प्रावधानों पर चली लंबी बहसों के बाद इस बिल को सीनेट में पेश किया गया है। इसमें वे तमाम प्रावधान शामिल हैं जिनमें स्कूल ट्रिप के दौरान बच्चों के माता-पिता के मजहबी पोशाक पहनने पर रोक, नाबालिग बच्चियों के चेहरे छिपाने अथवा ‘सार्वजनिक स्थानों पर मजहबी प्रतीकों’ को धारण करने पर रोक लगाने की बात कही गई है। इनमें शैक्षिक परिसर, शादी समारोहों में विदेशी झंडा लहराने पर रोक लगाने, सार्वजनिक स्विमिंग पूल में बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगाने का भी प्रावधान है। अभी तो वहां पर राष्ट्रपति पद का चुनाव है जिसमें आप्रवासी समस्या और इस्लामिक कट्टरता बड़ा मुद्दा है।
भारत में दुविधा
दुनिया तो इस तरह से सोच रही है परंतु भारत में क्या चल रहा है? भारत में दो तरह की राजनीति है- एक, एकपक्षीय हिंसा को बढ़ावा देना। राजस्थान का उदाहरण सामने है। करौली में नवसंवत्सर जुलूस पर हमले और हिंसा के बाद कांग्रेस सरकार ने पीड़ितों के साथ न्याय करने के बजाय कुछ अलग ही रुख अपनाया। अभी महावीर जयंती की शोभा यात्रा पर जैन अल्पसंख्यकों की भावनाओं को ताक पर रख मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे साष्टांग करती राजस्थान सरकार ने फरमान जारी किया कि लोग घरों पर धार्मिक ध्वज नहीं लगाएंगे। सड़कों पर शोभायात्रा निकालने, छतों से शोभायात्रा देखने पर भी पाबंदी लगा दी गई। इसमें दूसरी बात यह है कि सरकार एक वर्ग को ही अल्पसंख्यक मान रही है, दूसरे बहुसंख्यक हों या कोई अन्य अल्पसंख्यक, सरकार को इसकी कोई चिंता ही नहीं है।
एक उदाहरण दिल्ली में भी दिखा। दिल्ली सरकार ने रमजान के दौरान मुस्लिमों को कार्यअवधि में दो घंटे का अवकाश देने का आदेश जारी किया। हल्ला मचा तो वह आदेश वापस हुआ। यह हौले-हौले तुष्टीकरण ही हठधर्मिता और उन्माद की बढ़ती बीमारी की जड़ है।
इन उदाहरणों से इतर, अब एक अच्छा काम दिख रहा है। प्रशासन दंगाइयों, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों पर सख्त रुख अपनाते हुए उनकी संपत्तियों/ अतिक्रमण को निशाने पर ले रहा है। बुलडोजर चल रहे हैं। परंतु तुष्टीकरण के लिए कुछ लोग इसका विरोध करते हुए उन दंगाई मुसलमानों के परिवारों के रोते हुए फोटो चला रहे हैं। घटनाएं उनके विरोध में गवाही दे रही हैं। उनके पास आंकड़े नहीं हैं, तथ्य नहीं हैं। वे सिर्फ भावनाओँ का खेल खेल रहे हैं। उन दंगाइयों के कृत्य से पीड़ित लोग अस्पतालों में हैं, उनके घर नष्ट हो गए हैं। मगर तुष्टीकरण करने वाले इन पर ध्यान देने के बजाय भावनात्मक कार्ड खेल रहे हैं।
अगर तुष्टीकरण का खेल चलता रहा तो स्थिति क्या होगी? हमने विभाजन झेला है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का क्या हाल है, वो भी देख रहे हैं। अफगानिस्तान का अंजाम भी देख रहे हैं।
जरूरी यह है कि सरकारें मजहब और पाक महीने की आड़ में होने वाले इन उपद्रवों के खिलाफ समय रहते सख्त से सख्त कार्रवाई करें। क्योंकि सरकार का अर्थ ही है कि वह सज्जनों में, सिविल सोसाइटी में, साहस का संचार करे, दुर्जनों में भय का विस्तार करे। बाकियों के लिए शांति और सुरक्षा की गारंटी सरकार और प्रशासन के पास नहीं होगी तो किसके पास होगी? यदि सरकार शांति की गारंटी नहीं देती तो बार-बार उत्पात सहता समाज आक्रोश से भरता है और कानून हाथ में लेने पर मजबूर हो जाता है। भारत में ऐसा हरगिज नहीं होना चाहिए क्योंकि यदि ऐसा होता है तो चित्र रमजान के इन दंगों से कहीं ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
@hiteshshankar
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