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राष्ट्रीय सामाजिक समरसता के अग्रदूत डॉ. आंबेडकर

एक महान विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री और समाज सुधारक के साथ बाबा साहेब प्रखर संस्कृतिवादी भी थे. भारतीयता से ओतप्रोत उनके विचार आज भी हम सबके लिए मार्गदर्शक सिद्धांत की तरह ही हैं.

by WEB DESK
Apr 14, 2022, 11:00 am IST
in मत अभिमत
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डॉ.रमन सिंह

आज से लगभग 19 वर्ष पहले सन, 2003 जब समाप्ति की ओर था, नियति ने उस सर्दी में एक नया काम सौंप दिया था मुझे. छत्तीसगढ़ महतारी के सेवक, मुख्यमंत्री के रूप में काम करने का. इस दायित्व में लगातार 15 वर्ष अपनी यात्रा और भूमिका कैसी रही, इसे इतिहास को तय करना है. लेकिन इस दौरान ईश्वर ने अगर कुछ अच्छे कार्य करा लिए होंगे तो निश्चय ही इसमें जिन महापुरुषों की प्रेरणा रही उनमें बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर अग्रगण्य हैं. हम सब जिस भी राजनीतिक दायित्व में होते हैं तो स्वाभाविक ही संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ से बधे होते हैं, ऐसे में अभीष्ट यही है कि हर प्रतिनिधि स्वयं के कार्यों को संविधान निर्माता बाबा साहेब के विचारों की कसौटी पर कसे.

छत्तीसगढ़ के रूप में हमें अपना नया राज्य अटल जी ने दिया. चुनौतियां अपार थी. आज़ादी के छह दशक गुजर जाने के बाद तक भी हमारा अंचल तब सामान्य मौलिक सुविधाओं से भी वंचित था. अफ़सोस की बात थी हमारे लिए कि सबके लिए स्वास्थ्य और शिक्षा तो दूर, शासन अपने लोगों के लिए भोजन तक की गारंटी नहीं दे पाया था. ऐसी स्थिति में हमने सबसे पहले सबको भोजन का अधिकार देने से अपनी यात्रा की शुरुआत की और आगे स्वास्थ्य और शिक्षा इन तीन प्राथमिकताओं के साथ आगे बढ़े. बाबा साहेब के मूलमंत्र शिक्षित बनो, संगठित बनो और संघर्ष करो, को ही हमने तब अपनी यात्रा का पाथेय बनाया. उनके समानता और समरसता के विचारों पर ही स्वयं को चलना निर्धारित किया, कितना चल पाया इसे इतिहास पर छोड़ कर बाबा साहेब के जन्मदिन पर उन्हें कुछ शब्दांजलि समर्पित करता हूं.

कम लोगों को यह ज्ञात होगा कि मध्य प्रदेश-बिहार के वनवासी अंचल के विकास के लिए 50 के दशक में ही बाबा साहेब ने राज्य विभाजन का प्रस्ताव दिया था जिसे अटल जी की सरकार आने पर छत्तीसगढ़-झारखंड बनाकर साकार किया गया. आज वंचितों के लिए हम आरक्षण समेत अन्य प्रावधानों से अपने वनवासी और वंचित बंधुओं को आगे लाने में सफल हुए तो यह बाबा साहेब के संविधान से ही संभव हुआ है. जिस तरह बाबा साहेब आजन्म महिला अधिकारों के लेकर प्रयासरत रहे, स्थानीय निकायों एवं पंचायतों में पचास प्रतिशत आरक्षण देकर एक तरह से हमने बाबा साहेब को अपनी श्रद्धांजलि ही व्यक्त की थी.

बाबा साहेब के विचारों को जब आप समग्रता में देखेंगे, निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर जब उनका मूल्यांकन करेंगे, तो पायेंगे कि वास्तव में राजनीतिक स्वार्थवश उन्हें हमेशा कुछ क्षेत्रों तक सीमित कर दिया गया था. एक सोची-समझी रणनीति के तहत उन्हें राष्ट्र के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता के तौर पर बताये जाने से बचा गया. उनके परिनिर्वाण के बाद भी जान-बूझ कर उनकी स्मृति को भी हमेशा पूर्वाग्रह का शिकार बना कर प्रस्तुत किया गया. जबकि सच तो यह है कि बाबा साहेब अपनी प्रज्ञा, अपने ज्ञान और कृतित्व से भी अपने समकालीनों से मीलों आगे थे. अगर राष्ट्र के प्रति उनकी निष्ठा को देखा जाय तो भारतीय संस्कृति के प्रति स्वाभिमान से भरे एक प्रखर राष्ट्रीय के रूप में ही उनका परिचय होगा.

एक महान विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री और समाज सुधारक के साथ बाबा साहेब प्रखर संस्कृतिवादी भी थे. भारतीयता से ओतप्रोत उनके विचार आज भी हम सबके लिए मार्गदर्शक सिद्धांत की तरह ही हैं. अखंड भारत के विचार को जीने और उसी के निमित्त अपना जीवन समर्पित करने वाले डा. आंबेडकर ने न केवल प्राण-पण से भारत विभाजन का विरोध किया अपितु वे यह आशा भी रखते थे कि अंततः भारत अखंड होगा. बाबा साहेब ने कहा था – ‘मैं हिंदुस्तान से प्रेम करता हूं. मैं जीवित रहूंगा तो हिंदुस्तान के लिए और मरूंगा तो हिंदुस्तान के लिए.’ उनके अनुसार, जब तक सामाजिक समरसता का भाव पूर्णतः राष्ट्र में उत्पन्न नहीं होगा तब तक राष्ट्रवाद की स्थापना नहीं हो पाएगी.’’ बाबा साहेब की जीवनी लिखने वाले सी.बी खैरमोड़े ने बाबा साहेब के शब्दों को उदृत करते हुए लिखा है- “मुझमें और सावरकर में इस प्रश्न पर न केवल सहमति है बल्कि सहयोग भी है कि हिंदू समाज को एकजुट और संगठित किया जाए, और हिंदुओं को अन्य मजहबों के आक्रमणों से आत्मरक्षा के लिए तैयार किया जाए.’’

यह पंक्तियां लिखते हुए संतोष हो रहा है कि मेरी पार्टी भाजपा को यह शक्ति मिली कि वह जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर सकी. बाबा साहेब भी इस अनुच्छेद के प्रबल विरोधी थे. वे भी अनुच्छेद 370 को राष्ट्रीय एकता में बाधक मानते थे. न केवल अनुच्छेद 370 बल्कि अन्य राष्ट्रीय सवालों पर भी डॉ. आंबेडकर के विचारों का आप भाजपा को अकेला उत्तराधिकारी पायेंगे. बाबा साहेब ‘एक देश में एक विधान’ यानी समान नागरिक आचार संहिता के भी प्रबल पक्षधर थे. उनके कन्वर्जन को लेकर अनेक बात कही जाती रही है, लेकिन वे भारतीयता को सर्वोपरि मानते थे. उन्होंने कहा था ‘बौद्धमत भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है. मैंने सावधानी बरती है कि मेरे पंथ-परिवर्तन से इस देश की संस्कृति और इतिहास को कोई हानि न पहुंचे.’

अपने प्रातः स्मरणीय महापुरुषों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करने के लिए आपके पास दो मुख्य विकल्प होते हैं. एक तो यह कि उनके विचारों के अनुकूल समाज बनाने के लिए आप स्वयं को समर्पित करें और दूसरा, उनकी स्मृति को अक्षुण्ण रखें. भाजपा ने इन दोनों अर्थों में बाबा साहेब के प्रति कृतज्ञता अर्पित की है. यह जानकर पीड़ा हो सकती है कि 1990 तक बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं दिया गया था. जब भाजपा समर्थित वीपी सिंह की सरकार सत्ता में आयी तब बाबा साहेब को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया. प्रसंगवश यह भी बताया जाना समीचीन होगा कि यही वह समय था जब शासकीय सेवाओं में आरक्षण की भी शुरुआत की गयी. इससे पहले केवल आरक्षण के नाम पर समाज को लड़ाने और वोट बैंक की राजनीति करने का काम ही किया गया था.

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हमेशा बाबा साहेब के विचारों और उनकी स्मृतियों के संरक्षण के प्रति गंभीर रहे हैं. उन्होंने दिल्ली स्थित बाबा साहेब के घर अलीपुर रोड में राष्ट्रीय स्मारक स्थापित कराया. मोदी जी की सरकार ने डॉ. आंबेडकर से जुड़े पांच प्रमुख स्थानों को ‘पंच तीर्थ’ के रूप में विकसित करने का कार्य किया है. मऊ में उनके जन्मस्थान, लंदन में डॉ. आंबेडकर मेमोरियल जहां उनकी शिक्षा हुई, नागपुर में जहां उनकी दीक्षा हुई, मुंबई में चैत्य भूमि और दिल्ली में राष्ट्रीय स्मृति के रूप उनकी महापरिनिर्वाण भूमि स्थापित किये गए. इसी तरह भाजपा सरकार में ही संसद के सेंट्रल हॉल में बाबा साहेब का चित्र लगाया गया. इससे पहले की सरकार वहां जगह नहीं होने का बहाना करती रही थी. ज़ाहिर है इसलिए क्योंकि कांग्रेस चाहती थी कि राष्ट्रीय फलक पर बाबा साहब को स्थान नहीं मिले.

एक बात का ख़ास तौर पर यहां जिक्र किया जाना आवश्यक है कि कांग्रेस हमेशा से इस बात पर अपनी पीठ ठोकती है कि अंतरिम सरकार में उसने बाबा साहेब और डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को मंत्रिमंडल में स्थान दिया. यहां यह गौर करने वाली बात यह है कि तब कांग्रेस को स्थायी सरकार के लिए जनादेश नहीं मिला था. देश में तो पहला आम चुनाव ही 1952 में हुआ था. यह भी दुखद संयोग ही रहा कि वे दोनों मंत्री (बाबा साहेब और डा. मुखर्जी) अंततः अपमानित होकर नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने पर ही विवश किये गए थे. उसके बाद पहले आम चुनाव में बाबा साहेब की हार सुनिश्चित करने में कांग्रेस द्वारा कोई कसर नहीं छोड़ी गयी थी. यहां तक कि 1953 में भंडारा सीट से लोकसभा के उपचुनाव में भी सारे प्रयत्न करके बाबा साहेब को लोकसभा पहुंचने से रोका गया. अंततः डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की कोशिशों से बाबा साहेब राज्यसभा पहुंचे.


बहरहाल, बाबा साहेब के जीवन पर जिन तीन गुरुओं का विशेष प्रभाव पड़ा, जिनसे उन्होंने ज्ञान, स्वाभिमान और शील की प्रेरणा ली, वे भगवान बुद्ध, महात्मा कबीर और महात्मा फूले थे. महात्मा कबीर की तरह ही बाबा साहेब ने भी तमाम धर्मों-मत-सम्प्रदायों की कुरीतियों पर करारा प्रहार किया है. सौभाग्य है कि फिर भी कबीर की तरह ही बाबा साहेब भी लगभग सभी के आदर के पात्र ही रहे. हम सबने उनकी आलोचनाओं के प्रकाश में अपनी कमियों को दूर किया है. कबीर साहब के बारे में कहते हैं उनके दिवंगत होने के बाद उनके पार्थिव देह से कुछ पुष्प निकले जिन्हें सभी मतों ने आपस में में बांट लिया. बाबा साहेब के परिनिर्वाण के कुछ दशक बीत जाने के उपरान्त भी हमारे पास उनके द्वारा अन्वेषित विचार पुष्पों के सुगंध में ही हम सब भी अपने आगे का मार्ग तलाशते रहेंगे.

बाबा साहेब ने 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय में ‘कास्ट इन इंडिया’ प्रबंध प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने लिखा- “भारत में सर्वव्यापी सांस्कृतिक एकता है. यद्यपि समाज अनगिनत जातियों में बंटा है फिर भी वह एक संस्कृति से बंधा हुआ है.” आइये इसी सुदृढ़ संस्कृति रुपी डोर से बंधे हम सब उनके सपनों को साकार करने के लिए एकजुट हों. तमाम विविधताओं के बावजूद जिस सांस्कृतिक ऐक्य के लिए बाबा साहब समर्पित रहे, हमें उनके ही सपनों का देश बनाने स्वयं को आत्मार्पित करना होगा. बाबा साहेब जिस सामजिक समरसता, देश की एकता, वंचितों का विकास आदि के आजन्म उद्यम किया, वैसा ही भारत, सांस्कृतिक रूप से एक सशक्त राष्ट्र बनाना ही बाबा साहेब को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री हैं।)

Topics: Dr Ambedkar pioneer national social harmony सामाजिक समरसता अग्रदूत डॉ. आंबेडकर
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