पंजाब स्टेट पावर कारपोरेशन लिमिटेड (पीएसपीसीएल) को कोयले की कमी का सामना करना पड़ रहा है। गांव में एक से पांच घंटे, जबकि शहरों में एक से दो घंटे का पावर कट लगाया जा रहा है। बुधवार को सुबह पटियाला, लुधियाना, जालंधर, संगरूर और अमृतसर जैसे बड़े शहरों में भी पावर कट लगा। विशेषज्ञ इसके लिए सीधे आम आदमी पार्टी सरकार की गलत नीतियों को जिम्मेदार बता रहे हैं। क्योंकि गर्मी के सीजन में बिजली की कमी को पूरा करने के लिए जो नीति बनाई जानी चाहिए थी, इस ओर सरकार ने समय पर ध्यान नहीं दिया।
परिणाम यह निकला कि अब थर्मल प्लांट को कोयला नहीं मिल रहा है। पंजाब में पांच थर्मल प्लांट हैं। इन्हें चलाने के लिए हर दिन 75 मीट्रिक टन कोयले की जरूरत होती है। लेकिन कोयले की कमी के चलते ये 85 फीसदी क्षमता पर ही चल रहे हैं।
दूसरी ओर पंजाब में पिछले साल की तुलना में बिजली की मांग में 40 प्रतिशत ज्यादा है। जून से शुरू होने वाले धान की बुवाई के मौसम के दौरान खेतों को 8 घंटे की पूर्ति करनी है। इस वादे को पूरा करने के लिए कटौती का सहारा लेने के लिए बिजली नियामक से मंजूरी ली गई है।
पीएसपीसीएल के एक अधिकारी ने बताया है कि एक प्राइवेट थर्मल प्लांट के बंद होने की वजह से पंजाब में स्थिति गंभीर हो गई है। अधिकारी ने कहा, ”पावर की डिमांड बढ़ती जा रही है. हम जल्द ही बारिश की उम्मीद कर रहे हैं। बारिश आती है तो हम पावर सप्लाई को मैनेज कर पाएंगे” यदि ऐसा न हुआ तो पंजाब में भारी बिजली संकट आ सकता है।
आम आदमी पार्टी की सरकार के सामने 300 यूनिट बिजली फ्री के वादे को पूरा करने की चुनौती बना हुआ है। कोयले की कमी से पैदा हुए बिजली संकट से भगवंत मान की सरकार के लिए समस्या बढ़ गई है। विपक्ष लगातार आम आदमी सरकार और सीएम भगवंत मान पर निशाना साध रहा है। लेकिन सरकार के पास इस समस्या का कोई समाधान होता नजर नहीं आ रहा है।
तो क्या बिजली पर फेल हो गए भगवंत मान
विपक्ष ने भगंवत मान को बिजली के मामले में फेल करार दिया है। उनका कहना है कि तभी तो बिजली महकमे के अधिकारियों की मीटिंग दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ले रहे हैं। इस मीटिंग में पंजाब के सीएम भगवंत मान तो बुलाया तक नहीं गया। पंजाब के सीनियर पत्रकार सुखदेव सिंह ने कहा कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि प्रदेश के अधिकारियों की मीटिंग कोई दूसरे राज्य का सीएम लें। उन्हें यह अधिकार किसने दिया है। इससे भी बड़ी बात तो यह है कि इस मीटिंग से सीएम को दूर रखा गया है। निश्चित ही पंजाब में बिजली की समस्या आ रही है। इससे निपटने में सरकार फिलहाल तो नाकाम साबित होती नजर आ रही है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मान की जगह केजरीवाल अधिकारियों की मीटिंग लेना शुरू कर दें। उन्होंने बताया कि क्योंकि पंजाब में सरकार के पास बिजली संकट को लेकर कोई बहाना नहीं है। यह इस सरकार की नाकामी है। इससे बचने के लिए अब बैठकों का दौर शुरू हो रहा है। लेकिन केजरीवाल की मीटिंग को किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता। यह मान की नाकामी ही मानी जाएगी। उन्होंने बताया कि क्योंकि बिजली को लेकर आप ने मतदाता से इतने वादे कर लिए, इन्हें पूरा करना अब उनके लिए मुश्किल हो रहा है। यह आप का बड़बोलापन था, जिसे अब पंजाब के लोग भुगत रहे हैं।
सुखदेव सिंह ने बताया कि पंजाब में पहले ही आशंका थी कि केजरीवाल राज्य को रिमोट कंट्रोल से चलाना चाह रहे हैं। बिजली संकट से उन्हें यह मौका मिल गया है। लेकिन यह पंजाब के लिए सही नहीं है। इससे राज्य की प्रतिष्ठा को धक्का लगा है। यह नहीं होना चाहिए। यदि मान बिजली की स्थिति संभाल नहीं पा रहे हैं तो उन्हें बदल कर किसी दूसरे विधायक को सीएम बनाया जाए। लेकिन यह किसी भी मायने में सही नहीं कि इस तरह के संकट पर दूसरे राज्य का सीएम पंजाब के अधिकारियों की मीटिंग लें।
अब तो बरसात पर उम्मीद है
बिजली मामलों के विशेषज्ञों ने बताया कि यदि जल्दी ही बरसात नहीं होती तो पंजाब में बिजली की स्थिति खासी खराब हो सकती है। क्योंकि धान के सीजन में कृषि क्षेत्र में बिजली की मांग बढ़ जाएगी। होना तो यह चाहिए था कि भविष्य की योजनाओं को ध्यान में रख कर सरकार तैयारी करती। लेकिन इस ओर समय रहते ध्यान नहीं दिया। इस वजह से यह स्थिति बन गई है। आम आदमी सरकार के पास प्रशासनिक अनुभव की कमी भी एक बड़ी वजह बिजली संकट की उभर कर सामने आ रही है। क्योंकि ज्यादातर नेताओं ने इस तरह की स्थिति बना दी मानो उनके हाथों जादू की छड़ी है, जिससे वह एक रात में सब ठीक कर देंगे। बोलना अलग बात है, ग्राउंड पर करना दूसरी बात है। मान सरकार कहने और करने के बीच के अंतर को समझ नहीं पाई। इस वजह से पंजाब में यह स्थिति बनी हुई है। उन्होंने बताया कि यदि जल्दी ही बरसात नहीं होती तो पंजाब में धान के सीजन में भारी दिक्कत आ सकती है। इसका असर कृषि, आम आदमी और पंजाब के उद्योग पर भी पड़ सकता है। यह तो इस बार की समस्या है, इसके अलावा बिजली कंपनियों का घाटा दूसरी बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। इससे निपटने के लिए भी सरकार को समय रहते योजना बनानी चाहिए। क्योंकि यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया तो यह भी एक दिन बड़ा संकट बन जाएगा। जिससे निपटना सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है।
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