मीडिया में अचानक किसी राज्य के बारे में अधिकतर नकारात्मक समाचार दिखने लगें तो समझ जाना चाहिए कि अब वह राज्य भारत विरोधी गठबंधन के निशाने पर है। दो दशक से गुजरात, हाल में उत्तर प्रदेश और अब कर्नाटक इसके ज्वलंत उदाहरण हैं यह भी संयोग है कि इस तरह से निशाना बनने वाले राज्य अनिवार्य रूप से भाजपा शासित होते हैं। बीते वित्त वर्ष की पहली छमाही में भारत में कुल विदेशी निवेश का लगभग 45 प्रतिशत अकेले कर्नाटक में हुआ है। इसके बाद से कर्नाटक को लेकर मीडिया कवरेज लगातार नकारात्मक बनी हुई है। एक छोटे से कॉलेज में बुर्का विवाद से लेकर हलाल तक के विवाद की जड़ में यही कारण छिपा है। मजहबी कट्टरपंथियों की आए दिन हिंसा को छिपाने वाला मुख्यधारा मीडिया प्रकट रूप से इस दुष्प्रचार का हिस्सा है।
मुख्यधारा के अधिकांश मीडिया संस्थानों में हलाल विवाद को हिंदुओं की असहिष्णुता की तरह प्रदर्शित किया जा रहा है। भारतीय मीडिया के एक बड़े वर्ग को हलाल कंपनियों के करोड़ों के विज्ञापन मिलते हैं। पूछा जाना चाहिए कि यदि इसी तरह से देश के बहुसंख्यक समुदाय ने मजहब के आधार पर बहिष्कार आरंभ कर दिया तो क्या होगा? हलाल अर्थव्यवस्था द्वारा आतंकवादियों तक धन पहुंचाने का प्रश्न भी निरंतर दबाया जा रहा है।
दिल्ली में जामिया पर प्रदर्शन के समय पिस्तौल लहराने वाले युवक की धार्मिक पहचान को तूल देने वाले चैनल और अखबार, गोरखनाथ मंदिर में चाकू से दो पुलिसकर्मियों को घायल करने वाले मुर्तजा अब्बासी के बचाव में दिखे। कहा गया कि उसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है। यह एक तरह का आतंकी हमला था, लेकिन दिल्ली के किसी भी समाचार पत्र ने इसे प्रमुखता से नहीं छापा। एनडीटीवी जैसे सेकुलर चैनलों ने तो हमलावर का नाम तक छिपाया। भारतीय मीडिया लंबे समय से आतंकवाद का बचाव करता रहा है और यह घटना भी उसी की कड़ी मात्र है। यदि जामिया पर पिस्तौल लहराने वाले को मीडिया ने ‘रामभक्त गोपाल’ बताया था, तो गोरखनाथ मंदिर पर हमला करने वाले मुर्तजा की पहचान छिपाने का प्रयास क्यों हुआ?
मध्य प्रदेश में एक मुस्लिम महिला ने ससुर पर बलात्कार का आरोप लगाया। केरल के मीडिया समूह एशियानेट की हिंदी साइट ने इसे ‘नवरात्र पर बलात्कार’ बताया। एशियानेट का स्वामित्व स्टार समूह के पास है। हिंदू परिवार व्यवस्था को निशाना बना रहे अब्राहमिक नेटवर्क का वह भी भागीदार है। स्टार समूह से ही जुड़े डिज्नी की एक अधिकारी ने कहा कि चैनल पर समलैंगिक चरित्रों को ज्यादा दिखाया जाएगा, ताकि बच्चे स्त्री, पुरुष के अलावा अन्य लैंगिक पहचानों की ओर भी आकर्षित हों। एक समाज के रूप में हमें सोचना चाहिए कि क्या बच्चों का डिज्नी के चैनल देखना सुरक्षित है?
भारत का गलत मानचित्र छापना नियमों के तहत दंडनीय अपराध है। लेकिन मीडिया नियमित रूप से इसका उल्लंघन करता रहता है। कुछ इसे ठीक कर लेते हैं, लेकिन कुछ एक ही त्रुटि बार-बार दोहराते हैं। टाइम्स आफ इंडिया ने संपादकीय पेज पर भारत का गलत नक्शा छापा। पाकिस्तान नियंत्रित कश्मीर को लेकर यह खेल बहुत समय से चल रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध में भारतीय मीडिया का बड़ा वर्ग अमेरिका और नाटो का प्रवक्ता बना हुआ है। इंडिया टुडे टीवी पर ढेरों रिपोर्ट दिखाई हुई जो बाद में अमेरिकी दुष्प्रचार सिद्ध हुई। पाकिस्तान के राजनीतिक संकट को आजतक ने ‘इमरान खान की शानदार गेंदबाजी’ के रूप में दिखाया। एक शत्रु राष्ट्र के इस्लामी कठपुतली प्रधानमंत्री का ऐसा महिमामंडन भारतीय मीडिया ही कर सकता है। टीआरपी व्यवस्था दोबारा आरंभ होने के बाद से यह स्वयंभू नंबर एक चैनल लगातार पिछड़ रहा है। इससे यह भी पता चलता है कि टीआरपी घोटाले का वास्तविक लाभार्थी कौन था। समाचार संस्थानों में पत्रकार वेश में काम कर रहे कट्टरपंथियों का विषय एक बार फिर सामने आया।
न्यूज नेशन चैनल के पत्रकार ने सोशल मीडिया पर हिंदू देवी-देवताओं के लिए अपशब्द कहे। जब लोगों का आक्रोश दिखा, तब जाकर चैनल ने उसे नौकरी से निकाला। भारत के लगभग सभी मीडिया संस्थानों में ऐसी जिहादी और वामपंथी मानसिकता वाले पत्रकारों की भरमार है। कुछ के चेहरे दिखाई देते हैं और अधिकांश पर्दे के पीछे रहकर विषवमन करते रहते हैं। समय आ गया है कि इसके लिए इन मीडिया समूहों के संपादकों और मालिकों को उत्तरदायी ठहराया जाए।
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