28 मार्च 2022 को केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा उच्चतम न्यायालय में अपने शपथ पत्र में स्पष्ट किया है कि राज्य अपने-अपने सामाजिक समुदायों और उनकी संख्या को ध्यान में रखते हुए उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकते हैं।
अल्पसंख्यक मंत्रालय के इस शपथपत्र से पूर्व ही असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने विधानसभा में अपने वक्तव्य के जरिए राज्य के मुस्लिम समुदाय का आह्वान किया था कि असम में मुस्लिम 3 प्रतिशत हो गए हैं। इस नाते वे भिन्न-भिन्न संस्कृतियों की जनजातियों वाले इस राज्य में बहुसंख्यक हैं और उन्हें बहुसंख्यक की तरह बर्ताव करते हुए अन्य संस्कृतियों के संरक्षण के लिए काम करना चाहिए।
असम की आबादी में काफी ज्यादा विविधता है और वहां अलग-अलग आस्थाओं और जनजातियों के लोग बसते हैं। असम में इस समय मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और दूसरे समुदायों के अलावा 36 से ज्यादा जनजातियों के लोग बसते हैं, जिनमें से हर एक की संस्कृति और रीति-रिवाज भिन्न हैं। हालांकि ये सारी जनजातियां हिन्दू समुदाय से संबंध रखती हैं परन्तु इनमें से हरेक के सांस्कृतिक रीत-रिवाज बिलकुल अलग हैं। इस तरह असम में रहने वाला सबसे बड़ा समुदाय मुसलमानों का है। इनमें से मुसलमानों की एक बड़ी संख्या बांग्लादेश से आकर बसने वाले लोगों की है। असम में मुसलमानों की यह संख्या जिस कारण भी सबसे ज्यादा हो, परन्तु यह एक तथ्य है कि यह संख्या सबसे बड़ी संख्या है।
मुसलमानों की मूल विचारधारा का एक हिस्सा यह भी है कि दुनिया के हर व्यक्ति को इस्लाम कुबूल कर लेना चाहिए। ऐसे में दूसरे समूहों को इनसे यह खतरा पैदा हो जाता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मुसलमान, दूसरे समुदायों को सहन न करें। हालांकि असलियत यह है कि आज के इस वैचारिक उदारता के युग में मुसलमानों को अपने इस इस्लामी मूल विचार से काफी समझौता करना पड़ता है और वह दूसरे समुदायों के साथ रहते भी हैं लेकिन असम में चूंकि मुसलामानों की संख्या सबसे ज्यादा है और यह भी एक सच है कि किसी जगह बसने वाले सबसे बड़े समुदाय का असर उस जगह के माहौल पर सबसे ज्यादा पड़ता है, इसलिए ऐसे में मुस्लिम समुदाय का प्रभाव असम में सबसे ज्यादा है।
असम में रहने वाला सबसे बड़ा समुदाय मुसलमानों का है। इनमें से मुसलमानों की एक बड़ी संख्या बांग्लादेश से आकर बसने वाले लोगों की है। असम में मुसलमानों की यह संख्या जिस कारण भी सबसे ज्यादा हो, परन्तु यह एक तथ्य है कि यह संख्या सबसे बड़ी संख्या है।
आज मुस्लिम समुदाय के बारे में भिन्न-भिन्न बातें कही जाती हैं। इसमें सबसे बड़ी बात यह कही जाती है कि यह समुदाय अपनी सोच के एतबार से पिछड़ा हुआ समुदाय है। इस समुदाय के बारे में एक बात यह भी कही जाती है कि मुसलमान अपने हर तरह के अधिकारों की परवाह और मांग करते रहते हैं जबकि वह अपने कर्तव्यों को न तो याद रखते हैं और न निभाते हैं।
ऐसे में मुसलमानों को नैतिकता के आधार पर न केवल यह साबित करना होगा कि वह समाज में ऐसे जिम्मेदार शहरी हैं जिनके साथ दूसरे समुदायों के लोग भी न केवल अमन-चैन के साथ रह सकते हैं बल्कि समाज में उन्नति करके फल-फूल भी सकते हैं।
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