झारखंड में महिला आयोग और बाल आयोग के अध्यक्ष पद 26 महीने से खाली हैं। इस कारण बच्चों और महिलाओं को न्याय नहीं मिल रहा है। वहीं दूसरी ओर महिला और बच्चों से जुड़े मामले बढ़ते जा रहे हैं।
एक कहावत है— ‘अगर न्याय में देरी हो तो उसे अन्याय ही कहेंगे।’ आज यही स्थिति झारखंड की महिलाओं और बच्चों की है। यहां की महिलाएं और बच्चे असुरक्षा की भावना से ग्रसित हैं। इसके कई कारण हैं। पहला तो यह कि अगर महिलाओं या बच्चों के साथ कोई घटना घट जाती है तो पहले उन्हें अपने मामले को दर्ज कराने में काफी वक़्त लग जाता है। अगर मामला दर्ज हो भी गया तो उन पर इतना दबाव डाल दिया जाता है कि आखिरकार वे टूट जाते हैं और मामला आगे बढ़ता ही नहीं है। इसका एक बड़ा कारण है झारखंड में बाल और महिला आयोग का काम नहीं करना। बता दें कि लगभग 26 महीने से इन दोनों आयोगों के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति नहीं हुई है।
राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष कल्याणी शरण कहती हैं, ”सतारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद की आपसी खींचतान की वजह से महिला आयोग के अध्यक्ष का पद पिछले 26 महीने से खाली पड़ा है। इतना ही नहीं, राज्य में महिला आयोग और बाल आयोग के साथ—साथ अन्य पद भी पिछले दो साल से रिक्त हैं।” उन्होंने यह भी बताया कि जब वे महिला आयोग की अध्यक्ष थीं तब लगभग 4,000 मामलों का निष्पादन किया गया था।
एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 26 महीने में ही राज्य महिला आयोग के पास लगभग 4,200 मामले आ चुके हैं, लेकिन उनकी खोज—खबर लेने वाला कोई नहीं है। कई मामलों में राष्ट्रीय महिला आयोग को ही संज्ञान लेना पड़ रहा है। राज्य में महिला आयोग की वजह से कई गरीब महिलाओं को निशुल्क न्याय मिल जाने की उम्मीद रहती थी, लेकिन अब उन्हें पुलिस और न्यायालय के चक्कर काटने पड़ रहे हैं, उनके पैसे भी खर्च हो रहे हैं, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा का कहना है, ”झारखंड में महिलाओं की समस्याओं को लेकर न तो राज्य सरकार गंभीर है और न ही पुलिस।” उन्होंने दिसंबर, 2021 में झारखंड पुलिस पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा था कि झारखंड के 300 मामलों में पुलिस ने अब तक जवाब नहीं दिया है।
जमशेदपुर में रहने वालीं पत्रकार अन्नी अमृता के अनुसार झारखंड पूरे देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां महिलाएं न्याय के लिए थानों के चक्कर काटती रह जाती हैं। लेकिन पुलिस इन मामलों के साथ क्या करती है, यह देखने वाला और सवाल पूछने वाला कोई नहीं है। जबकि झारखंड पुलिस के ही आंकड़ों से पता चलता है कि महिलाओं के साथ दुष्कर्म और हिंसा की घटनाओं में इज़ाफा हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि जमशेदपुर में ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जब महिलाओं से पर्स, मोबाईल, चेन की छिनतई न होती हो। कुछ दिन पहले की बात है, जमशेदपुर स्थित मानगो के सुभाष कालोनी में दूध लेकर जा रही रांची की युवती से उचक्कों ने सोने की चेन छीन ली। उससे पहले एमजीएम अस्पताल के पास पति के साथ बाइक पर सवार होकर जा रही महिला से अपराधियों ने पर्स छिन लिया था। उसी क्रम में महिला बाइक से गिर गई थी, जिसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। जमशेदपुर में ऐसी घटनाएं निरंतर बढ़ रही हैं।
ये तो रही राज्य की उन महिलाओं की बात जिनके लिए पुलिस और महिला आयोग का होना बहुत आवश्यक है। लेकिन जब भुक्तभोगी खुद राज्य की महिला पुलिस बन जाए तो क्या होगा? बीते 17 मार्च को सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक जिगा सुसारण होरो ने रांची के सुखदेव नगर थाना प्रभारी ममता कुमारी को डराया और बंधक बनाने की धमकी दे डाली। इस घटना का वीडियो भी पूरे देश में वायरल हुआ। इस दौरान कांग्रेस के विधायक बंधु तिर्की भी वहीं पर मौजूद थे। भरी सभा में एक महिला थाना प्रभारी को बंधक बना लेने को लेकर धमकी देना अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि राज्य में अन्य महिलाओं की क्या स्थिति होगी। यदि महिला आयोग काम करता तो ममता कुमारी अपनी फरियाद लेकर वहां तो जा ही सकती थीं।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा का कहना है, ”यह झारखंड का दुर्भाग्य ही है कि यहां राज्य महिला आयोग पिछले दो साल से काम नहीं कर रहा है। राज्य महिला आयोग जिला से लेकर पंचायत तक सक्रिय होता तो महिलाओं की समस्याएं, उन पर होने वाले अत्याचार सामने आते और उनका निदान भी होता। लेकिन अब जो मामले उन तक आ पाते हैं उनका तो निष्पादन हो रहा है मगर कई मामले आज भी ठंडे बस्ते में ही पड़े हुए हैं।”
यही हाल राज्य बाल आयोग का है। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा, ”यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले 2 साल से राज्य सरकार ने बाल संरक्षण आयोग के पद को खाली रखा है। राज्य सरकार से कई बार आग्रह करने के बाद भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है। यह राज्य के बच्चों के प्रति झारखंड सरकार की लापरवाही को ही उजागर कर रहा है।”
झारखंड बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष आरती कुजूर ने बताया, ”राज्य में बाल आयोग के सक्रिय नहीं रहने की वजह से बहुत सारे काम प्रभावित हो रहे हैं। उदाहरण के तौर पर जिला स्तर पर बाल कल्याण समिति और जिला बाल संरक्षण इकाई होती है। जिला स्तर की हर एक इकाई कहीं न कहीं से अधिकारियों और अन्य नेताओं से प्रभावित हो जाती है। इन सभी के काम पर निगरानी रखने का काम बाल संरक्षण आयोग करता है। लेकिन बाल संरक्षण आयोग के नहीं रहने के बाद जिला स्तर पर कई काम नहीं हो पा रहे हैं। यही वजह है कि कई मामलों में अब राष्ट्रीय बाल आयोग को ही आगे आना पड़ रहा है।” उन्होंने यह भी बताया कि जब वे बाल आयोग के अध्यक्ष थीं उस वक्त रोज औसतन 4 से 5 मामले आ जाते थे और उन मामलों को बाल संरक्षण आयोग गंभीरता से लेता था। राज्य में अप्रैल, 2019 से लेकर अब तक बाल आयोग के अध्यक्ष का चयन नहीं हो पाया है।
अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि झारखंड में बच्चों और महिलाओं से जुड़े मामलों का क्या होता होगा।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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