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मरुस्थल की गर्मी में अब सेब की खेती

by WEB DESK
Mar 29, 2022, 12:54 am IST
in भारत, राजस्थान
राजस्थान में सेब की खेती

राजस्थान में सेब की खेती

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ठंडे इलाकों में होने वाला सेब अब मरुस्थल में भी होने लगा है। हिमाचल प्रदेश में विकसित सेब की नई किस्म हरमन-99 की खेती के प्रयोग राजस्थान में चल रहे हैं। सीकर की संतोष खेदड़ इस प्रयोग को अपना कर लाखों का मुनाफा कमा रही 

 पवन सारस्वत मुकलावा 

सेब की खेती अब सिर्फ़ कश्मीर, हिमाचल जैसे ठंडे इलाकों तक सीमित न रहकर राजस्थान के गर्म क्षेत्र में भी होगी। हालांकि राजस्थान का मौसम सेब की खेती के अनुकूल नहीं है। धूलभरी आंधियां, गर्मी में 45 डिग्री के पार पारा और सर्दियों में हाड़ कंपा देने वाली सर्दी, इन चुनौतियों के बाद भी राजस्थान में सेब उगाने का प्रयास किसी चमत्कार से कम नहीं है। कृषि नवाचार एवं अनुसंधान के प्रयास यदि ठीक चलते रहे तो जल्द ही सभी को राजस्थान के मरुस्थल क्षेत्र का सेब खाने को मिल सकते हैं।

देश में किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। किसानों की आमदनी जल्द बढ़े, इस पर केंद्र व राज्य सरकार के विभाग व कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। इसमें पश्चिमी राजस्थान की शुष्क जलवायु, रेतीले व पथरीले क्षेत्र में कई ऐसे प्रयोग किए गए हैं जो सार्थक रहे। अंजीर, ताइवान का पपीता और ड्रैगन फ्रूट सहित कई तरह की फसलें किसानों की आमदनी बढ़ाने में सार्थक सिद्ध हो रही हैं। इस कड़ी में सेब का नाम और जुड़ जाएगा और अब लू के थपेड़ों में भी सेब पनप सकेंगे। 

हिमाचल प्रदेश में तैयार हुई सेब की यह खास किस्म हरमन-99 (ऌफटठ-99) विशेष तौर पर ऊंचे तापमान वाले क्षेत्रों के लिए है। हरमन-99 राजस्थान में भी उगाया जा रहा है और खेती सफल हो रही है। हरमन-99 किस्म के सेब को पथरीली, दोमट या लाल, किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। इस फसल के लिए सबसे जरूरी बात जलवायु है जिसे देखते हुए हरमन-99 को तैयार किया गया है। हरमन-99 सेब का पौधा 40 से 48 डिग्री तापमान पर भी आसानी से पनप सकता है। इसमें स्वपरागण के जरिए प्रजनन होता है। इसे कोई भी अपने बगीचे में लगा सकता है।

कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर के खास नवाचार और प्रगतिशील किसानों के प्रयासों से पश्चिमी राजस्थान में ‘समर एपल’ नाम से मशहूर सेब की किस्म हरमन-99 राजस्थान के 10 जिलों में पैदा हो रही है। इस किस्म के 6000 पौधे पश्चिमी राजस्थान में नवाचार के रूप में लगभग 10 हेक्टेअर क्षेत्र में 4 गुणा3 मीटर की दूरी पर लगाए गए हैं। इसकी खेती कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर के अधीन क्षेत्र जोधपुर,नागौर,बाड़मेर,पाली, जालौर और सिरोही और कृषि विज्ञान केंद्र एवं अनुसंधान केंद्रों के साथ झुंझुनूं एवं बेरी सीकर एवं चितौड़गढ़ जिलों के प्रगतिशील किसानों द्वारा हो रही है।   

सेब की खेती में नवाचार से लाखों का मुनाफा

सीकर जिले के बेरी गांव की श्रीमती संतोष खेदड़ प्रगतिशील किसान वैज्ञानिक की उपाधि से नवाजी गई हैं और उपराष्ट्रपति द्वारा सम्मानित हो चुकी हैं। संतोष बताती हैं कि उनके पास केवल 1.25 एकड़ भूमि है। वे सिर्फ पांचवीं कक्षा तक पढ़ी हैं। लेकिन बचपन में उन्होंने घर में खेती के गुर सीखे थे। उनके पति रामकरण जाट की एक छोटी नौकरी थी और उनकी मासिक आमदनी बहुत कम थी। इससे परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था।

संतोष बताती हैं कि वर्ष 2008 में किसी ने अनार की खेती का विकल्प सुझाया। पैसे नहीं थे तो एक भैंस बेच दी। इससे अनार के 220 पौधे खरीदे और ड्रिप के जरिये सिंचाई शुरू की। शुरू में एक-दो पौधे मुरझाए तो लगा पैसा बर्बाद न हो जाए। परंतु धीरे-धीरे पौधे बड़े होते गए, करीब तीन साल के बाद सभी पेड़ों ने फल देना शुरू कर दिया तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पहली फसल में अच्छा खासा मुनाफा हुआ। 

संतोष बताती है कि उनके पति  ने 2011 में नौकरी छोड़ दी और पति-पत्नी पूरी तरह खेती में जुट गए। अब वे और भी फलों को उगाकर देखना चाहते थे। पर समस्या यह थी, कि नए पौधों को उगाए कहां? वे कहती हैं कि वे अभी और जमीन नहीं खरीदना चाहती थीं, न ही बाहर के मजदूरों की मदद लेना चाहती थीं। पति-पत्नी चाहते थे कि वे जो भी करें,इसी 1.25 एकड़ के खेत में ही करें। 

2015 में संतोष ने सेब की खेती शुरू की। वे बताती हैं कि नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन अहमदाबाद की तरफ से उन्हें अनुसंधान के लिए सेब की नई किस्म  हरमन-99 के पांच पौधे कलम के रूप में दिए गए। इसमें एक पौधा लगा, बाकी मुरझा गए। इस एक पौधेमें एक साल बाद ही फल आने शुरू हो गए ओर पौधा सात फुट का हो गया। एक पौधे में 20 से 30 किलोग्राम फल आए जो हरे रंग के थे। एक फल का वजन सौ से डेढ़ सौ ग्राम तक था। फिर धीरे-धीरे पौधे की लंबाई बढ़ती गई तो तीसरे साल में इसमें 40 से 50 किलोग्राम फल का उत्पादन हुआ और गुलाबी ओर लाल रंग के फल आने लगे। फल का वजन भी दो सौ ग्राम तक बढ़ गया। पहले तो हमें लगा ही नहीं था कि सेब का यह पौधा फल भी देगा।बस आते-जाते, जो भी बची हुई खाद होती, वो मैं उसमें डालती जाती थी। 

सीकर जिले में तापमान 48-49 डिग्री तक जाता है। यहां सेब का यह पौधा आसानी से फसल दे रहा है।संतोष बताती हैं कि अक्सर माना जाता है कि सेब जैसे फल हिमाचल या कश्मीर जैसे ठंडे इलाकों में ही उगते हैं। पर हमारे शेखावाटी कृषि फार्म में आज सौ से ज्यादा पौधे अच्छे फल दे रहे हैं। हमारे सारे फल जैविक हैं जो हमारे खेत ही में बिक जाते हैं। अब हमने इस सेब की नई किस्म की नर्सरी भी लगा ली है जिसमें पंद्रह हजार से ज्यादा पौध तैयार हो रही है। आज मुझे मेरे खेत से लाखों रुपयेका मुनाफा प्राप्त हो रहा है। इसके फल को पक्षियों से बचाने के लिए बर्ड नेट का उपयोग किया जाता है और किसान भाई इस इस सेब की किस्म लगाकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। किसी किसान भाई यह पौधा चाहिए तो हमारे खेत पर उपलब्ध है।

 

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