झारखंड के कुछ इलाकों के किसान पारंपरिक खेती छोड़कर वैकल्पिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं। इसका कारण यह है कि पारंपरिक खेती में मुनाफा अधिक नहीं होता, जबकि नई तकनीक और नए तौर-तरीकों से नई फसल के जरिये अच्छी कमाई कर रहे हैं। खासतौर से छोटी जोत के किसानों के बीच स्ट्रॉबेरी की खेती का चलन तेजी से बढ़ रहा है और वे अच्छा खासा मुनाफा भी कमा रहे हैं। हालांकि शुरुआत में सूबे के किसान स्ट्रॉबेरी की खेती करने से हिचक रहे थे, जबकि उन्हें पौधे भी मुफ्त दिए जा रहे थे। लेकिन तब उनमें स्ट्रॉबेरी की खेती को लेकर न तो जागरुकता थी और न ही तकनीक और तौर-तरीके जानते थे। लिहाजा, किसानों का डर स्वाभाविक था। इसलिए उन्होंने इसमें रुचि नहीं दिखाई, लेकिन जब उन्होंने देखा कि इसकी खेती फायदेमंद है तो धीरे-धीरे स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़ रहे हैं।
खास बात यह है कि राज्य में स्ट्रॉबेरी की खेती करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक है। उन्हीं में से एक हैं-उपासी देवी, जो रामगढ़ जिले के गांव भयपुर में रहती हैं। उनके पास जमीन के नाम पर 5 डिसमिल का एक छोटा टुकड़ा है।
पहले उपासी देवी इसमें आलू की खेती करती थीं। इसके लिए वह सालाना 500 से 800 रुपये खर्च करती थीं, तब जाकर दो से ढाई हजार रुपये की कमाई होती थी। लेकिन इससे उनकी जरूरतें पूरी नहीं होती थी। आर्थिक समस्या बनी रहती थी। इसलिए आलू की खेती छोड़ दी। बीते दो वर्ष से वह स्ट्रॉबेरी की खेती कर रही हैं। इसमें 8,000 से 10,000 रुपये की लागत आती है और 45,000 से 60,000 रुपये तक कमाई हो जाती है। जब कमाई बढ़ी तो उनका हौसला भी बढ़ा। अब वे अगले साल से पट्टे पर जमीन लेकर उसमें स्ट्रॉबेरी की खेती करने की सोच रही हैं, ताकि वे अधिक से अधिक मुनाफा कमा सकें। उन्हीं के गांव में दो और व्यक्ति हैं, जो स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं। उनके पास उपासी देवी से कुछ अधिक जमीन है। इनमें एक कोलेश्वर महतो हैं, जिनके पास 30 डिसमिल जमीन है, जबकि अर्जुन महतो 20 डिसमिल जमीन में स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं। मतलब यह कि जिनके पास कम जमीन है, उनके पास भी विकल्प हैं जिससे कमाई कर सकते हैं।
उपासी देवी के गांव में ही दिनेश मुंडा रहते हैं, जो एचडीएफसी बैंक के कृषि ग्राम विकास केंद्र के अंतर्गत काम करते हैं। दिनेश ने बताया कि दुलमी प्रखंड क्षेत्र के लगभग 14 गांवों में स्ट्रॉबेरी की खेती की जा रही है। हर गांव में तीन से चार लोग इससे जुड़े हुए हैं। झारखंड के पलामू क्षेत्र के रहने वाले विवेक मिश्रा ने बताया कि पहली बार वे खेती में किस्मत आजमा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने 10 एकड़ जमीन पट्टे पर ली है। ढाई एकड़ में स्ट्रॉबेरी, 6 एकड़ में थाई पिंक अमरूद और कुछ हिस्से में ड्रैगन फ्रूट लगाया है। बाजार में इन फसलों की अच्छी कीमत मिल जाती है। उन्होंने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में लगभग 6 लाख रुपये की लागत आई और तीन महीने के भीतर उन्होंने काफी मुनाफा भी कमा लिया है। साथ ही, थाई पिंक अमरूद के बारे में बताया कि इसकी खेती बहुत आसान और फायदेमंद है। एक साल के अंदर इसमें फल लगने लगते हैं। इस अमरूद की बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है, इसलिए लागत मूल्य भी जल्दी निकल आता है। एक पेड़ में अमूमन 20 साल तक फल आते हैं। लिहाजा, इससे कमाई होती रहती है। इसलिए किसानों के लिए थाई पिंक अमरूद की खेती भी काफी फायदेमंद है। आसपास के क्षेत्रों की अगर बात करें तो झारखंड के पलामू गढ़वा आदि क्षेत्रों में अब स्ट्रॉबेरी की खेती कई जगहों पर की जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि झारखंड के लिए स्ट्रॉबेरी की सबसे अच्छी प्रजाति महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में पाई जाती है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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