हरियाणा में नीलोखेड़ी के एक छोटे से गांव बुटाना में एक किसान परिवार में सुल्तान सिंह का जन्म हुआ था। उनका परिवार परंपरागत खेती करता था, लेकिन सुल्तान सिंह कुछ अलग करना चाहते थे। यह समस्या थी कि उनके पास न तो अधिक पैसा और न पूरा साधन ही था। फिर क्या किया जाए? इसी सोच में उन्होंने छोटा-सा प्रयोग किया, जिसमें वे सफल रहे। आज मछली पालन के क्षेत्र में उनकी कीर्ति देश-दुनिया तक फैली है। उन्हें पद्मश्री सहित कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। सुल्तान सिंह कहते हैं कि सफलता के लिए मेहतन, लगन व प्रयोगधर्मी होना जरूरी है। साथ ही, बाजार की भी जानकारी होनी चाहिए।
शुरुआती सफलता
1963 में जन्मे सुल्तान सिंह ने बीए की पढ़ाई के दौरान मछली पालन शुरू किया। इसके लिए उन्होंने 1983 में 2,500 रुपये में गांव का जोहड़ पांच साल के लिए पट्टे पर लिया। इसके बाद एनडीआरआई करनाल और कोलकाता से मछलियों की 6 प्रजातियों के बीज मंगाए और उन्हें तालाब में डाला। इनमें कतला, रोहु, मृगल, कॉमन कार्प, ग्रास कार्प व सिल्वर कार्प मछलियां शामिल थीं। 14 माह तक देखभाल की। पूरी प्रक्रिया पर उन्होंने 25,000 रुपये खर्च किए और उन्हें 1.62 हजार रुपये की आमदनी हुई। यही आमदनी उनकी सफलता की हस्ताक्षर बन गई। जोहड़ से मछली पालन का उनका सफर अब री-एक्वा सर्कुलेशन सिस्टम (आरएएस) तक पहुंच गया है।
नई तकनीक ने दिलाई पहचान
दरअसल सुल्तान सिंह ने ही मछली पालन की इस नई तकनीक को ईजाद किया है। इस आरएएस तकनीक से कम भूमि में अधिक मछलियों का उत्पादन किया जा सकता है। उन्होंने 1200 गज में इस प्रणाली को अपनाया है, जहां रिकॉर्ड 50 से 60 टन मछलियों का उत्पादन हो जाता है। इस प्रणाली की खासियत यह है कि इसमें कम पानी और कम जगह में अधिक मछली उत्पादन होता है। तालाब में एक बार पानी भर दिया जाए तो वह 10 बार काम आता है। पहले एक घन मीटर पानी में 3 किलो मछली का उत्पादन होता था, लेकिन नई तकनीक से प्रति घन मीटर 33 किलो मछली उत्पादन होता है। सुल्तान सिंह कहते हैं कि इससे भी अच्छी तकनीक पर काम किया जा रहा है। इसमें प्रति घन मीटर पानी में 73 किलो मछली उत्पादन होगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस तकनीक से तैयार मछलियों का बाजार भाव भी अच्छा मिलता है। साथ ही, इस विधि से 90 प्रतिशत पानी को रिसाइकल किया जाता है। खासतौर से छोटे किसानों के लिए यह तकनीक किसी वरदान से कम नहीं है। इस पद्धति में जमीन के ऊपर पानी जमा करने के लिए टैंक बनाया जाता है। फिर इसमें बीज डाले जाते हैं। इसमें लगातार आॅक्सीजन और चारा डाला जाता है और पानी को लगातार सकुर्लेट किया जाता है। इससे मछलियां तेजी से बढ़ती हैं। इस तकनीक में पानी की तो बचत होती ही है, तालाब बनाने की जरूरत भी नहीं पड़ती।
जारी है प्रयोग
सुल्तान सिंह लगातार प्रयोग करते रहते हैं। शुरुआती सफलता के बाद उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से मछली के बीज तैयार करने का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद उन्होंने उत्तर भारत की पहली मछली बीज हैचरी तैयार की और बीज बेचने लगे। इसके अलावा, उन्होंने राजस्थान एवं महाराष्ट्र में भी डैम पट्टे पर लिया और काम शुरू किया। सुल्तान सिंह ने मछली फार्म पर मछलियों की नई किस्में तैयार करने के साथ-साथ आधुनिक मशीनें भी लगाई हैं। इसमें मुख्य रूप से मछली प्रसंस्करण इकाई भी है, जहां कांटा रहित मछली उत्पाद तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा उन्होंने गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशाला भी स्थापित की है। उन्होंने बताया कि देश-विदेश से लोग उनसे मछली पालन की जानकारी मांगते हैं। वे कहते हैं कि लगातार प्रयोग करते रहना चाहिए। इसी की बदौलत वे तालाब से इस आधुनिक तकनीक पर पहुंचे हैं। आजकल वे झींगा मछली पर प्रयोग कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने हैचरी लगाई है। उनका कहना है कि प्रयोग करते रहने पर व्यक्ति आने वाले चुनौतियों से आसानी से निपट सकता है। प्रयोगधर्मी होने के कारण आप तकनीक के बारे में अपडेट रहते हैं। लेकिन जो लोग सामान्य तरीके से खेती करते हैं, इसीलिए अधिक कामयाब नहीं हो पाते हैं। इसके विपरीत जो लोग कृषि में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीक का प्रयोग करते हैं, वे निश्चित ही सफल रहते हैं। उन्होंने कहा कि वह भी इसी कारण सफल हुए हैं।
20 हजार लोगों को दे चुके प्रशिक्षण
सुल्तान सिंह करीब 35 वर्षों से मछली उत्पादन के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इस दौरान उन्होंने देश के हर कोने में मौजूद कॉलेजों के छात्रों के अलावा कृषि वैज्ञानिक तक उनसे मछली पालन की तकनीक हासिल कर चुके हैं। उन्होंने अब तक करीब 20 हजार लोगों को नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया है। सुल्तान सिंह बाबू जगजीवन राम पुरस्कार, क्वालिटी समिट अवार्ड, बेस्ट इनकम्बेंसी अवार्ड, प्रगतिशील किसान पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ मत्स्य किसान पुरस्कार, बेस्ट इनोवेटिव किसान अवार्ड, कर्म भूमि सम्मान फार्मर अवार्ड, आइडियल पर्सनेल्टी अवार्ड के अलावा दर्जनों बार राज्य सरकार एवं विदेशों में सम्मानित हो चुके हैं।
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