आपसी गुटबाजी और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के चलते पंजाब में हाशिये पर पहुंची कांग्रेस की हरियाणा इकाई भी इसी राह पर चल रही है। स्थिति यह है कि केंद्रीय नेतृत्व के सामने ही पार्टी के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगते हैं। उधर, पंजाब के बाद हरियाणा में भी आम आदमी पार्टी तेजी से अपनी जड़ें मजबूत करने में जुटी हुई है। इससे भी कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व परेशान है।
हरियाणा में किस तरह से आआपा का मुकाबला किया जाए, इस पर मंथन के लिए शुक्रवार को हरियाणा के नेताओं की एक बैठक कांग्रेस ने दिल्ली में बुलाई। बैठक में कांग्रेस विधायक दल के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेशाध्यक्ष कुमारी शैलजा के बीच चल रहे विवाद पर भी चर्चा हुई। विवाद निपटाने के लिए बुलाई गई इस बैठक का अंत नए विवाद से हुआ। बैठक में ही राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा और विधायक कुलदीप बिश्नोई एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगे। विवाद उस वक्त बढ़ गया, जब कुलदीप बिश्नोई ने कहा कि उनके पिता स्व. भजनलाल जब प्रदेशाध्यक्ष थे तो 2005 में कांग्रेस ने 67 सीट जीती थीं। इसके बाद से कांग्रेस की लगातार सीट कम होती जा रही है। उन्होंने कहा कि पार्टी में गैर-जाट नेताओं को आगे बढ़ाया जाए।
दीपेंद्र हुड्डा ने कुलदीप बिश्नोई की सलाह का कड़ा विरोध किया। दीपेंद्र हुड्डा ने यहां तक बोल दिया कि आपने तो अलग पार्टी बनाई थी, उसका क्या हुआ? भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रभाव से 2019 में कांग्रेस की 31 सीटें मिलीं। बताया जा रहा है कि विवाद इतना बढ़ा कि रणदीप सिंह सुरजेवाला ने बीच बचाव किया। बताया जा रहा है कि बैठक में कुमारी शैलजा ने पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर खूब आरोप लगाए। उन्होंने यहां तक बोल दिया कि वह विपक्षी की भूमिका भी सही से नहीं निभा रहे हैं। हालांकि हुड्डा ने बैठक में ही इन आरोपों को सिरे से नकार दिया।
पार्टी सूत्रों की मानें तो भूपेंद्र हुड्डा प्रदेशाध्यक्ष पद से कुमारी शैलजा को हटा कर अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को इस पद पर बैठाना चाह रहे हैं। इसी क्रम में कई दिनों से वे दिल्ली में डटे हुए हैं। यही वजह है कि कुमारी शैलजा के प्रदेशाध्यक्ष पद पर रहते हुए भी न तो संगठन मजबूत होने दिया जा रहा है, न ही टीम बनाने दी जा रही है। हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार जगदीश शर्मा ने बताया कि हुड्डा की कोशिश है कि कांग्रेस में उसका वर्चस्व रहे। इसलिए पहले रणदीप सुरजेवाला को प्रदेश की राजनीति में किनारे पर लगाया। अब वह शैलजा को किनारे लगाने की सोच रहे हैं। हरियाणा में स्थिति यह है कि कांग्रेस जाति विशेष की पार्टी बनती जा रही है।
जगदीश शर्मा बताते हैं कि पंजाब की तरह हरियाणा में भी कांग्रेस कई गुटों में बंटी हुई है। हर गुट अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। लेकिन इस सब में जाट लॉबी खासतौर पर हुड्डा लॉबी सबसे ज्यादा प्रभावी है। इसलिए डॉ. अशोक तंवर को पार्टी छोड़ने पर मजबूर किया गया। अब इसी तरह की कोशिश कुमारी शैलजा के प्रति हो रही है। हालांकि ऐसा नहीं है कि हुड्डा का पूरे प्रदेश में जनाधार है। उनका प्रभाव रोहतक, सोनीपत को छोड़ कर कहीं और ज्यादा नजर नहीं आता। हुड्डा को लगता है कि पार्टी में यदि कोई दूसरा नेता मजबूत होता है, तो इसका सीधा असर उन पर पड़ता है। इसलिए उनकी कोशिश है कि पार्टी के भीतर कोई दूसरा नेता उनके ऊपर न निकल जाए। यह भी एक कारण है कि वह न सिर्फ रणदीप सुरजेवाला बल्कि शैलजा, कुलदीप बिश्नोई सभी को दरकिनार करने की मुहिम में जुटे हैं।
समस्या यह है कि आलाकमान की लाख कोशिश के बाद भी पार्टी के नेता एकजुट नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि उन सभी का अपना-अपना राजनीतिक स्वार्थ है। वह पार्टी के लिए कम और अपने हित के लिए ज्यादा सोचते हैं। हितों के टकराव की वजह से ही वे एक-दूसरे के साथ नहीं चल पा रहे हैं, जिसका असर पार्टी पर भी स्पष्ट तौर पर दिख रहा है। प्रदेश में कांग्रेस लगातार अपना जनाधार खो रही है। कुछ जिलों को यदि छोड़ दिया जाए तो बाकी हरियाणा में कांग्रेस बेहद कमजोर है। जानकारों का मानना है कि बैठक तो इस पर मंथन के लिए बुलाई गई थी कि प्रदेश में कांग्रेस को कैसे मजबूत किया जाए, लेकिन जिस तरह से राहुल गांधी के सामने ही कांग्रेस के नेता आपस में भिड़ गए, इससे नहीं लगता कि पार्टी प्रदेश में ज्यादा कुछ करने की स्थिति में हैं। इससे तो यही लग रहा है कि पंजाब की तर्ज पर हरियाणा में भी कांग्रेस अब पूरी तरह से खत्म होने के कगार पर पहुंच रही है।
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