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उत्तराखंड यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल, उच्चतम न्यायालय ने भी दिए है निर्देश, गोवा पेश कर चुका है उदाहरण

by WEB DESK
Mar 25, 2022, 10:13 am IST
in भारत, उत्तराखंड
प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

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कैबिनेट बैठक के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को लेकर ये चर्चा शुरू हो गयी है कि क्या उत्तराखंड सरकार इस कानून को लागू करने में सक्षम है?

 
दिनेश मानसेरा

उत्तराखंड सरकार की पहली मंत्रिमंडल बैठक में राज्य में समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए विशेषज्ञ समिति बनाये जाने की घोषणा कर दी गयी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव से पहले ये वादा किया था कि हम गोवा की तरह यहां भी यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल लाएंगे। कैबिनेट बैठक के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को लेकर ये चर्चा शुरू हो गयी है कि क्या उत्तराखंड सरकार इस कानून को लागू करने में सक्षम है?

वर्तमान में कानून क्या कहता है?
मौजूदा परिवेश में भारत में संपत्ति, विवाह और तलाक के नियम हिंदुओं, मुस्लिमों, ईसाइयों के लिए अलग-अलग हैं। देश में अभी मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय के अपने अपने पांथिक कानून हैं। जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं। संविधान निर्माण के बाद से ही समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग उठती रही है और इसका विरोध भी हुआ है। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 के बीच धार्मिक स्वतंत्रता की बात की गई है। इस बात को आगे रख कर मुस्लिम मौलवी समाज, समान नागरिक संहिता का जबरदस्त विरोध करता रहा है। वहीं दूसरी तरफ अनुच्छेद 14 अनुच्छेद, 15 और अनुच्छेद 21 भी हैं, जो गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार के साथ समानता की बात करते हैं।

गोवा राज्य का उदाहरण
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता को लागू करने के पीछे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गोवा राज्य का उदाहरण दिया है। धामी कहते हैं कि राज्य के सभी नागरिकों को एक ही कानून से न्याय मिले, ऐसा यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाया गया है। गोवा में विवाह, तलाक, संपत्ति अधिकार, उत्तराधिकार, विरासत, गोद लेने और रखरखाव संरक्षता सम्बंधित कानून सभी लोगों पर एक समान लागू होता है। उत्तराखंड राज्य भी इसी तरह का कानून लागू करने की तरफ अपने कदम बढ़ा रहा है।

क्यों जरूरत है समान नागरिक संहिता की?
उत्तराखंड को भी गोवा जैसे समान नागरिक संहिता की क्यों जरूरत है? इस बारे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहते हैं कि राज्य में सभी पंथों के लोग रहते हैं, हमारी सनातन और साझा संस्कृति है। यहां रहने वालों के लिए एक समान कानून की जरूरत है। यहां फतवों से समाज नहीं चलेगा और न ही मिशनरियों के दिशा-निर्देश से कोई पंथ चलेगा। समाज देश के एक ही कानून से चलेगा। सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार होने चाहिए। गोवा ने ऐसा किया है और हम भी करेंगे और एक दिन पूरा देश एक समान नागरिक कानून की वकालत करेगा।

उच्चतम न्यायालय के निर्देश:
देश में सभी वर्गों के लिए एक समान नागरिक कानून होने चाहिए, इस बात को उच्चतम न्यायालय ने समय-समय पर सरकार को निर्देशित किया है। अहमद खान बनाम शाह बानो केस में भी सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि समान नागरिक कानून बनने से देश को एकता सूत्र में पिरोने में मजबूती मिलेगी। इससे कोई भी धर्म या समुदाय निजी तौर पर कोई कानून नहीं बना सकेगा।

बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का दृष्टिकोण
एक देश एक कानून को लेकर संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर ने कहा था कि देश में मानवीय संबंधों के अनेक उदारहण हैं, जोकि समान नागरिकता संहिता को दर्शाते हैं। सारे देश में ये एक समान हैं, लेकिन विवाह, उत्तराधिकारी, तलाक जैसे मामले में समान नागरिक संहिता अभी नहीं है, जिसे देश में लागू किया जाना चाहिए।

कैसे लागू हो सकती है समान नागरिक संहिता:

संविधान की नीति निर्देशक सिद्धांतों के भाग-चार के अनुच्छेद-44 के अंतर्गत सरकार को समान नागरिक संहिता को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। संविधान के निर्माताओं ने सरकार को ये निर्देशित भी किया है कि वो देश मे एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करें। गोवा इस तरह का कानून ला चुका है। उत्तराखंड इसे बनाने जा रहा है। यूपी में भी इस तरह की चर्चा शुरू हो गयी है। अन्य बीजेपी शासित राज्य भी इस बारे में गहनता से विचार कर रहे हैं।

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