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होम भारत

कानपुर की क्रांतिकारी होली

by पूनम नेगी
Mar 22, 2022, 09:56 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

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कहा जाता है कि होली गंगा मेला की नींव साल 1942 में तब पड़ी थी जब कानपुर में आजादी के दीवाने क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुक्मरानों के आदेश को धता बताते हुए होली के दिन हटिया बाजार के रज्जन बाबू पार्क में तिरंगा लहराया ।

 

 पूनम नेगी

ब्रज मंडल और काशी के होली उत्सव की ही तरह देश की सुप्रसिद्ध औद्योगिक नगरी कानपुर का होली गंगा मेला भी अपनी अनूठी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक पहचान की वजह से जाना जाता है। होली पर्व के एक सप्ताह बाद अनुराधा नक्षत्र में मनाये जाने वाले इस लोक उत्सव में समूचा शहर पूरे जोश के साथ शिरकत करता है। कानपुर के स्थानीय लोग धुलेंडी ( रंगपर्व) के दिन भले ही रंग खेलें न खेलें; लेकिन अनुराधा नक्षत्र के दिन रंग जरूर खेलते हैं। इस दिन नगर में स्थानीय अवकाश रहता है तथा शासन-प्रशासन की निगरानी में नगर के व्यापारी वर्ग व प्रबुद्धजनों के सहयोग से तमाम सामाजिक संगठन एवं आम शहरी इस समारोह में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाते हैं। इस वर्ष कानपुर का यह अनोखा रंगपर्व 23 मार्च को अनुराधा नक्षत्र में मनाया जायेगा। 

जानना दिलचस्प हो कि इस होली गंगा मेले के शुभारम्भ के पीछे जंगे आजादी का एक अत्यन्त प्रेरक वाकया जुड़ा है। यह वह दौर था जब भारत गुलामी की जंजीरों से आजाद होने के लिए संघर्ष कर रहा था और कानपुर क्रांतिकारियों की सक्रिय कर्मस्थली हुआ करता था। चन्द्रशेखर आजाद व उनके क्रान्तिकारी साथी यहां अपना अज्ञातवास काटने आते थे। झण्डा गीत "झण्डा ऊंचा रहे हमारा" के रचयिता श्याम लाल गुप्ता पार्षद और अपनी लेखनी के जरिये देशवासियों में राष्ट्रवाद तथा देशप्रेम की अलख जगाने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ ही इन क्रान्तिकारियों की भरपूर मदद करने वाले और उन्हें पनाह देने वाले तमाम व्यापारी और उद्योगपति भी शामिल थे। हालांकि अंग्रेजों की नजर उन क्रांतिकारियों तथा उनके संरक्षणदाताओं व शुभचिंतकों पर हमेशा लगी रहती थीं। जहां कहीं आठ-दस व्यापारियों व सम्भ्रांत नागरिकों की बैठक जुड़ी दिखती, ब्रिटिश पुलिस तुरंत वहां आ धमकती और जरा-जरा सी बातों पर हिन्दुस्तानियों को प्रताड़ित करने लगती। 

कहा जाता है कि होली गंगा मेला की नींव साल 1942 में तब पड़ी थी जब कानपुर में आजादी के दीवाने क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुक्मरानों के आदेश को धता बताते हुए होली के दिन हटिया बाजार के रज्जन बाबू पार्क में तिरंगा भी लहरा दिया। रात को होली जलाने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी। इस बाबत हटिया बाजार पार्क में आयोजित हुई होलिका दहन कमेटी की बैठक में गुलाब चंद सेठ, बुद्धूलाल महरोत्रा, हामिद खां, जागेश्वर त्रिवेदी, विश्वनाथ टंडन, गिरिधर शर्मा, बालकृष्ण शर्मा नवीन, रघुवर दयाल, श्यामलाल गुप्ता (पार्षद) और पं. मुंशीराम शर्मा आदि शहर के गणमान्य साहित्यकारों, व्यापारियों व प्रबुद्ध नागरिकों के साथ कई क्रांतिकारी भी छद्मवेष में शामिल थे। अंग्रेजी हुकूमत को जैसे ही इस सूचना मिली, वह तुरंत हरकत में आ गयी और अनहोनी की आशंका से घबरायी पुलिस ने उस होलिका दहन कमेटी की बैठक में शामिल लोगों पर हुकूमत के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर सरसैया घाट के पास वाली जेल में डाल दिया। 

कानपुर के हटिया बाज़ार क्षेत्र के 87 साल के वयोवृद्ध निवासी उमाशंकर त्रिवेदी बताते हैं कि उस वाकये की कई स्मृतियां आज भी उनके भीतर बसी हुई हैं। वे कहते हैं होलिकादहन कमेटी के लोगों और क्रांतिकारियों को जेल में बंद कर देने की वह खबर देखते ही देखते पूरे नगर में जंगल की आग की तरह फैल गयी थी और पूरे कानपुर के लोगों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उन देशभक्तों और क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करना अंग्रेजी हुक्मरानों के गले की हड्डी बन गयी। उन्हें छुड़ाने के लिए नगरवासियों ने अपनी जान की बाजी लगाकर जो महासंघर्ष किया। उससे अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिल गयी। इन क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी के विरोध में पूरे शहर की जनता ने अपने चेहरे से रंग उतारे बिना अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। समूचा कानपुर शहर ही नहीं, आसपास के ग्रामीण इलाकों के बाजार भी बंद हो गये। मजदूरों ने फैक्ट्री में काम करने से मना कर दिया। कानपुर शहर में मीलें बंद हो गयीं। ट्रांसपोर्टरों ने चक्का जाम कर सड़कों पर ट्रकों को खड़ा कर दिया। सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गये। हटिया बाजार मोहल्ले के सौ से ज्यादा घरों में चूल्हा जलना बंद हो गया। मोहल्ले की महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे भी धरने पर बैठ गये।  

नगर की सारी व्यापारिक गतिविधियां ठप हो जाने से नगर के अंग्रेज हुक्मरान परेशान हो गये। कहा जाता है कि इस आंदोलन की आंच तीसरे दिन में ही दिल्ली तक पहुंच गयी। वहां गांधी जी से इस आंदोलन को समर्थन मिलने से यह बात सात समंदर तक जा पहुंची और आंदोलन के पांचवे दिन दिल्ली से अंग्रेज का एक बड़ा अधिकारी कानपुर पहुंचा और उसने शहर के कुछ प्रतिष्ठित लोगों को इस मसले पर बात करने के लिए बुलाया। मगर आंदोलनकारियों ने उनसे हटिया बाजार पार्क में आकर बात करने को कहा। पहले तो उस अंग्रेज अधिकारी ने ऐसा करने में आनाकानी की, मगर आखिरकार हालातों के आगे उन्हें झुकना पड़ा और उन्होंने हटिया बाजार पार्क में आकर प्रदर्शकारियों से करीब चार घंटे बातचीत की। इस वार्ता के बाद जब गिरफ्तार किये गये लोगों को होली के सात दिन बाद जेल से रिहा किया गया तो उनके स्वागत में पूरा शहर जेल के बाहर इकठ्ठा हो गया। 

जेल से रिहा होने के बाद लोगों का यह हुजूम पूरा शहर घूमते हुए हटिया बाज़ार पार्क में आकर खत्म हुआ। फिर जेल से रिहा होने वाले लोगों के साथ बाकी नगरवासी सरसैया घाट गये और जो होली; होलिका दहन के बाद नहीं खेली जा सकी थी, वह उस दिन सरसैया घाट के तट पर अनुराधा नक्षत्र में गुलाल लगाकर खेली गयी। कानपुर में होली की यह परंपरा आजादी के पूर्व से आज तक बदस्तूर कायम है। नगरवासी बताते हैं कि शुरुआत में इस होली मेले की अगुवाई सेठ गुलाबचंद किया करते थे। उसके बाद आयोजन की कमान उनके पुत्र सेठ मूलचंद ने संभाल ली थी। आज भी सरसैया घाट पर आजादी के मतवालों की याद को जिंदा रखते हुए शहरवासी गंगा मेला मिलन समारोह का वृहद आयोजन करते हैं।  

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