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होम भारत

‘फिल्म नहीं, कूटनीतिक औजार’

by WEB DESK
Mar 22, 2022, 10:12 pm IST
in भारत, जम्‍मू एवं कश्‍मीर
स्तुति सरदाना

स्तुति सरदाना

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द कश्मीर फाइल्स के निर्देशक, निर्माता और लेखक विवेक अग्निहोत्री से  स्तुति सरदाना ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं वार्ता के प्रमुख अंश-

 

आपकी फिल्म द कश्मीर फाइल्स को अब तक मिली प्रतिक्रिया शानदार रही है। बताएं कि फिल्म ने लोगों की कल्पना को क्यों पकड़ा?
द कश्मीर फाइल्स दुनिया के किसी भी हिस्से में सिनेमा के इतिहास में अपनी तरह की पहली फिल्म है, जहां कश्मीर नरसंहार के पीड़ितों की प्राथमिक वीडियो साक्ष्यों पर फिल्म बनाई गई है। उनकी सच्ची कहानियां तथ्यों के आधार पर क्रमवार बुनी गई हैं।

अंतरराष्ट्रीय मंच और मीडिया या तो इस पर खामोश रहा है, या उसने इतने सालों में सिर्फ दुष्प्रचार को बढ़ावा दिया है। उनकी इस फिल्म पर कैसी प्रतिक्रिया है?
इस फिल्म को देखने के बाद अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों ने हमें कैपिटल हिल में स्वागत के लिए आमंत्रित किया। इसे दुनिया के शीर्षतम विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित किया गया था। हर किसी को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि आखिरकार भारत सरकार 70 साल में जो नहीं कर पाई, वह एक फिल्म ने कर दिखाया। सभी कांग्रेसियों और सीनेटरों ने वास्तव में स्वीकार किया कि यह नि:संदेह एक नरसंहार था। इस साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर न्यूयॉर्क में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित स्थल द टाइम्स स्क्वायर पर फिल्म का विज्ञापन प्रदर्शित किया गया था। इस फिल्म का 36 बहु-जातीय संगठन समर्थन कर रहे हैं। यह फिल्म सिर्फ एक फीचर फिल्म नहीं है, आज यह एक सॉफ्ट पावर बन गई है, यह दुनिया को दिखाने के लिए भारत का एक कूटनीतिक औजार बन गई है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने कश्मीर नरसंहार को कैसे कवर किया था।

आपने वास्तव में एक ऐसी फिल्म बनाने का साहस दिखाया है जिसमें इतने सालों से पढ़ाए जा रहे इतिहास को चुनौती देने और उस पर सवाल उठाने की ताकत है। आपको किस बात ने प्रेरित किया?
मैं उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के धनोरा गांव में अपने पुश्तैनी घर में पला-बढ़ा हूं। हमारे पास कुछ नहीं था। यहां तक कि हमारे घर में दीवारें भी नहीं थीं। लेकिन मेरे दादाजी ने हमसे मां सरस्वती की साधना कराई और मेरे पिता कुलपति बने और कालिदास के ग्रंथों और सभी वेदों का अनुवाद किया। मां सरस्वती की वजह से ही मैं द कश्मीर फाइल्स बना सका।

कश्मीर में अनुच्छेद 370, जिसके बारे में आपकी फिल्म प्रमुखता से बात करती है, को वर्तमान सरकार द्वारा निरस्त किए जाने पर आपकी क्या राय है?
मैं केवल इतना कह सकता हूं कि यह वह नया भारत है जिसका मैंने सपना देखा था, जहां वंचित भारतीय सशक्त हैं। और मुझे खुशी है कि मैं इसे अपने जीवनकाल में देख रहा हूं। जब आपके पास दूरदर्शी और प्रतिबद्ध नेतृत्व होता है, तो सबसे वंचित सशक्त बनते हैं। अनुच्छेद 370 को खत्म करने के सबसे साहसिक फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने दिलों को जोड़ने का सिलसिला शुरू किया। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि कश्मीर दुनिया के अनुसरण के लिए मानवता और एकता के उदाहरण के रूप में उभरेगा।

आपके हिसाब से इस फिल्म को क्रांति कहना कितना जायज है?
फिल्म भारत को एकजुट कर रही है। कॉरपोरेट इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया को अपने सभी कर्मचारियों के लिए टिकट खरीदते देखना बहुत संतोषजनक है। हम जहां भी जाते हैं, लोग रो रहे हैं और हमें गले लगा रहे हैं। पीड़ित लोग कह रहे हैं कि आखिरकार उनको आवाज मिली है। यहूदी, अश्वेत, यजदी सभी रो रहे हैं और हिंदुओं का दर्द साझा कर रहे हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के राज्यों में, सभी भारतीयों को दर्द से जुड़ता देखकर खुशी होती है। क्रांति में और क्या होता है? पहली बार हर कोई इसे सिर्फ पलायन के बजाय नरसंहार कह रहा है। मेरे हिसाब से नरसंहार को स्वीकार करना न्याय की दिशा में पहला कदम है।

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