प्रो.चंदन कुमार ने दयाप्रकाश सिन्हा की रचनाधर्मिता के कारणों पर बातचीत करते हुए कहा कहा कि यहाँ मैं देख रहा हू्ं तीन पीढ़ियाँ बैठी हुई हैं एक पीढ़ी जो आप हैं दूसरी जो मेरे समकक्ष है तीसरी वह जो विश्वविद्यालय से शोधार्थी आये हैं जो नाटक पर शोध करती है।
मैं जानना चाहूंगा और हमारे शोधार्थी जनना चाहेंगे कि कोई न कोई प्रेरणा तो रही होगी सिर्फ इश्किया मामला नही है। मुझे जानना है कि नाटक इश्किया मामला है आपका? या नाटक प्रेरणा है। आपके नाटकों को पढ़ते वक्त एक शब्द मुझे मिला 'मंच मोह से ग्रस्त' नाटक 'स्टेज स्ट्रक्ट' । मैं जानना चाहूंगा कि आपकी रचनाधर्मिता के प्रेरणा के कारण क्या है?
दया प्रकाश सिन्हा ने उत्तर देते हुए कहा कि 'स्टेज स्ट्रक्ट' इसका बहुत उच्चारण हुआ है चंदन कुमार भी कर रहे हैं आप जब मुग्ध हैं या स्टेज स्ट्रक्ट हैं इसका संबंध लॉजिकल नहीं है किस कारण से क्यों इश्क है यह स्टेज स्ट्रक्ट क्यों है ? पेंटिंग स्ट्रक्ट ,म्यूजिक स्ट्रक्ट नहीं होता पर 'स्टेज स्ट्रक्ट' होता है।कला को अगर राजनीति से जोड़ोगे तो कला कला नहीं रह जायेगी।
बात चीत को आगे बढ़ाते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि एक पाठक के रूप में जो जिज्ञासायें हैं यही जिज्ञासायें हमारे विद्यार्थियों की भी रहती है कि हिंदी का कोई अपना रंगमंच भी है क्या ? स्वातंत्र्योत्तर का हिंदी रंगमंच सरकारी अवदान पर पलने वाला रंगमंच है क्या है? इसे दूसरे ढंग से कहें तो हिंदी समाज का कोई जातीय रंगमंच असमियां, बांग्ला ,और मराठी की तरह है क्या?
दयाप्रकाश सिन्हा ने उत्तर देते हुए कहा कि हिंदी भाषी प्रदेश में कोई रंगमंच है नहीं। नाटक साहित्य भी है और कला भी है।नाटक जब लिखा जाता है पुस्तक रूप में आता है तो वह साहित्य होता है उसका मूल्यांकन साहित्य के रूप में किया जाता है ।लेकिन जब उसका मंचन होता है। तब उसका मूल्याकंन कला के रूप में होता है।
कुछ नाटक बहुत अच्छे होते हैं पढ़ने में, पर जब वह मंच पर आते हैं तो फेल हो जाते हैं। इसी प्रकार से कुछ नाटक जो साहित्य के स्तर पर अच्छे नहीं होते हैं पर हंसी मजाक के कारण मंच पर अच्छे चल जाते हैं। परंतु अच्छा नाटक कौन सा है। अच्छा नाटक वह है जो श्रेष्ठ साहित्य भी हो और श्रेष्ठ कला भी हो। एक नाटककार के लिए यह एक चैलेंज होता है कि उसका नाटक दोनों पक्षों में श्रेष्ठ हों।
प्रो.चंदन कुमार ने नाटक के भविष्य पर बात करते हुए प्रश्न करते हुए कहा कि आपकी बात से मेरी सहमति है हम विश्वविद्यालयों में नाटक पढ़ाते हैं और हमारी रोज़ी-रोटी नाटक पढ़ाने से ही चलती है पिछले 25 वर्षों से विश्वविद्यालयों में एक ही प्रश्न चल रहा है कि चंद्रगुप्त नाटक का नायक कौन है 'चाणक्य' या 'चंद्रगुप्त' पर लगातार हर वर्ष प्रश्न चल रहा है परंतु इस प्रश्न का समाधान नहीं हुआ। मुझे आपसे बात करते हुए यह लग रहा है कि हिंदी में नाटक का भविष्य है क्या मैं इसलिए कह रहा हूं। थोड़ी व्याख्या कर दूं कि हिंदी क्षेत्र में नाटक के लिए न तो आधारभूत संरचनाएं हैं? न हिंदी समाज में नाटक की कोई जातीय परंपरा विकसित हो रही है? जो नाट्य विकसित हो रही है वह फिल्मों में जाने का माध्यम बन गया है।नाटक का क्या भविष्य आपको दिखता है इस पर प्रकाश डालिये।
दयाप्रकाश जी ने उत्तर देते हुए कहा कि भविष्य में नाटक तो रहेगा,नाटक का उद्भव मानव सभ्यता के विकास के साथ हुआ है।नाटक की विशेषता है कि नाटक अपने दर्शकों को जीवंतता प्रदान करता है।अभिनेता दर्शकों को प्रभावित करता है।
प्रो.चंदन कुमार ने अंत में कहा कि दयाप्रकाश जी से बात करना खुद को ग्रो करना भी है। दयाप्रकाश जी को पढ़ना ,या जानना हिंदी रंगमंच के इतिहास से भी परिचित होना है।आपके पास अनुभवों का खज़ाना है नाटक इश्किया मामला रहा है अपने लिए डेढ़ इश्किया मामला रहा ।दयाप्रकाश जी आपको पुरस्कार मिलना हिंदी के हर उस साधक को पुरस्कार मिलना है जो कहीं न कहीं निर्लिप्त भाव से अपने काम में लगा रहता है और हमने आप लोगो से यही सीखा है कि आप काम कीजिए आपका काम बोलेगा। आप शतायु हों आप स्वस्थ रहें आपके स्वस्थ रहने में हमारा स्वार्थ है।
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