गत 11 से 13 मार्च को कर्णावती में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा सम्पन्न हुई। सभा में देशभर से आए प्रतिनिधियों ने भाग लिया। 11 मार्च को सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत और सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर सभा का शुभारम्भ किया गया। सरकार्यवाह ने वार्षिक प्रतिवेदन के माध्यम से विभिन्न प्रांतों में पिछले एक वर्ष के दौरान संपन्न हुए कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी दी। सभा में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें भारत को स्वावलंबी बनाने का आह्वान किया गया है।
इस अवसर पर अ.भा. प्रचार प्रमुख श्री सुनील आंबेकर की उपस्थिति में सरकार्यवाह ने एक पत्रकार वार्ता को भी संबोधित किया। इसमें उन्होंने संघ कार्य के विस्तार, सभा में पारित प्रस्ताव तथा भविष्य की कार्य योजनाओं की विस्तार से जानकारी दी।
यहां प्रस्तुत हैं सरकार्यवाह द्वारा सभा में रखे गए वार्षिक प्रतिवेदन से गत वर्ष स्वयंसेवकों द्वारा किए कुछ असाधारण कार्यों और भविष्य की दिशा के संदर्भ में दिए गए बिंदुओं के मुख्य अंश-
कोविड-19 महामारी और पुनर्वास
मार्च 2020 में सामने आई कोविड महामारी की चुनौती की पहली दो लहरें बेहद दर्दनाक थीं। यह देखा गया कि जहां पहली लहर के दौरान आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई, वहीं दूसरी लहर के दौरान बड़ी संख्या में मौतें हुर्इं। बीमारी से पैदा हुई शारीरिक परेशानी और अपनों की असामयिक मृत्यु के कारण असंख्य परिवारों को अभूतपूर्व कष्टों से गुजरना पड़ा। अस्पतालों में बिस्तरों की गंभीर कमी, एक तरफ इलाज के विभिन्न उपकरणों के साथ-साथ दवा की कमी, और दूसरी तरफ, लॉकडाउन के कारण आर्थिक संकट और व्यापार और उद्योग पर इसका प्रभाव तथा बेरोजगारी की चुनौती, इन सबसे हताशा और गहन चिंता का माहौल बना। ऐसे में सरकार ने न केवल स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए हरसंभव प्रयास किया, बल्कि संघ के स्वयंसेवकों, समाज के असंख्य भाइयों और बहनों और सामाजिक, सेवा और धार्मिक संस्थानों ने भी सामाजिक और राष्ट्रीय कर्तव्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
इस रपट की भी पढ़ें: –
भारत बोध के सही विमर्श को आगे बढ़ाना होगा : होसबाले
ऐसे में संघ के स्वयंसेवक विभिन्न प्रकार की सहायता प्रदान करने में सबसे आगे थे जैसे कि दवा की आपूर्ति, आॅक्सीजन के लिए उपकरणों की व्यवस्था, भोजन वितरण, रक्तदान, शवों का अंतिम संस्कार आदि। केंद्र सरकार ने समय-समय पर राज्य सरकारों के साथ बातचीत करते हुए आवश्यक प्रोटोकॉल घोषित किए। द्वितीय लहर के दौरान, देश में जनता के मन को आशावादी और सकारात्मक रखने का महत्वपूर्ण कार्य भी हमारे कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया था। तीसरी लहर की संभावना को ध्यान में रखते हुए प्रशिक्षण की एक विस्तृत योजना तैयार की गई, जिसे पूरे देश में जिला और खंड (ब्लॉक) स्तर तक सावधानीपूर्वक लागू किया गया। समाज के लाखों जागरूक बंधुओं के साथ स्वयंसेवक इस जन प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजक और सहभागी बने। सरकार के 100 प्रतिशत टीकाकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्वयंसेवकों ने 150 करोड़ से अधिक टीकाकरण की सफलता की कहानी में भी प्रभावी योगदान दिया।
स्वयंसेवकों ने विभिन्न सामाजिक संस्थाओं और आधिकारिक प्रशासन के साथ संयुक्त योजना और सहयोग की भूमिका निभाई। कोविड के इस संकट से उत्पन्न स्थिति में पुनर्वास की आवश्यकता मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों में महसूस की गई, वे हैं-
1. शिक्षा (स्कूलों के बंद होने के कारण शिक्षण और सीखने में बाधा और इससे छात्रों को नुकसान)
2. रोजगार ( व्यापार, उद्योग और परिवहन के क्षेत्र में संकट के कारण लाखों-करोड़ों लोगों को बेरोजगारी की समस्या)
3. दुख और अनिश्चितता वाले परिवार (परिवार में कमाने वाले की मृत्यु से बनी स्थिति; भविष्य की चुनौती) के संदर्भ में तीन चुनौतियों से ऊपर, स्वयंसेवकों और विभिन्न संगठनों ने कई जगहों पर प्रभावी रास्ते खोजकर लोगों की मदद करने के लिए कई प्रयास किए हैं।
- बस्ती पाठशाला, नि:शुल्क कक्षाएं आदि चलाकर बच्चों की शिक्षा, पठन-पाठन की निरंतरता को बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रयास किए गए, लेकिन इस संबंध में बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
- सरकारों ने रोजगार सृजित करने के लिए विभिन्न आर्थिक योजनाओं की शुरुआत करके स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की है और प्रयास कर रही हैं। हालांकि यह प्रयास प्रशंसा योग्य है, फिर भी इतने विशाल देश में चुनौती भी अपार है। कई शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयंसेवकों द्वारा छोटी और आसान नौकरियों के सृजन, कौशल वृद्धि और उसी के लिए आवश्यक प्रशिक्षण के लिए सर्वोत्तम प्रयास किए गए। हमारे ग्राम विकास कार्य, सेवा विभाग और आर्थिक क्षेत्र के विभिन्न संगठनों के अलग-अलग और संयुक्त प्रयासों से इस दिशा में सार्थक कार्य हुआ है; हालांकि, अभी भी रोजगार सृजन की बहुत आवश्यकता है।
- आत्मनिर्भर भारत के संकल्प में और इसकी प्राप्ति में, सरकार और समाज, विशेष रूप से उद्योग और व्यापार जगत पर जोर देना चाहिए। रोजगार सृजन को प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। रोजगार के नए आयामों और संभावनाओं पर विचार करते हुए प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों, कृषि आधारित और कुटीर उद्योगों, हस्तशिल्प, लघु उद्योगों आदि पर अधिक जोर देना आवश्यक है। विकेंद्रीकरण, पर्यावरण के अनुकूल दृष्टिकोण को भी ध्यान में रखते हुए इस संबंध में योजना बनाना आवश्यक है।
- मुख्य कमाने वाले सदस्य की मृत्यु के कारण संकट का सामना कर रहे परिवारों की मदद के लिए स्वयंसेवक समाज के सहयोग से योजना बनाकर आगे आए हैं। ऐसे कई प्रेरक कार्य भी हुए हैं। बच्चों की शिक्षा, बालिकाओं का विवाह, वृद्धों की देखभाल, आजीविका से संबंधित कुछ व्यवस्था आदि के लिए उपलब्ध सरकारी योजना तक पहुंचने के लिए जहां भी आवश्यकता महसूस हो, प्रयास किया जाना चाहिए। महामारी के इस दौर में हमने कई सबक भी सीखे हैं।
हिंसा, अविश्वास – स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बाधा
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के पश्चात राज्य में अनेक स्थानों पर हुए दंगे एवं व्यापक हिंसा ने एक वीभत्स वातावरण खड़ा कर दिया। यदि समाज में हिंसा, भय, द्वेष, कानून का उल्लंघन व्याप्त हो गया तो न केवल अशांति, अस्थिरता की स्थिति रहेगी बल्कि लोकतंत्र, परस्पर विश्वास आदि भी नष्ट हो जाएंगे। बंगाल में गत मई, 2021 में हुई घटनाएं राजनीतिक विद्वेष एवं मजहबी कट्टरता का विषफल थीं। प्रशासनिक तंत्र का दुरुपयोग करते हुए विद्वेष व हिंसा को खुली छूट देकर राजनीतिक विरोधियों को नष्ट करने का प्रयास, भविष्य के लिए महंगा पड़ेगा। एक राज्य के नागरिकों को अपनी सुरक्षा के लिए पड़ोसी राज्य के अभय कवच में जाकर रहना पड़ा, यह प्रशासन की विफलता मात्र नहीं बल्कि लोकतंत्र एवं संविधान की अवहेलना भी है।
प्रस्ताव:
स्वदेशी और स्वावलम्बन की
|
राजनीतिक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा अनिवार्य है किंतु वह स्वस्थ मनोभाव से हो, लोकतंत्र की मर्यादा में रहे, वैचारिक मंथन, समाज विकास के लिए पोषक हो, यह अपेक्षणीय है। लेकिन पिछले दिनों की घटनाएं, चुनावों में होने वाले आरोप-प्रत्यारोप व उनकी भाषा चिंता के कारण बने हैं। किसान आंदोलन के नाम पर पूर्व निश्चित कार्यक्रम के लिए जाते प्रधानमंत्री के काफिले को मुख्य सड़क पर रोकने की अति निंदनीय घटना सुरक्षा के सामने चुनौती तो थी ही, साथ ही इस कृत्य ने राजनीतिक मर्यादा केंद्र-राज्य सरकारों के संबंध, संवैधानिक पदों के प्रति भावना आदि के प्रति भी प्रश्न खड़ा कर दिया है।
विभाजनकारी षड्यंत्र
भारत में आज जहां एक तरफ सदियों पुराने सांस्कृतिक मूल्यों, देश की पहचान, एकता और अखंडता की भावना जाग्रत हो रही है, वहीं दूसरी तरफ हिंदू शक्ति स्वाभिमान के साथ खड़ी हो रही है। जो विरोधी ताकतें इसे बर्दाश्त नहीं कर रही हैं, वे भी समाज में खराब माहौल बनाने की साजिश कर रही हैं। देश में बढ़ते विभाजनकारी तत्वों की चुनौती भी चिंताजनक है। हिन्दू समाज में ही विभिन्न विखंडनीय प्रवृत्तियों का उदय कर समाज को कमजोर करने का प्रयास भी किया जा रहा है। जैसे-जैसे जनगणना का वर्ष आता है, एक समूह को यह प्रचार करके उकसाने की घटनाएं होती हैं कि वे हिंदू नहीं हैं। हिंदुत्व के संदर्भ में तरह-तरह के झूठ फैलाकर बेबुनियाद आरोप लगाने की साजिश हो रही है।
इन सभी को देश-विदेश में बौद्धिक आवरण में ढककर पेश करने का दुर्भावनापूर्ण एजेंडा काम कर रहा है। इस पृष्ठभूमि में राष्ट्रीयता, हिंदुत्व, इसके इतिहास, सामाजिक दर्शन, सांस्कृतिक मूल्यों और परंपरा आदि के बारे में सच्चाई और तथ्यों के आधार पर प्रभावी और मजबूत वैचारिक विमर्श खड़ा करना आवश्यक है। व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में भारतीय जीवन मूल्यों के आधार पर वर्तमान समय के लिए प्रासंगिक आचरण और व्यवहार की अभिव्यक्ति हो, यह प्रयास विशेष रूप से युवा पीढ़ी के बीच व्यापक हो। इससे सहमत होने वाले समान विचारधारा वाले व्यक्तियों और ताकतों को भी इस प्रयास में शामिल किया जाना चाहिए।
‘स्व’ आधारित जीवनदृष्टि की
|
मजहबी कट्टरता-एक गंभीर चुनौती
देश में बढ़ती मजहबी कट्टरता ने कई जगहों पर फिर सिर उठाया है। केरल, कर्नाटक में हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्याएं इस खतरे का एक उदाहरण हैं। सांप्रदायिक उन्माद, रैलियां, प्रदर्शन, सामाजिक अनुशासन का उल्लंघन, संविधान की आड़ में रीति-रिवाजों और परंपराओं तथा पांथिक स्वतंत्रता के नाम पर कायरतापूर्ण कृत्यों का सिलसिला, मामूली कारणों को भड़काकर हिंसा भड़काना, अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देना आदि बढ़ रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारी तंत्र में प्रवेश करने के लिए एक विशेष समुदाय द्वारा विस्तृत योजनाएं बनाई गई हैं। इन सबके पीछे ऐसा लगता है कि दीर्घकालिक लक्ष्य के साथ एक गहरी साजिश काम कर रही है। संख्या के बल पर अपनी बात मनवाने के लिए कोई भी रास्ता अपनाने की तैयारी की जा रही है। समाज की एकता, अखंडता और सद्भाव के आगे इस खतरे को सफलतापूर्वक हराने के लिए संगठित शक्ति, जागृति और सक्रियता के साथ सभी प्रयास समय की जरूरत हैं। देश के विभिन्न हिस्सों जैसे पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि में हिंदुओं के नियोजित कन्वर्जन के बारे में निरंतर जानकारी मिल रही है। इस चुनौती का एक लंबा इतिहास रहा है, लेकिन, हाल ही में, नए समूहों को कन्वर्ट करने के विभिन्न नए तरीके अपनाए जा रहे हैं।
संगठित, जागृत भारत
उपरोक्त परिस्थितियों के बावजूद भारत में जागृति, विकास एवं नए क्षितिज के प्रादुर्भाव की एक आशाजनक वेला का भी अनुभव हो रहा है। समाज का एक बड़ा वर्ग भारत के एक स्वर्णिम अध्याय को लिखने के कार्य में उत्साह से कार्यरत है। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव की प्रेरणा को लेकर संपन्न अनेक कार्यक्रम इस उत्साह को बढ़ा रहे हैं। पूजनीय सरसंघचालक जी के प्रवास में तथा संघ के विविध आयोजनों में सहभागी होने वाले समाज की सभी श्रेणी के सज्जन इसमें अपना विशिष्ट योगदान देने के लिए तत्पर हैं। इसी कारण से समाज में संघ को जानने और संघ के समीप आने की उत्सुकता बढ़ी है। इसीलिए आने वाले दिनों में जागरण श्रेणी एवं गतिविधि के अपने कार्य को अधिक परिणामकारी बनाने के प्रयास होने चाहिए। इस कार्य में स्वयंसेवकों की सुपतशक्ति पर बल देकर अपनी कार्यशक्ति को बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।
टिप्पणियाँ