इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल ने कहा है कि देर से न्याय मिलने पर अक्सर उसका कोई अर्थ नहीं रह जाता है. एक मुक़दमे का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति के बेटे की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. उस व्यक्ति ने अपने बेटे की मृत्यु के बाद मुआवजा प्राप्त करने के लिए वाद योजित किया. मुकदमा 25 वर्ष तक चलता रहा.
25 वर्ष बाद जब उस व्यक्ति को मुआवजा दिए जाने का निर्णय न्यायालय ने सुनाया तब उस व्यक्ति ने मुआवजा लेने से मना कर दिया. उस व्यक्ति ने न्यायालय से कहा कि मुआवजे की धनराशि न्यायालय अपने पास ही रख ले. अब मुआवजे की धनराशि उसके किसी काम की नहीं है.
25 बरस पहले सड़क हादसे में जब उसके बेटे की मृत्यु हो गई थी तब उसे अपने पौत्र का पालन – पोषण करने के लिए धन की अत्यंत आवश्यकता थी. अब यह धनराशि उसे नहीं चाहिए क्योंकि उसके पौत्र का पालन – पोषण जैसे तैसे हो गया.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोक अदालत अधिकतम संख्या में विवादों का निस्तारण करें, लोक अदालत वही करती है, जो भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत को टालने के लिए किया था. हनुमान जी तथा अंगद ने युद्ध टालने के लिए किया था.
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