सुनवाई के दौरान 7 दिसंबर 2021 को पेरारिवलन के वकील गोपाल शंकरनारायण ने कहा था कि उनका मुवक्किल पिछले तीस सालों से जेल में बंद है। तमिलनाडु सरकार ने 2018 में उसकी रिहाई की सिफारिश की थी और मामला राज्यपाल के पास है। राज्यपाल के फैसले को कोर्ट अपने रिकार्ड में ले।
सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन की सजा माफ करने की याचिका पर सुनवाई के दौरान 3 नवंबर 2020 को राज्य सरकार को राज्यपाल से एक बार फिर सिफारिश करने का निर्देश दिया था। दरअसल इस मामले में राज्य सरकार का आरोप है कि उसकी सिफारिश पर राज्यपाल ने दो सालों से कोई फैसला नहीं लिया है। इस पर राज्य सरकार की ओऱ से की गई सिफारिश पर राज्यपाल से फैसला लेने का आग्रह किया गया है।
इस मामले में सीबीआई ने हलफनामा दायर कर कोर्ट को बताया था कि तमिलनाडु के राज्यपाल को इस मामले में फैसला करने का अधिकार है। ये राज्यपाल ही तय करेंगे कि पेरारिवलन को रिहा किया जाए या नहीं। पहले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा था कि वो दया याचिका पर फैसला करे। पेरारिवलन की ओर से कहा गया है कि उन्होंने 2018 में राज्यपाल के पास दया याचिका लगाई थी और कहा था कि उनकी बाकी सजा माफ की जाए।
केंद्र ने किया कड़ा विरोध
कोर्ट ने कैद के दौरान उसके आचरण के संबंध में पेश रिकार्ड, शिक्षा और खराब सेहत को ध्यान में रखते हुए कहा कि केंद्र सरकार के कड़े विरोध के बावजूद उसे जमानत पाने का अधिकार है। केंद्र ने कहा कि वह अभी पैरोल पर है और जेल मैनुअल के हिसाब से उसे पैरोल मिल सकती है, ऐसे में कोर्ट को जमानत नहीं देनी चाहिए। उस पर केंद्रीय कानूनों के तहत मुकदमा चला था और केंद्रीय एजेंसी सीबीआइ ने केस की जांच की और अभियोग चलाया ऐसे में राज्यपाल को माफी देने का अधिकार नहीं है बल्कि यह अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति को है।
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