साध्वी ऋतंभरा के इस आश्रम में एक ऐसी बेटी की शादी हुई, जिसको जन्म देने वाली मां ने 1 दिन के लिए भी अपनी ममता की छांव नहीं दी। वात्सल्य ग्राम के आंगन में पली बढ़ी यह बेटी पालना में आई थी और अपनी माँ साध्वी ऋतंभरा के आशीर्वाद लेकर विदा हुई।
कुछ बरस पहले ऋतम्भरा जी ने बेटी ऋचा को प्रारंभिक शिक्षा के लिए दिल्ली भेजा था। इसके बाद वो राजस्थान में वनस्थली जैन विद्यापीठ से ग्रेजुएशन किया और अपेक्स यूनिवर्सिटी जयपुर से बी.एड किया। वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद ऋचा ने ऑल इंडिया बार एसोसिएशन की सदस्यता ली और वर्तमान में दिल्ली में प्रैक्टिस कर रही हैं। पालन से लालन तक का सफर तय कर चुकी ऋचा ने वात्सल्य के आंगन में रहकर न केवल अपनी शिक्षा पूरी की बल्कि वह खुद अपने पैरों पर भी खड़ी हुई।
धर्म पिता बने संजय गुप्ता ने ऋचा को पढ़ा लिखा कर सुयोग बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विवाह योग्य होने पर इंदौर के राजेंद्र चौहान के पुत्र अर्पित से रिश्ता तय हो गया। अर्पित कम्प्यूटर इंजीनियर हैं और पुणे की सीमन्स कंपनी में कार्यरत हैं।
ऋचा का दूल्हा बने अर्पित की मां अनीता चौहान की 20 वर्ष पूर्व साध्वी ऋतंभरा से इंदौर में भेंट हुई। एक श्रीमद भागवत के दौरान मानसिक संकल्प लिया था कि वह अपने बेटे का विवाह वात्सल्य की बेटी से कराएंगी। रविवार को उनका यह इस संकल्प पूरा हो गया।
ऋचा अधिवक्ता बनकर बेहद ख़ुशी हैं और उन्हें आपराधिक मामलों में काफी रुचि है। वह निष्पक्ष न्याय के प्रति वकालत करना चाहती हैं और आगे बढ़कर न्यायाधीश बनने की इच्छा रखती हैं। साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि वात्सल्य के बेटे-बेटियां अब ऊंचाइयां छूने लगे हैं और धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं। यह एक शुभ संकेत है। यहां बच्चों को राष्ट्रभक्ति, समाज सेवा और अपनी संस्कृति के प्रति अटूट श्रद्धा रखने की शिक्षा दी जाती है।
वृंदावन के वात्सल्य ग्राम में ऐसी और भी बेटियां हैं, जिनको अपनों ने जन्म लेते ही छोड़ दिया। इन बेटियों को नानी, मौसी, मां की याद न आए इसके लिए साध्वी ऋतंभरा ने सभी के बीच रिश्ते जोड़ दिए हैं। इन बेटियों का लालन-पालन करने वाली माताओं में से किसी को मां, किसी को नानी तो किसी को मौसी बना दिया है। वर्तमान में वात्सल्य ग्राम में इस तरह के 22 परिवार हैं।
ऋचा को मामा-मामी की कमी महसूस न हो, इसके लिए भाव संबंधों में सूरत, गुजरात से लक्ष्मी और नाना लाल शाह, नानी रेखा, राजू भाई शाह ने मामी-मामा की भूमिका में भात पहनाने की रस्म अदा की। ऋचा की मां बनी सुमन परमानंद अपनी बेटी के पीले हाथ होते देख फूली नहीं समा रहीं थीं। ऐसी कई लड़कियां है जिनके हाथ माँ साध्वी ऋतम्भरा ने पीले कर उन्हें विदा करना है, उन्हें लगता है ये उनकी ज़िन्दगी के मकसद पूरे होने जैसा है।
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