बात—बात पर मासूमों को गोलियों से दाग कर जश्न मनाने और 'इस्लाम की फतह' के नारे लगाने वाले तालिबान अपनी बर्बरता के दम पर ही अफगानिस्तान पर चढ़ बैठे हैं। 'इस्लाम के ये पहरुए' कभी हर चीज में पश्चिम से टक्कर लेने वाले अफगानियों को, 1996—2001 में अपने पहले राज के दौरान दिखा चुके हैं कि 21वीं सदी में भी पाषाण युग में लौटना क्या होता है। अब इस बार भी उनकी वह बर्बरता उसी तरह अपना कहर ढाती आ रही है। लेकिन इस बर्बर हुकूमत को अपनी पुलिस की बर्बरता की चिंता सताने लगी है।
ताजा समाचारों के अनुसार, तालिबान की लड़ाकों की सरकार ने पुलिस महकमे को हुक्म दिया है कि लोगों पर ऐसी 'अमानवीयता से न पेश आएं'। तालिबान हुकूमत ने पुलिस को ये नैतिकता का पाठ पढ़ाया है क्योंकि उसे बराबर शिकायतें मिल रही थीं कि पुलिस वाले लोगों से दुर्व्यवहार कर रहे हैं, उन पर हिंसा का कहर बरपा रहे हैं।
तालिबानी पुलिस का ऐसा आतंक है कि लोग घर से बाहर निकलने में घबराते हैं कि कहीं रास्ते में कोई बंदूकधारी 'इस्लाम का पहरेदार' न मिल जाए नहीं तो लेने के देने पड़ जाएंगे। कारण, बंदूक तन गई तो तन गई, कोई शिकायत नहीं, कोई सुनवाई नहीं। पुलिस की बर्बरता ऐसी है कि गाड़ी में परिवार के साथ जा रहे लोगों तक पर गोलियां चलाई गई हैं। |
इसे देखते हुए हुकूमत ने अफगानिस्तान में अपने पुलिसकर्मियों को नए दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं। खबर है कि पिछले कुछ वक्त से अफगानिस्तान में पुलिस वालों के नागरिकों से दुर्व्यवहार की घटनाओं पर लोग नाराज थे, उनमें अशांति बढ़ रही थी। इसी सबकी शिकायतों को देखते हुए अफगानिस्तान के आंतरिक मंत्रालय ने नई आचार संहिता जारी की है। तथ्यों को देखें तो देश के अलग-अलग हिस्सों में पुलिस की अमानवीयता ने महिलाओं और बच्चों को भी नहीं बख्शा है। कई बेगुनाहों को बेमौत मारा गया है।
बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान हुकूमत वही सिराजुद्दीन हक्कानी आंतरिक मंत्री की कुर्सी संभाले हैं जो खुद बहुत बर्बर जिहादी गुट से आते हैं। और दिलचस्प बात है कि खुद हक्कानी का नाम भी संयुक्त राष्ट्र की जारी की प्रतिबंधित लोगों की सूची में दर्ज है।
इन्हीं ने अब पुलिस वालों से इंसानियत से पेश आने को कहते हुए, नए दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं। ये कायदे काबुल में पुलिस के प्रवक्ता खालिद जादरान ने ऑनलाइन साझा कर दिए हैं। इन दिशानिर्देशों में पुलिस को कहा गया है कि संदिग्ध लोगों के घरों में रात में बिना अदालती आदेश के न दाखिल हों। लेकिन, अगर जांच बहुत जरूरी है तो पुलिस वालों को किसी संदिग्ध आदमी के घर में जाने की इजाजत तभी मिलगी, जब वे अपने साथ किसी स्थानीय नेता या मस्जिद के इमाम को लेकर जाएंगे। अब पुलिस को यह भी कहा गया है कि पुलिस वाले रोजाना की गश्त करते हुए किसी पर ऐसे ही गोली नहीं चलाएंगे, लेकिन उन पर हमला होने की सूरत में वे गोली चला सकते हैं।
इस निर्देश का एक अर्थ यह भी हुआ कि पहले पुलिस वाले बाजारों में हथियार लेकर गश्त लगाते हुए किसी पर भी गोली दाग दिया करते थे। राह चलते लोगों को धमकाना और उन्हें बंदूकों के बट से मारने के लड़ाकों के कई वीडियो सोशल मीडिया पर साझा हो चुके हैं।
अफगानिस्तान में तालिबानी पुलिस का ऐसा आतंक है कि लोग घर से बाहर निकलने में घबराते हैं कि कहीं रास्ते में कोई बंदूकधारी 'इस्लाम का पहरेदार' न मिल जाए नहीं तो लेने के देने पड़ जाएंगे। कारण, बंदूक तन गई तो तन गई, कोई शिकायत नहीं, कोई सुनवाई नहीं। पुलिस की बर्बरता ऐसी है कि गाड़ी में परिवार के साथ जा रहे लोगों तक पर गोलियां चलाई गई हैं। अभी पिछले ही दिनों ऐसी ही पशुता दर्शाते हुए एक डॉक्टर, एक बच्चे और एक पूर्व सरकारी अधिकारी को जान से मारा गया है।
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