सिंक्यांग में उइगरों तथा तिब्बत में तिब्बती बौद्धों पर अत्याचार करने के चीन एक से एक तरीके अपना रहा है। दुनिया जानती है कि कम्युनिस्ट सत्ता दोनों जगहों पर भयंकर शोषण और दमन चक्र चला रहा है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग कितना भी चीन को सही राह चलने को कहता रहे, ड्रैगन के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। तिब्बत में बौद्ध लामाओं को प्रताड़ित करने के लिए नए तरीकों का खुलासा हुआ है जो अपने में चौंकाने वाला है।
चीन की सरकार ने बौद्ध लामाओं पर शिकंजा कसने के नए पैंतरे अपनाए हैं। लामाओं पर नजर रखने के लिए हर मठ में एक निगरानी अधिकारी की तैनाती की गई है। मठों के अंदर ही निगरानी चौकियां बनाई गई हैं। इतना ही नहीं, प्रशासनिक अधिकारी नौजवान लामाओं पर दबाव बनाते हैं कि वे चीन के सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाई करें। चीन चाहता है कि तिब्बत में बौद्ध संस्कृति का कोई निशान बाकी न रहे।
बौद्ध मठों में चरों तरफ पुलिस ने कैमरे लगाए हुए हैं। लामाओं के मोबाइलों में एक जासूसी एप इंस्टाल होना जरूरी बना दिया गया है। बताते हैं, इससे लामाओं की हर तरह की गतिविधि की जानकारी चीन सरकार को पहुंच रही है। यानी हर तिब्बती पर चीन की नजर है। यही वजह है कि मठ में रहने वाले आपस में भी बात करने से घबराते हैं।
तिब्बत के वर्तमान हालात के बारे में बताते हुए, रेडियो फ्री एशिया ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि तिब्बत के किंघाई प्रांत में गोंचेन मठ उन मठों में से एक है जहां निगरानी चौकियां बनाई गई हैं। हालांकि मठ के बाहर तो सालों से एक पुलिस चौकी बनी ही हुई थी, जो मठ में आने—जाने वालों से लेकर अंदर क्या चल रहा है उस पर पूरी नजर रखती थी। अब तो कम्युनिस्ट सत्ता ने पूरी हेकड़ी के साथ पुलिस की चौकियां मठ के अंदर ही स्थापित कर दी हैं।
इन चौकियां में स्थानीय पुलिसकर्मियों के अलावा एक निगरानी अधिकारी रखा गया है। स्पष्ट है कि तिब्बत में बौद्ध संस्कृति का पूरी तरह दमन करने के लिए ही इस संस्कृति के वाहक रहे बौद्ध मठ चीन को खटक रहे हैं, लामाओं की बौद्ध प्रार्थना खटक रही है।
इतना ही नहीं, बौद्ध मठों में चरों तरफ पुलिस ने कैमरे लगाए हुए हैं। लामाओं के मोबाइलों में एक जासूसी एप इंस्टाल होना जरूरी बना दिया गया है। बताते हैं, इससे लामाओं की हर तरह की गतिविधि की जानकारी चीन सरकार को पहुंच रही है। यानी हर तिब्बती पर चीन की नजर है। यही वजह है कि मठ में रहने वाले आपस में भी बात करने से घबराते हैं।
उल्लेखनीय है कि 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा करना शुरू किया था। 1959 में परिस्थितियां पूरी तरह बिगड़ जाने पर 14वें दलाई लामा ने भारत में शरण ली थी। वे तबसे ही भारत में धर्मशाला से तिब्बत की निर्वासित सरकार चला रहे हैं।
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