मुख्यमंत्री धामी जी, चुनाव से पहले अचानक आपने यूनिफार्म सिविल कोड का मुद्दा क्यों उठाया, जबकि आपके दृष्टि पत्र में भी इसका कोई जिक्र नहीं था?
चुनाव से ठीक पहले एक खास विचारधारा या कहें, एक खास समुदाय ने कर्नाटक से ‘हिजाब’ पहनने के मसले को तूल देना शुरू किया। आप बीते ऐसे ही कुछ मुद्दों को देखेंगे तो पाएंगे कि हमेशा से ऐसे विवादों के पीछे भाजपा तथा इस राष्ट्र का विरोध करने वाले संगठनों का हाथ रहता है और इन विवादों को हवा देकर कांग्रेस और उसी मानसिकता वाले कुछ अन्य दल तुष्टीकरण की राजनीति शुरू कर देते हैं। इस बार जब ये विवाद उठा तो इसने मुझे बहुत पीड़ा दी और भीतर तक कचोट गया। मैंने अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से बातचीत की और निर्णय लिया कि इस देश में अब सभी नागरिकों के लिए एक कानून यानी समान नागरिक संहिता बिल की हम न केवल पुरजोर तरीके से पैरवी करेंगे बल्कि इसे लागू करने की दिशा में पूरी गंभीरता के साथ आगे बढ़ेंगे।
यह मुद्दा केंद्र की मोदी सरकार क्यों नहीं लेकर आती? कानून तो संसद बनाती है?
गोवा में वहां की विधानसभा ने इस बिल को पास कर अपने यहां लागू किया हुआ है। वहां ईसाई और हिन्दू धर्म के लोग पूरे सम्मान के साथ एक ही कानून का पालन करते हैं। हम भी न्यायविदों और विद्वानों की एक समिति बनाकर ‘समान नागरिक संहिता’ विधेयक का ड्राफ्ट तैयार करेंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने भी संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत यह अधिकार दिया है और यदि कुछ कमी रहेगी भी तो हम केंद्र से मदद लेकर उत्तराखंड में यह कानून लागू करेंगे।
आपको क्यों लगता है कि समान नागरिक संहिता विधेयक लाना जरूरी है?
अपना भारत देश और यह उत्तराखंड प्रदेश शरिया से नहीं, संविधान से ही चलेंगे। हम तुष्टीकरण की राजनीति के लोभ में, एक वर्ग विशेष के वोट पाने मात्र के लिए देवभूमि की पहचान के साथ समझौता नहीं कर सकते। हम सत्ता में हैं तो यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम समाज और विशेषकर एक वर्ग विशेष की कुरीतियों को दूर करें और उन्हें भी विकास की दौड़ में शामिल करें। भाजपा ने तीन तलाक पर कानून बनाकर लाखों मुस्लिम महिलाओं को संरक्षण दिया है, उनका सशक्तिकरण किया है। ये मुस्लिम महिलाएं इस कानून पर जब मोदी जी की, भाजपा की प्रशंसा करने लगीं तो मुस्लिम उलेमाओं और नेताओं ने इन्हें हिजाब के मसले पर भड़काना शुरू कर दिया। लेकिन मुस्लिम महिलाएं और इस मजहब के समझदार लोग यह जान चुके हैं कि उनके पिछड़ेपन का कारण उनकी रूढ़िवादी मान्यताएं हैं और वे खुलकर अब इनका विरोध करने लगे हैं। इस देश का मुसलमान उनको वोट बैंक समझने वाले नेताओं को जवाब देने लगा है।
हिजाब मुद्दे पर इतने गंभीर कैसे हो गए?
देखिए। यदि हिजाब की इजाजत दी तो कल दूसरे पंथों के बच्चे भी अपने-अपने पंथ के प्रतीक धारण कर स्कूल आएंगे, फिर स्कूल में एकरूपता के क्या मायने रह जाएंगे? स्कूल में बच्चों को हम धार्मिक पढ़ाई नहीं करवाते। वहां उनका उज्ज्वल भविष्य बनाने की शिक्षा दी जाती है न कि पंथिक शिक्षा। इसलिए हिजाब को लेकर राजनीति नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसके घातक परिणाम होंगे और मुझे ऐसा लगता है कि विपक्ष इस मुद्दे को अभी और हवा देगा। इसलिए हमने समान नागरिक कानून लाने की वकालत की है और आप देखना, एक दिन सभी राज्यों की तरफ से केंद्र पर यह दबाव बनेगा कि एक देश एक कानून ही होना चाहिए।
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