आप सबको पता ही है कि 6 फरवरी को रूपेश पांडे की हत्या उनके ही गांव के कुछ कट्टरवादी मुसलमानों ने उस समय कर दी थी जब वे सरस्वती प्रतिमा का विसर्जन करने जा रहे थे। रूपेश को तब तक पीटा गया जब तक कि उनकी मौत नहीं हो गई,लेकिन पुलिस ने इसे 'मॉब लिचिंग' नहीं माना। इसके बाद उनके श्राद्ध में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को नहीं जाने दिया गया। यही नहीं, दिल्ली के भाजपा नेता कपिल मिश्रा को तो रांची हवाई अड्डे पर ही रोककर रखा गया। राज्य सरकार के इशारे पर यह सब इसलिए किया गया, ताकि यह मामला 'मॉब लिंचिंग' के रूप में न प्रचारित हो। लेकिन जिस तरह से भीड़ ने उनकी हत्या की है, उसे 'मॉब लिचिंग' ही कहा जाएगा। यही बात राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने भी कही है। उन्होंने 20 फरवरी को रूपेश के परिजनों से भेंट की। इसके बाद उन्होंने जिले के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ भी इस संबंध में एक बैठक की थी। उन्होंने कहा कि रूपेश पांडे हत्याकांड की जांच किशोर न्याय अधिनियम की भावना के विपरीत है। ऐसा प्रतीत होता है कि किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधान के अनुसार नाबालिग के साथ जांच में जो व्यवहार अपनाने चाहिए वे नहीं अपनाए गए। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पुलिस की कार्यशैली पर कई सवाल उठाए हैं।
अब इस मामले में एक नई बात सामने आ रही है। रूपेश के गांव दूलमाहा के गोविंद राम और गयूर मियां की बातचीत बाहर आई है। गयूर मियां फ़ोन पर कह रहा है कि कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों ने हिंदुओं को फंसाने की योजना बनाई थी। इसमें वे उनका भी साथ चाहते थे, लेकिन उन्होंने उनका साथ नहीं दिया। गयूर मियां का मानना है कि इन लोगों की कट्टरपंथी सोच की वजह से 17 वर्ष के युवक रुपेश पांडे की हत्या कर दी गई और इसके बाद यही कट्टरपंथी सोच वाले मुसलमान हिंदुओं पर ही मुकदमे दर्ज करने की योजना बना रहे हैं, जो पूरी तरह से गलत है।
उल्लेखनीय है कि दूलमाहा में हिन्दू जनसंख्या लगभग 75% है, जबकि मुस्लिमों की आबादी 25% है। गांव के अधिकतर हिंदुओं का मुख्य पेशा खेती-बाड़ी है, जबकि मुसलमानों में कई लोग देशी शराब बनाने का धंधा करते हैं।
दुलमाहा में पहले भी घट चुकी हैं कई घटनाएं
- गोविन्द के अनुसार हिंदू और मुसलमानों में मतभेद बढ़ने की कहानी 1982 में ही लिख दी गई थी। उस समय नानका भुइँया पिता छकोरी भुइँया की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी। इसी के बाद मुसलमानों और हिंदुओं में मतभेद बढ़ने शुरू हो गए थे।
- 1986 में गांव में रामनवमी के समय भी तनाव पैदा हुआ था। रामनवमी जुलूस जिस रास्ते से निकलता था, उसे पुलिस ने रोक दिया। अभी भी इस पर रोक है।
- इसके बाद 1992 में जहरीली शराब कांड के दौरान कई लोगों की मौत हो गई थी। इसमें जहरीली शराब बनाने वाले यानी मुसलमानों की भूमिका रही थी। इन लोगों को बचाने के लिए प्रशासन ने इस कांड की खोजबीन नहीं की। इस कारण गांव के हिंदू और मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ गईं।
- गोविन्द ने यह भी बताया कि 1992-93 के ही आसपास एक और घटना घटी। उस समय हिंदुओं के जानवर बांधने की जगह पर कब्रिस्तान बनाने को लेकर हिंदू और मुस्लिम में काफी बड़ा विवाद हुआ था, लेकिन हिंदुओं के जबरदस्त विरोध के कारण वे ऐसा नहीं कर पाए।
- कट्टरवादियों ने 2006 में गोविन्द पर भी हमला किया था। इसमें भी गोविंद की जान बाल बाल बची थी।
इन बातों का निष्कर्ष यही निकल रहा है कि जो कुछ भी बरही के दूलमाहा गांव में हो रहा है, उसके पीछे एक बड़ी साजिश है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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