महेश दत्त
पिछले सप्ताह जैसे ही इमरान खान बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के उद्घाटन कार्यक्रम में भाग लेने चीन गए, वैसे ही पाकिस्तान में विपक्ष और सत्ता पक्ष के सहयोगी दलों में मुलाकातों का एक लंबा दौर चल निकला। शाहबाज शरीफ के घर आसिफ जरदारी, उनके बेटे बिलावल, शाहबाज के पुत्र हमजा शरीफ, नवाज शरीफ की बेटी मरियम और खुद शाहबाज शरीफ की मुलाकात हुई। इस मुलाकात में इमरान सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने पर मंत्रणा हुई और रणनीति तय की गई। मुलाकात के दौरान ही लंदन में मौजूद नवाज शरीफ से टेलीफोन से बात की गई। तय यह हुआ कि बेनजीर भुट्टो के साथ किया गया ‘चार्टर आफ डेमोक्रेसी’ अनुबंध आगे बढ़ाया जाएगा जिसके तहत जिस भी राजनीतिक दल के पास अधिक संसद सदस्य होंगे, उसे सरकार बनाने का मौका दिया जाएगा और दूसरा दल उसे समर्थन देगा। वर्तमान में नवाज शरीफ की पार्टी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है जिसका अर्थ है कि प्रधानमंत्री उन्हीं के दल का होगा। शाहबाज के प्रधानमंत्री बनने पर सहमति हो गई।
इमरान ने सेना को संदेश दिया है कि वह उनकी इच्छा अनुसार पंजाब के मुख्यमंत्री को बदलने के लिए तैयार हैं। साथ ही वह वर्तमान सेना अध्यक्ष बाजवा की सेवा अवधि बढ़ाने को भी तैयार हैं। याद रहे कि बाजवा पहले ही एक बार अपनी सेवा अवधि बढ़वा चुके हैं। अब इसकी आशा कम ही है कि सेनाध्यक्ष इमरान के इस प्रस्ताव को मंजूरी दें।
यहां यह बताना आवश्यक है कि पाकिस्तान में नेशनल असेंबली के साथ-साथ चारों राज्यों की विधानसभाओं के भी चुनाव होते हैं। इसका अर्थ यह है कि यदि इमरान सरकार गिरती है तो सिंध, खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान और पंजाब में भी विधानसभा को भंग करना होगा। सिंध में पीपुल्स पार्टी की सरकार है, खैबर पख्तूनख्वा और पंजाब में तहरीक-ए- पाकिस्तान यानी इमरान की पार्टी की सरकार है और बलूचिस्तान में बलोच आवामी पार्टी की सरकार है। संसद का अभी लगभग डेढ़ साल का समय बचा है। इसका अर्थ है कि केंद्र में इमरान सरकार गिरने के साथ ही बाकी तीन राज्यों की सरकारें भी बर्खास्त करनी होंगी ताकि सभी चुनाव एक साथ कराए जा सकें। इसमें समस्या यह है कि राज्य सरकारें सत्ता नहीं खोना चाहतीं। ये तमाम पार्टियां अविश्वास प्रस्ताव में सरकार के विरुद्ध वोट देने के लिए भावी सरकार से कुछ पाने का वादा चाहती हैं। खैबर पख्तूनख्वा में मौलाना फजलुर रहमान का दल पहले चरण के चुनाव जीत चुका है और आशा है कि वह वहां बहुमत ले लेंगे। स्पष्ट है कि वहां सरकार जमात-ए-इस्लामी की बनेगी। क्योंकि यह बात अभी से स्पष्ट है तो फजलुर रहमान भी केंद्र की सत्ता में ऐसा ही चाहते हैं। ठीक ऐसी ही स्थिति बाकी दलों की भी है।
पाकिस्तान की फजीहत
इमरान खान ने अपनी चीन यात्रा से आशा की थी कि उन्हें चीन से तीन अरब डॉलर कर्ज मिल जाएगा और चीन रूस से अपनी गारंटी पर दो अरब डॉलर कर्ज दिलवा देगा। परंतु ऐसा कुछ भी ना हो सका। हां, इतना जरूर हुआ कि रूसी राष्ट्रपति ने इमरान खान को रूस आने का न्योता दे दिया। इसके लिए पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय को बहुत प्रयास करना पड़ा। वरिष्ठ पत्रकार नजम सेठी के अनुसार, इस रूस यात्रा से कुछ भी मिलने वाला नहीं है।
इमरान की चीन यात्रा के दौरान ही पाकिस्तान में बलूचिस्तान के दो शहरों में बलोच लिबरेशन आर्मी ने सेना के दो ठिकानों पर जोरदार हमला किया जो लगभग 72 घंटे चला और इसमें बलोच लिबरेशन आर्मी के मुताबिक सौ से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को मार डाला गया। इन 72 घंटों में पाकिस्तानी सेना को अपने ही अड्डों पर हेलीकॉप्टर के जरिए रॉकेट से हमला करना पड़ा।
सेना के सामने झुके इमरान
इमरान खान ने चीन से वापसी के बाद अपनी स्थिति नाजुक देखते हुए सेना को संदेश दिया है कि वह उनकी इच्छा अनुसार पंजाब के मुख्यमंत्री को बदलने के लिए तैयार हैं। साथ ही वह वर्तमान सेना अध्यक्ष बाजवा की सेवा अवधि बढ़ाने को भी तैयार हैं। याद रहे कि बाजवा पहले ही एक बार अपनी सेवा अवधि बढ़वा चुके हैं। इसकी आशा कम ही है कि सेनाध्यक्ष इमरान के इस प्रस्ताव को मंजूरी दें। पाकिस्तानी सेना राजनीतिक मामलों को संस्थागत रूप से चलाने में यकीन रखती है। संस्थागत नीति को कोर कमांडर तय करते हैं और इसमें सेनाध्यक्ष शामिल होते हैं। इसके अलावा इमरान के पास यह भी एक विकल्प है कि वह अपने नए सेनाध्यक्ष के नाम की घोषणा कर दें। पंजाब में सेना के समर्थक माने जाने वाले चौधरी बंधु भी शरीफ से मिल रहे हैं। इस प्रक्रिया में चौधरी बंधुओं के शामिल होने से यह स्पष्ट हो जाता है कि सेना राजनीतिक हलचल में कोई भूमिका नहीं निभा रही है। लेकिन, ऐसा कब तक चलेगा, यह कोई नहीं जानता।
एक और घटनाक्रम यह बता रहा है कि सेना अपने को राजनीतिक हलचल में निष्क्रिय कर रही है। चुनाव आयोग ने इमरान के नजदीकी माने जाने वाले फैसल बावड़ा की सीनेट सदस्यता चुनाव के समय दोहरी नागरिकता रखने के आरोप में खारिज कर दी है। उन्हें सरकार से मिले तमाम मुआवजे, तनख्वाह और दूसरे लाभ सरकार को वापस करने पड़ेंगे। पिछले सप्ताह इमरान के ही दल के एक और सदस्य को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है। एक तरफ अदालतें विपक्ष की याचिकाओं को स्वीकार कर रही हैं तो दूसरी तरफ सरकारी याचिकाएं खारिज हो रही हैं।
कयामत का महीना मार्च
जैसी परिस्थितियां हैं उनको देखते हुए मरान सरकार मार्च का महीना पार करती नहीं दिख रही। पीपुल्स पार्टी 27 फरवरी से कराची से इस्लामाबाद तक का ‘लॉन्ग मार्च’ आयोजित कर रही है। दूसरी तरफ नवाज शरीफ की पार्टी 23 मार्च से ‘लॉन्ग मार्च’ का आयोजन कर रही है। जल्द ही दोनों दल मिलकर ‘लॉन्ग मार्च’ के लिए एक तारीख तय कर लेंगे ताकि मार्च को बड़ा बनाया जा सके। संभव है कि किसी ‘लॉन्ग मार्च’ से पहले ही सरकार गिर जाए, लेकिन यदि किसी चमत्कारवश ऐसा नहीं हुआ तो ‘लॉन्ग मार्च’ का आयोजन इमरान सरकार की मुश्किलें बढ़ा देगा। यहां यह बात समझने की है इस मार्च को सफल बनाने के लिए जिन लोगों को जिम्मेदारी दी जा रही है वे सांसद नहीं हैं जैसे फजलुर रहमान और मरियम नवाज शरीफ। दूसरी तरफ संसद में शहबाज और दूसरे विपक्षी नेता सरकार का विरोध कर रहे होंगे। माना जा रहा है कि सरकार के लिए यह दोतरफा मार झेलना मुश्किल हो जाएगा। इस तमाम घटनाक्रम को ताकत मिलती है जनता के उस रोष से जो महंगाई और नित नए लगते करों के चलते बढ़ता ही जा रहा है।
विपक्ष के पास मजबूत मोहरे
राजनीति की इस बिसात में इमरान के पास चलने के लिए मोहरे बहुत कम हैं। अधिकतर मजबूत मोहरे विपक्ष के पास हैं। अब बस गठजोड़ की शर्तें तय होनी हैं जिन्हें तमाम विपक्षी नेता आगामी हफ्तों में तय करेंगे। यहां यह कहना गलत न होगा कि पाकिस्तान के तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य में आगामी दिनों में सिर्फ चेहरे बदलेंगे। इसकी आशा बहुत कम है कि प्रशासन के तौर-तरीकों में कोई बड़ा बदलाव आएगा। आज भी पाकिस्तान में जो कुछ हो रहा है उसमें परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सेना की हामी शामिल है। जब तक सभी राजनीतिक दल अपने दलगत चुनाव नहीं कराते हैं और अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए सेना के स्थान पर जनता के पास जाना नहीं शुरू करते, तब तक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की कोई आशा नहीं। यह दुखद तो है, लेकिन सच है।
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