सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर राष्ट्रीय चेतना से ओत-प्रोत थीं। लता जी के पिता दीनानाथ मंगेशकर एक नाट्य मंडली का संचालन करते थे। वीर सावरकर से उनके घनिष्ठ पारिवारिक संबंध थे। इससे मंगेशकर परिवार के बच्चों में राष्ट्रीयता की भावना का संचार हुआ। यह राष्ट्र प्रेम की भावना ही थी कि लता मंगेशकर ने गोवा के स्वतंत्रता के सेनानियों की मदद के लिए, 1962 में चीन युद्ध के समय जवानों का उत्साहवर्धन करने के लिए और 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय बांग्लादेश से आए लाखों शरणार्थियों के लिए जुटकर काम किया।
वीर सावरकर को वे तात्या कहती थीं जिसका अर्थ पिता तुल्य है। वीर सावरकर से अपने पारिवारिक संबंधों और स्वयं पर उनके प्रभाव को उन्होंने छिपाया नहीं। ‘लता : सुर गाथा’ के लेखक यतीन्द्र मिश्र ने जब उनसे पसंदीदा राजनेता के बारे में पूछा तो लता जी ने कहा, ‘सक्रिय राजनीति से अलग, मगर देशप्रेम में डूबे हुए यदि किसी राजनीतिक चरित्र की बात करें, तो मैं वीर सावरकर को गहरे सम्मान से याद करती हूं। उनसे हमारे घरेलू संबंध रहे हैं और उनके अधिकांश लेखन का इस्तेमाल भी पिताजी ने अपने नाटकों आदि में किया था। ….तो मैं उनको बहुत ज्यादा आदर से याद करती हूं। हालांकि राजनीति से मेरा कोई सीधा संबंध नहीं रहा और न ही मैं उसके बहुत नजदीक रही हूं। बस जितने थोड़े से लोगों को मैं जानती हूं, उनमें यही लोग ऐसे हैं, जिनके प्रति मेरे मन में गहरा सम्मान का भाव है। आपको सुनकर अच्छा लगेगा कि ‘भैरवी’ फिल्म का मुहुर्त वीर सावरकर जी ने अपने हाथों से सम्पन्न किया था।’
वर्ष 2019 में लता जी ने वीर सावरकर की जयंती पर उन्हें याद करते हुए ट्विटर पर लिखा था कि मैं उनके व्यक्तित्व को, उनकी देशभक्ति को प्रणाम करती हूं। आजकल कुछ लोग सावरकर जी के विरोध में बातें करते हैं, पर वे लोग यह नहीं जानते कि सावरकर जी कितने बड़े देशभक्त और स्वाभिमानी थे। 18 सितंबर, 2021 को उन्होंने ट्विटर पर बताया कि आज से 90 साल पहले 18 सितंबर, 1931 को मेरे पिताजी के ‘बलवंत संगीत मंडली’ के लिए वीर सावरकर जी ने एक नाटक लिखा जिसका नाम था ‘संन्यस्त खड्ग’, उसका पहला प्रयोग मुंबई में ग्रांट रोड के एल्फिन्टोन थिएटर में हुआ जिस में बाबा ने ‘सुलोचना’ की भूमिका की थी।
समाजसेवा का व्रत और सावरकर की सलाह
लता जी ने अपनी किशोरावस्था में समाज-सेवा का प्रण कर लिया था। इसके चलते वे राजनेता और क्रान्तिकारी वीर सावरकर से इस बात के लिए कई दिनों तक विमर्श में उलझी थीं कि उन्हें समाज-सेवा करते हुए राजनीति के पथ पर जाना है या कुछ और करना है? सावरकर जी ने ही उन्हें समझाया था कि तुम ऐसे पिता की सन्तान हो, जिनका शास्त्रीय संगीत और कला में शिखर पर नाम चमक रहा है। अगर देश की सेवा करनी ही है, तो संगीत के मार्फत समाज की सेवा करते हुए भी उसे किया जा सकता है। यतींद्र मिश्र लिखते हैं कि यहीं से लता मंगेशकर का मन भी बदला है, जो उन्हें संगीत की कोमल दुनिया में बड़े संघर्ष की तैयारी के लिए ले आया। एक तरह से हम भारतीयों को सावरकर का ऋणी होना चाहिए, जो उन्होंने एक बड़ी प्रतिभा को खिलकर सफल होने का जज्बा दिया। उन्होंने अगर उस दिन लता मंगेशकर को कुछ दूसरे ढंग से समाज-सेवा करने से रोका न होता, तो आप उम्मीद कर सकते हैं कि पिछली अर्द्ध शताब्दी और यह नई सदी सुरीलेपन से कितनी विपन्न होती?
हे हिन्दू नृसिंहा
‘हे हिन्दू नृसिंहा’ गीत के बारे में पूछे जाने पर लता जी ने बताया कि यह गीत वीर सावरकर का लिखा हुआ है, जो उन्होंने छत्रपति शिवाजी की वन्दना में गाया है। यह मेरी पसन्द का गीत इसलिए भी है क्योंकि मैं शिवाजी के चरित्र से बहुत प्रेरित रही हूं, जिसका रोचक वर्णन सावरकर जी ने इसमें किया है। मैंने एक पूरा एल्बम ही ‘शिव कल्याण राजा’ नाम से मराठी में बनाया था, जिनमें सारे गीत छत्रपति शिवाजी पर आधारित हैं। इसमें समर्थ गुरु रामदास, जो शिवाजी के गुरु थे, उनके पद भी गाये हैं। बाकी के गीतों में अधिकतर गाने वीर सावरकर और कुसुमाग्रज के लिखे हुए हैं। मराठी के एक बड़े रचनाकार और इतिहासकार हुए बाबा साहब पुरन्दरे, उन्होंने शिवाजी महाराज पर काफी अध्ययन कर रखा था। उन्होंने ही मेरे इस एल्बम, जिसका यह गीत है- ‘हे हिन्दू नृसिंहा’, में कमेण्ट्री की थी।
मंगेशकर परिवार, जिसमें लता मंगेशकर, उषा मंगेशकर और उनकी अन्य बहनें व इकलौते भाई हृदयनाथ शामिल थे, वीर सावरकर द्वारा लिखी गई कविताओं पर संगीत के धुनों की रचना कर रहे थे। उनका यह कार्य वीर सावरकर को सदा खलनायक बताने की कोशिश करने वाली कांग्रेस को नहीं जंचा। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस के शासनकाल के दौरान आल इंडिया रेडियो ने 1954 में हृदयनाथ मंगेशकर को वीर सावरकर की कविता ‘ने मजसी ने परत मातृभूमि, सागर प्राण तालमला’ पर संगीत रचना करने पर बर्खास्त कर दिया था।
गोवा के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
लता मंगेशकर के पिता स्वर्गीय दीनानाथ मंगेशकर गोवा के रहने वाले थे। लताजी का गोवा से खास जज्बाती जुड़ाव था। वर्ष 1954 में भारत को स्वतंत्र हुए 7 वर्ष बीच चुके थे। परंतु गोवा पुर्तगालियों के कब्जे में था। तत्कालीन भारत सरकार खामोश थी। तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने गोवा की स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र क्रांति की योजना बनाई। इसमें बाबा साहब पुरंदरे, संगीतकार सुधीर फड़के, श्रीकृष्ण भिड़े, राजाभाऊ वाकणकर, विश्वनाथ नरवणे, नाना काजरेकर, मेजर प्रभाकर कुलकर्णी, बिन्दु माधव जोशी, श्रीधर गुप्ते जैसे स्वयंसेवक शामिल थे। एक साक्षात्कार में खुद लता मंगेशकर बताती हैं कि जब संगीतकार सुधीर फड़के उनके पास आए और कहा कि गोवा के क्रांतिकारियों के संघर्ष के लिए धन इकट्ठा करने की जरूरत है, तो वे तुरंत ही राजी हो गर्इं। दो मई, 1954 में पुणे के हीरा बाग मैदान में ‘लता मंगेशकर-रजनी’ कार्यक्रम में उन्होंने भाग लिया और उसके जरिये पैसों का इंतजाम किया गया। उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि मैं गोवा की स्वतंत्रता के लिए एक छोटा-सा योगदान कर सकी। लता दीदी ने यह कार्यक्रम नि:शुल्क किया।
चीन एवं बांग्लादेश युद्ध में भूमिका
यह तो सभी जानते हैं कि 1962 में चीन युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों को उत्साहित करने और फंड जुटाने के लिए लता मंगेशकर ने कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों…’ गाया था। उन्होंने पीतांबर दास द्वारा खुदीराम बोस के बलिदान पर रचित बांग्ला देशभक्ति गीत ‘एकबार बिदाई दे मां, घूरे आशी…’ भी गाया था। इसे संगीतबद्ध किया था बप्पी लाहिरी के पिता अपरेश लाहिरी ने। वर्ष 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय लता दीदी ने पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के भरण-पोषण के लिए कार्यक्रम पेश कर धन जुटाया। बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद वे भारतीय वायुसेना के विमान से ढाका भी गईं और अपने सुरों से बांग्लादेशियों को मोह लिया। वीर सावरकर और सुधीर फड़के से राष्ट्रभाव का संस्कार पाई लता जी ने अंतिम सांस तक राष्ट्रीय चेतना की लौ जगाए रखी।
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