महेश दत्त
एक अदामी है, नाम है, उमर फारूक जहूर। यह नॉर्वे का नागरिक है। संयुक्त अरब अमीरात में रह रहा है और बहुत पहुंच वाला आदमी है। संयुक्त अरब अमीरात के शासक परिवार के दामाद अहमद बिन नाहियान इसके कारोबारी साझेदार हैं। पावर सेक्टर में इसकी विशेष रुचि है और दुनिया के लगभग सैंतीस देशों में इसका निवेश है। भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका के तमाम नए पुराने मंत्रियों के साथ इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर देखी जा सकती हैं।
कुछ बरस पहले इसका अपनी पत्नी से झगड़ा हुआ। इसकी पत्नीने अपनी दो बच्चियों को साथ लिया और अपने देश पाकिस्तान चली आई। एक शाम एक प्रसिद्ध एंकर आफताब इकबाल के टीवी शो में उसे एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया गया। इसके कुछ ही दिन बाद उसके विरुद्ध एक एफआईआर दर्ज की गई जिसमें कहा गया कि वह दो बच्चियों का दुबई से अपहरण कर पाकिस्तान ले आई है।
इस केस में उसे अदालत से जमानत दे दी गई लेकिन कुछ ही दिन बाद इस महिला ने खुद एक एफआईआर दर्ज कराई जिसमें कहा गया कि उसकी दो बच्चियों का अपहरण कर दुबई ले जाया गया है। पाकिस्तान की एक जांच संस्था एफआईए ने जांच की और पाया कि मामला अपहरण का न होकर पति-पत्नी के बीच बच्चियों की ‘कस्टडी’ का है। यह भी कि फारूक जहूर ने बच्चियों के जाली पहचानपत्र और पासपोर्ट बनवा कर एक महिला की मदद से उन्हें दुबई मंगा लिया था। उमर फारूक ने इन बच्चियों के दुबई पहुंचने के बाद इनकी ‘कस्टडी’ की कानूनी औपचारिकताएं अपने पैसे के बल पर पूरी करवा लीं। ध्यान रहे, दुबई में चौदह वर्ष से अधिक आयु के बच्चों की ‘कस्टडी’ पिता को दी जा सकती है।
दूसरी तरफ पाकिस्तान के कानून के अनुसार बच्चियां वयस्क होने तक मां के पास रहनी चाहिए। बच्चियों के बाहर जाने में मदद करने वाली महिला के विरुद्ध मानव तस्करी का मुकदमा दर्ज हो गया। चलते-चलते यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा। उन दिनों सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे इफ्तिखार चौधरी। यह वही इफ्तिखार चौधरी हैं जिन्हें मुशर्रफ ने निकालने की कोशिश की थी और वकीलों ने विद्रोह किया था जिसके चलते बाद में मुशर्रफ को इस्तीफा देना पड़ा था। खैर, जब मुकदमा इफ्तिखार चौधरी के सामने पहुंचा और सोफिया मिर्जा यानी कि बच्चियों की मां उनके सामने पेश हुई तो माना जाता है कि वह मां के सुंदर चेहरे पर परेशानी और उदासी देखकर पसीज गए।
अदालती आदेश हो गया कि मां को तीस लाख रुपये मासिक दिए जाएं ताकि वह दुबई जाकर अपने बच्चों की ‘कस्टडी’ का मुकदमा लड़ सके। इफ्तिखार चौधरी को सेवानिवृत्त हुए बरसों बीत गए और मां को यह पैसा मासिक मिल रहा है, लेकिन मां आज तक दुबई गई ही नहीं और पाकिस्तान में ही जहां-तहां टीवी कार्यक्रमों में नजर आती रहती है। इस केस की लगभग नब्बे सुनवाइयां हो चुकी हैं और अब एक बार फिर से सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को उठा लिया है।
इस मामले से भारत के किसी व्यक्ति को कोई रुचि नहीं होनी चाहिए लेकिन इस मामले में रुचि का एक विशेष कारण है। हाल ही में एफआईए के निदेशक सनाउल्लाह अब्बासी ने एक रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को दी है जिसमें बताया गया है कि बच्चियों का पिता उमर फारूक जहूर एक अंतरराष्ट्रीय अपराधी है और दाऊद इब्राहिम का कारोबारी साझेदार है।
इस मामले को समझने के लिए कुछ और जानकारी देनी आवश्यक है। पिछले दिनों इसी एफआईए ने अपने ही पूर्व निदेशक बशीर मेमन पर एक केस दर्ज किया है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में उमर फारूक जहूर से मुलाकात की और इंटरपोल को एक खत लिख कर जहूर के खिलाफ ‘रेड कॉर्नर नोटिस’ को हटाने में मदद की। यह मामला उस समय दर्ज किया गया जब बशीर मेमन ने यह जानकारी सार्वजनिक कर दी कि अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में उन्हें इमरान खान ने अपने दफ्तर बुलाया था और विपक्ष के तमाम नेताओं के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा बनाने के लिए कहा था ताकि उनको लंबे समय के लिए जेल में डाला जा सके।
इमरान का मानना था कि अगर ऐसा सऊदी अरब में हो सकता है तो पाकिस्तान में क्यों नहीं। बशीर मेमन ने कानून का हवाला दिया और ऐसा करने से मना किया। उन्हीं दिनों बशीर मेमन को उमरा करने के लिए छुट्टी पर जाना था। वापसी के बाद उनके कार्यकाल का कुछ ही समय बचा था लेकिन उन्हें स्थानांतरित कर दिया गया। बशीर मेमन को यह अपना अपमान लगा और उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इमरान सरकार ने सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें मिलने वाले तमाम धन पर रोक लगा दी। बशीर मेमन अदालत गए और मुकदमा जीत गए। तब से इमरान सरकार बशीर मेमन के पारिवारिक कारोबार को बर्बाद करने में लगी है।
अब जहूर की पहुंच की बात करें तो पाकिस्तान के तमाम नेताओं के साथ उसकी तस्वीरें मिल जाती हैं। अभी हाल ही में पाकिस्तान की गेमिंग इंडस्ट्री में उसने पांच करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है। औपचारिक रूप से यह निवेश अहमद बिन नाहियान ने किया है लेकिन वास्तव में यह संपत्ति जहूर की है। अब जरा सोचें, अहमद बिन नाहियान ने निवेश किया जहूर की तरफ से, जहूर व्यापारिक साझेदार है दाऊद इब्राहिम का। वही दाऊद इब्राहिम, जिसके बारे में पाकिस्तान का कहना है कि वह उसके बारे में कुछ नहीं जानता।
पाकिस्तान की जांच एजेंसी एफआईए अपने ही सर्वोच्च न्यायालय को कह रही है कि जहूर दाऊद इब्राहिम का व्यापारिक साझेदार है। अब यह बात सार्वजनिक जानकारी में आ चुकी है। निश्चय ही आने वाले समय में इसके प्रभाव भी पाकिस्तान पर आएंगे। क्या यह अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है कि इंटरपोल के अगले अधिवेशन में जब दुनियाभर के तमाम जांच अधिकारी एक साथ बैठेंगे तो पाकिस्तानी एफआईए के निदेशक से यह पूछा जाएगा कि दाऊद इब्राहिम के खिलाफ तो इंटरपोल ने ‘रेड कॉर्नर नोटिस’ दे रखा है और पाकिस्तान ने दाऊद के बारे में सदा ही अनभिज्ञता जताई है, तो अब वही पाकिस्तानी जांच एजेंसी यह कैसे बता रही है कि दाऊद इब्राहिम वहां व्यवसाय कर रहा है? घेरा तंग हो रहा है।
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