कर्नाटक में स्कूल से शुरू हुआ हिजाब का मुद्दा राजनीतिक और मजहबी रंग में रंग गया है। क्लास में हिजाब न लगाने को कहा गया और इस पर बवाल हो गया। बात स्कू्लों में ड्रेस कोड से शुरू हुई और इसे मजहबी, संवैधानिक और निजता का अधिकार बना दिया गया। शिक्षा अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है। शिक्षा समाज में व्याप्त कुप्रथाओं को दूर करती है और नेता अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए स्कूलों के अनुशासन को निशाना बना रहे हैं।
हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी का एक वीडियो मंगलवार को वायरल हुआ। इस वीडियो को उन्होंने हैशटैग (#AllahuAkbar) के साथ ट्वीट किया। इसमें वह लोगों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं – 'अगर तुम आज झुक जाओगो तो हमेशा के लिए झुक जाओगे।' इसी में आगे वह कहते हैं कि यह हमारी लड़ाई है, इस लड़ाई को समझने की जरूरत है। ओवैसी सांसद हैं, जनप्रतिनिधि हैं और हिजाब पर वह मुस्लिम लड़की का समर्थन करने के साथ ही भड़काऊ भाषण दे रहे हैं। इस भाषण से ओवैसी क्या जताना चाहते हैं? उनका यह वीडियो आप भी सुन सकते हैं।
बुधवार को भी वह एक वीडियो को रिट्वीट करते हैं और उसमें गोली चलने की बात कहते हैं। दुश्मन की बात करते हैं। आखिर ओवैसी इसके जरिये क्या संदेश देना चाहते हैं? सोशल मीडिया पर लोगों ने उनके भड़काऊ भाषण पर सवाल उठाए। यह भी कहा कि ऐसे बयान विभाजन की तरफ ले जाते हैं। क्या ओवैसी जिन्ना के पदचिह्नों पर चल पड़े हैं ? शुरुआती दिनों में मुस्लिम लीग सीधे-सीधे पाकिस्तान की बात करने के बजाय मुस्लिम हितों की बात करती थी। ओवैसी हिजाब का समर्थन कर रहे हैं। आपको याद होगा कि मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से आजादी दिलाने वाले बिल का विरोध भी ओवैसी ने किया था। उन्होंने कहा था कि तीन तलाक गुनाह है, लेकिन जो बिल पास हुआ है उससे मुस्लिम महिलाओं की तकलीफें बढ़ जाएंगी। अगर सरकार मुस्लिम पतियों को जेल में डालेगी तो इससे यह कुप्रथा खत्म नहीं होगी।
जिन्ना ने 23 मार्च, 1940 को लाहौर में मिन्टो पार्क में एक सभा में सांप्रदायिक सोच को खुलेआम प्रकट किया था। जिन्ना ने दो घंटे लंबे बेहद आक्रामक भाषण में हिन्दुओं को कोसा था। जिन्ना ने कहा था- "हिन्दू-मुसलमान दो अलग धर्म हैं। दोनों के अलग-अलग विचार हैं। दोनों की परम्पराएं और इतिहास भी अलग हैं। दोनों के नायक भी अलग हैं। इसलिए दोनों कतई साथ नहीं रह सकते।" जिन्ना ने 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन का आह्वान कर दिया। उसके बाद के हालात सभी को मालूम हैं।
भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने हिजाब के मसले पर सोशल मीडिया के जरिये अपनी बात रखी। उन्होंने लिखा कि ये हिजाब नहीं शरिया का आंदोलन है। ऐसी कबीलाई, पिछड़ी, गुलामी से भरी सोच के लिए भारत मे कोई जगह नहीं। हिजाब के नाम पर क्या होता है वो अफ़ग़ान और ईरान में दिख रहा है। स्कूलों में हिजाब, सड़को पर नमाज, गौ हत्या, खाने में थूकना इस सबके लिए अलग देश ले चुके हो 1947 में।
वे लोग न उस समाज के हितैषी हैं, न उस प्रदेश के हितैषी हैं, न देश के हितैषी हैं
हिजाब विवाद में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का बयान काफी मायने रखता है। उनका कहना है कि संस्था के फैसले पर सांप्रदायिक फसाद जो लोग कर रहे हैं, वे न उस समाज के हितैषी हैं, न उस प्रदेश के हितैषी हैं, न देश के हितैषी हैं। हमारे देश में अल्पसंख्यक लोगों के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक अधिकार बराबर हैं। इसलिए हिजाब पर किसी तरह का हंगामा ठीक नहीं है। जो संस्थान हैं उनके अपने ड्रेस कोड होते हैं, उस पर सांप्रदायिक कील मत ठोकिए। ड्रेस कोड, अनुशासन और गरिमा किसी भी संस्थान का विशेषाधिकार होता है। कुछ लोग जिस तरह इन मुद्दों पर भी सियासत कर रहे हैं वे किसी का भला नहीं कर रहे। इस तरह हिजाब पर जो फसाद चल रहा है वे कौन लोग कर रहे हैं?
स्कूल अनुशासन और भविष्य को संवारने के सोपान होते हैं। इन पर मजहबी और सियासी रंग नहीं चढ़ना चाहिए। बच्चों को समझाने के बजाय वैमनस्यता को हवा दी जा रही है।
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