पश्चिम उत्तर प्रदेश में 10 और 14 फरवरी को विधानसभा चुनाव होने है, जिसके लिए राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत चुनाव प्रचार में झोंक दी है। पहली बार ऐसा लग रहा है कांग्रेस ने मतदान से पहले ही मैदान छोड़ दिया है। भाजपा से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता का जादू मतदाताओं पर असर कर रहा है। अखिलेश यादव का गठबंधन का प्रयोग एक बार फिर से विफल होता दिख रहा है। बहुजन समाज पार्टी भी एक किनारे बैठी हुई दिख रही है।
पश्चिम उत्तर प्रदेश की 58 सीटों पर 10 फरवरी को चुनाव होना है जिनमें गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलन्दशहर, शामली, बागपत आदि जिलों के विधानसभा क्षेत्र है। रामपुर मुरादाबाद, अलीगढ़, सम्भल, बरेली, पीलीभीत, आगरा, मथुरा आदि जिलों की 55 सीटों पर 14 फरवरी को मतदान होना है। पश्चिम यूपी वह क्षेत्र रहा है जहां सपा की अखिलेश सरकार के कार्यकाल में दंगे, गुंडागर्दी, अपराधियों के खौफ से जनता त्रस्त थी। योगी सरकार ने सत्ता संभालने के बाद इस क्षेत्र में न सिर्फ सुशासन स्थापित किया बल्कि अपराध करने वालों को जेल भेज कर, उन पर गैंगस्टर, सफेमा, गुंडा एक्ट जैसी सख्त कारवाई भी की।
सपा के मुस्लिम कार्ड पर खाप नाराज
मुस्लिम वोट कार्ड खेलने वाले समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने जाट वोटों की लालच में लोकदल से समझौता कर जयंत चौधरी को अपना साथी बनाया। उन्हें लगा कि किसान आंदोलन के कारण जाट समाज भाजपा को वोट नहीं देगा। इसलिए उन्होंने मुस्लिम, यादव और जाट का गठजोड़ बनाने की कोशिश की, किंतु इस राजनीति चाल को जाट बिरादरी ने पहले ही भांप लिया। जाट समाज को उस समय से इस सच को देख लिया जब उनकी जाट बिरादरी की सीटों पर सपा के कहने पर जयंत चौधरी ने मुस्लिम प्रत्याशी खड़े कर दिए जिस पर जाट बिरादरी के खापों ने नाराजगी जताई। उधर भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सुशासन को आगे रख कर अपना प्रचार शुरू किया। योगी आदित्यनाथ ने पश्चिम उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को याद दिलाया कि सपा सरकार के दंगे याद कर लें, और अपराधियों के खौफ से किसने राहत दिलाई, ये याद कर लें।
योगी आदित्यनाथ द्वारा मेरठ के सोतीगंज कबाड़ियों, बरेली के ड्रग माफियाओ पर शिकंजा कसने के साथ साथ मुजफ्फरनगर, मेरठ, कैराना के दंगे के आरोपियों के खिलाफ सख्ती से पेश आने की बातें हर विधानसभा क्षेत्र में चर्चा में रही हैं, रामपुर में आजम खां का गरूर तोड़ने से लेकर सहारनपुर, बिजनौर, शामली, बागपत में दबंगों की गुंडागर्दी से निजात दिलाने का विषय चुनावी चर्चा में रहा। पश्चिम यूपी में गन्ना किसानों को पहली बार समय से उचित मूल्य पर भुगतान मिला, मेरठ एक्सप्रेसवे और अन्य सड़कों के जाल बिछाने, अलीगढ़ जेवर एयरपोर्ट और अन्य विकास के कामों का भी जिक्र जब पीएम मोदी ने मेरठ में अपनी जनसभा में किया, तब से मतदाताओं में भाजपा के प्रति, और खासतौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रति विश्वास बढ़ा है।
योगी आदित्यनाथ कह चुके हैं कि हर जिले में मेडिकल कॉलेज खुलेगा, मेरठ में खेल विश्वविद्यालय, सहारनपुर में नई यूनिवर्सटी खोले जाने की घोषणा का युवाओं में खास असर है।
अखिलेश यादव, भाजपा सरकार के हर काम को अपना शुरू किया हुआ बता कर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। उनकी जनसभाओं में जो भी प्रमुख लोग आए, वे योगी सरकार द्वारा की कई सख्ती से त्रस्त अपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़े लोग थे, जिन्हें देख कर ही जनता में भाजपा का ग्राफ स्वत: ही बढ़ जा रहा है।
बसपा-कांग्रेस पहले ही पिछली सीट परविधानसभा चुनाव में एक खास बात और देखने मे आई, वो ये कि बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती भी खुल कर प्रचार करने नहीं आईं मानो उन्होंने भी ये मान लिया कि इस बार भी बसपा सरकार की कोई उम्मीद नहीं है।
कांग्रेस ने चुनावों से पहले प्रियंका वाड्रा के बड़े-बड़े कटआउट लगा कर उन्हें यूपी के मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया। उनके बयान भी आए ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं।’ किन्तु चुनाव नजदीक आते-आते प्रियंका वाड्रा ने उत्तर प्रदेश से ही मुंह मोड़ लिया।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस बार आईएमआईएम पार्टी के अध्यक्ष असुद्दीन ओवेसी ने खूब सुर्खियां बटोरीं। उनके भाषणों से मुस्लिम प्रभावित भी दिखाई देते हैं परंतु उनकी सभाओं में आने वाली भीड़ क्या वोटो में परिवर्तित हो पाएगी, इस पर भी राजनीतिक विश्लेषकों में खूब चर्चा होती है।
बरहाल चुनाव रोचक हो रहा है योगी आदित्यनाथ को अपनी सरकार की वापसी का भरोसा है जबकि अखिलेश यादव-जयंत चौधरी को भी उम्मीद है कि इस बार उनका प्रदर्शन पहले से बेहतर होगा।
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