चीन द्वारा अवैध तरीके से नेपाल के कुछ इलाकों की जमीन पर कब्जाने के खिलाफ हिमालयी राष्ट्र में आक्रोश पनप रहा है। चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ नेपाल में आवाजें उठ रही हैं और अभियान भी चलाए जा रहे हैं। इसी सिलसिले में राष्ट्रीय एकता अभियान ने संयुक्त राष्ट्र को एक ज्ञापन सौंपा है। इसमें कहा गया है कि चीन ने अवैध तरीके से हुमला जिले में नेपाल की भूमि पर कब्जा कर लिया है। ज्ञापन में चीन द्वारा पड़ोसी देशों की भूमि हथियाने की गतिविधियों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ध्यान देने और मामले में उचित हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया है। ज्ञापन काठमांडू में अमेरिकी दूतावास, नेपाल में यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि, काठमांडू में रूसी, चीनी और भारतीय दूतावासों को भी भेजा गया है।
एकता अभियान के अध्यक्ष बिनय यादव सोमवार को काठमांडू स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय पहुंचे और कार्यालय सूचना अधिकारी राजेंद्र मान बनेपाली के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर रिचर्ड हॉवर्ड को ज्ञापन सौंपा। इसमें कहा गया है कि सरकार ने 1 सितंबर, 2021 को हुमला में नेपाल और चीन के बीच सीमा विवाद का अध्ययन करने के लिए एक पैनल का गठन किया था। गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव जय नारायण आचार्य के समन्वय में गठित समिति ने सरकार को कुछ सुझाव दिए थे। एकता अभियान ने नेपाली कांग्रेस की अगुआई वाली सरकार से उन सुझावों पर भी कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
राष्ट्रीय एकता अभियान की अपील में कहा गया है, "अध्ययन के अनुसार, 1963 के सीमा प्रोटोकॉल के बाद से स्तंभ संख्या 5 (2) और किट खोला के बीच के क्षेत्र को दोनों देशों के बीच की सीमा के रूप में चिह्नित किया गया है। लेकिन चीनी पक्ष ने नेपाली भूमि में बाड़ और तार लगा दिए हैं।" यह रिपोर्ट अब विदेश मंत्रालय के पास लंबित है। ज्ञापन में कहा गया है कि तत्कालीन केपी ओली के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान ही हुमला में सीमा पर चीनी अतिक्रमण तेज हो गया था।
एक अध्ययन का जिक्र करते हुए कहा कि ये संरचनाएं चीन की धरती पर बनी हैं। इसी तरह, काठमांडू में चीनी दूतावास ने स्पष्ट किया था कि ये संरचनाएं उसके अपने क्षेत्र में बनी हैं ओर नेपाल-चीन के बीच कोई सीमा विवाद नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि नेपाली कांग्रेस की अगुआई वाली सरकार ने रिपोर्ट को प्रकाशित करने की पहल नहीं की।
तत्कालीन मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस ने बयान जारी कर आरोप लगाया था कि सीमा पार से घुसपैठ के बावजूद सरकार आंखें मूंद कर बैठी है। सीमा पर घुसपैठ के साक्ष्य के वावजूद सरकार इस पर परदा डालने की कोशिश कर रही है। लेकिन तत्कालीन विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने 2016 में किए गए एक अध्ययन का जिक्र करते हुए कहा कि ये संरचनाएं चीन की धरती पर बनी हैं। इसी तरह, काठमांडू में चीनी दूतावास ने स्पष्ट किया था कि ये संरचनाएं उसके अपने क्षेत्र में बनी हैं ओर नेपाल-चीन के बीच कोई सीमा विवाद नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि नेपाली कांग्रेस की अगुआई वाली सरकार ने रिपोर्ट को प्रकाशित करने की पहल नहीं की।
राष्ट्रीय एकता अभियान नेपाल में चीनी घुसपैठ के खिलाफ लगातार अभियान चला रहा है। संयुक्त राष्ट्र को सौंपे ज्ञापन में चीन को जमीन अतिक्रमित जमीन से हटने का आह्वान करने के साथ नेपाल और चीन की सरकारों से अंतरराष्ट्रीय समुदाय की देखरेख में संयुक्त रूप से सीमा का निरीक्षण करने का आग्रह किया गया है। साथ ही, दोनों देशों की सरकारों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह यह आग्रह भी किया गया है कि जीपीएस के साथ सभी सीमा चौकियों का रिकॉर्ड रखा जाए।
बता दें कि अपने विस्तारवादी मंसूबों के तहत चीन ने हिमालयी राष्ट्र के हुमला, गोरखा, दारचुला, डोलखा और सिंधुपालचौक सहित सीमावर्ती जिलों में अवैध कब्जा कर लिया है।
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